शिवपुरी। शिवपुरी शहर की सिटी कोतवाली सीमा मे निवास करने वाले गिरिराज शर्मा पर सिटी कोतवाली पुलिस में अभियोजन विभाग मे पदस्थ एक महिला की फरियाद पर सन 2022 में FIR IPC की धाराओं 376 (बलात्कार), 506 (आपराधिक धमकी), 420 (धोखाधड़ी), 384 (जबरन वसूली), और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत दर्ज की गई थी। इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इस एफआईआर का रद्द कर दिया गया था।
यह था मामला
गिर्राज शर्मा पर सिटी कोतवाली पुलिस ने एक महिला की फरियाद पर बलात्कार और ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज किया था। महिला शिवपुरी की निवासी है ओर सन 2018 मे गिर्राज शर्मा के साथ संपर्क में आई थी। महिला ने अपनी एफआईआर मे बताया था कि गिर्राज शर्मा ने उसे अपने प्रेम जाल में फसाया और शादी का झूठा वादा किया था और उसने एक बार उसे नशीला पदार्थ दिया, जिसके बाद उसकी सहमति और इच्छा के विरुद्ध उसके साथ यौन संबंध बनाए ।
गिर्राज शर्मा ने उसकी अश्लील तस्वीरें भी खींची और उनका इस्तेमाल उसे ब्लैकमेल करने के लिए किया, साथ ही उसके पति से अलग होने पर मिलने वाली भरण-पोषण की राशि लेने की कोशिश की। उसने डर और बदनामी के कारण पहले घटना का खुलासा नहीं किया, लेकिन लगातार आपराधिक धमकी दिए जाने के कारण उसे पुलिस के पास जाना पड़ा ।
इस मामले में गिर्राज शर्मा के एडवोकेट ने Cr.P.C. की धारा 482 के तहत इस मामले का ग्वालियर हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए पेश किया। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने आदेश में स्पष्ट किया है कि यदि दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से लंबे समय तक संबंध रहे हों, तो बाद में विवाह न होने पर इसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने ऐसे ही प्रकरण में दर्ज एफआइआर को रद्द करते हुए कहा, इस प्रकार की आपराधिक कार्रवाई न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था, आरोपी ने विवाह का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए, नशा देकर दुष्कर्म किया, अश्लील तस्वीरें खींची और उन्हें वायरल करने की धमकी दी। परंतु रिकॉर्ड से यह स्पष्ट हुआ कि दोनों वयस्क थे और दो से तीन वर्षों तक संबंध में रहे। न्यायालय ने कहा, मामला सहमति से बने संबंध का है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया, महिला स्वयं सम्मिलित रही और उसे परिणामों का ज्ञान था, तो बाद में विवाह न होने पर यह दुष्कर्म नहीं माना जा सकता।
ब्लैकमेलिंग का आरोप भी संदिग्ध
न्यायालय ने पाया, महिला के ब्लैकमेलिंग के आरोपों में विरोधाभास है, क्योंकि अभिलेखों के अनुसार आरोपी ने स्वयं शिकायतकर्ता को तीन लाख रुपए का चेक दिया था। कोर्ट ने कहा, ऐसी परिस्थितियों में आपराधिक प्रकरण चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। एफआईआर को रद्द कर दिया गया।