जिले में हुआ 3 जगह लोकतंत्र का अपहरण, कहीं भी मामला दर्ज नही कर पाया प्रशासन- Shivpuri News

Bhopal Samachar
नीरज अवस्थी/शिवपुरी
। देश मे ग्रामीण स्तर से देश की राजधानी तक लोकतंत्र स्थापित करने के लिए भारत के संविधान मे सन् 1993 मे 73वॉ संविधान संशोधन लागू कर पंचायती राज व्यवस्था पूरे देश मे लागू की गई। जिसका उद्देश्य था कि देश के सबसे छोटे स्तर ग्रामीण क्षेत्र से लोकतंत्र को स्थापित किया जा सके जिसमे जनता अपने वोट की ताकत से अपने प्रतिनिधि का चुनाव कर सके लोकतंत्र का अर्थ ही है 'जनता का शासन, जनता के लिए, जनता के द्धारा' लेकिन वर्तमान समय मे मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले मे चर्चा मे आने वाले कुछ मामले लोेकतंत्र की हत्या ही कहे जा सकते हैं।

पहला मामला
पहला मामला जिले के कोलारस विधानसभा के अंतर्गत आने वाली पंचायत रामगढ का है। पूरा मामले को समझने से पहले गांव की स्थिती को समझने का प्रयास करते हैं। रामगढ यादव बाहुल्य गांव है। जहां यादव समाज के बाहूबली परिवार सरपंच चुनाव मे आपस मे एक दूसरो को टक्कर देते हैं। जिसमे एक पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह यादव के दामाद अमित यादव का परिवार है। तो दूसरा वर्तमान विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी के विधायक प्रतिनिधि रहे भाजपा नेता चैन सिंह यादव है। इस गांव में बीते 2014 के आरक्षण के आधार पर इस गांव में सरपंच पद अनसुचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया था।

जिसमें एक मात्र अनुसूचित जाति का परिवार राजू बाई पत्नि गेंदालाल पटेलिया के परिवार का नाम सामने आया। बताया गया है कि यह परिवार बमौरी गुना में निवासरत है। परंतु इसका नाम इस पंचायत में जुडबा दिया गया था। जिसके चलते इस पद पर दूसरा कोंई अनसूचित जन जाति का नहीं होने के चलते निर्विरोध सरपंच राजू बाई को नियुक्ति किया गया था। अब राजू बाई की पूरी सरपंची वहां पर पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह यादव के दामाद अमित यादव द्धारा की गई।

इसके साथ ही जब मतदाता सूची सामने आई तो उसमें पता चला कि इस गांव में एक आदिवासी कसिया बाई का नाम भी मौजूद है। परंतु इस नाम का कोई पता नहीं चल सका। यह परिवार मजदूरी करने बाहर चला गया था। परंतु चुनाव के बाद यह परिवार गांव में ही आकर चैनसिंह यादव के फार्म पर रहकर बटाई करने लगी। अब जैसे ही मध्यप्रदेश में 2014 के आरक्षण के आधार पर चुनाव की घोषणा हुई। बैसे ही यह बाहूबली परिवार फिर से एक दूसरे के सामने आ गए।

जिसमें एक तरफ कसिया बाई तो दूसरी ओर राजू बाई आमने सामने थी। दोनों ने रामगढ पंचायत में सरपंच पद के लिए अपनी दाबेदारी दिखाते हुए नामांकन दाखिल किया। इसी दौरान सुनियोजित तरीके से ग्राम पंचायत इचौनिया से अज्ञात लोगों द्धारा प्रस्तावक भानू प्रताप सिंह पुत्र जय मण्डल सिंह यादव निवासी भिलारी थाना रन्नौद के साथ इचौनियां पंचायत से भी सरपंच पद के लिए फार्म भर दिया।

कसिया बाई ने बताया है कि वह अंगूठा लगाती है। उसे इस संबंध में कोई जानकारी नही थी। वह चिल्ला चिल्लाकर कह रही है कि वह तो रामगढ की निवासी है परंतु उसका इचौनिया से फार्म कैसे भरा गया यह समझ से परे है। इसे साथ ही हम पाठकों को बता दे कि इचौनिया पंचायत में आरक्षण की स्थिति सामान्य है। अब सामान्य सीठ पर आदिवासी महिला की दाबेदारी जो चिल्ला चिल्लाकर कह रही है कि उसने अपना फार्म रामगढ से भरा है वह इस पंचायत में फार्म भरने क्यों जाएगी।

अब सुनियोजित तरीके से दिए गए इस घटनाक्रम में एक ही व्यक्ति दो पंचायतों से चुनाव नहीं लड सकता। इसी आधार पर इचौनिया जहां से महिला ने फार्म भरा ही नहीं था वहां से इस महिला के फार्म को स्वीकार कर लिया। जबकि जहां से वह चुनाव लडना चाहती है उस पंचायत रामगढ से इस महिला के फॉर्म को रिजेक्ट कर दिया। जिसके चलते इस पंचायत में सुनियोजित तरीके से यहां बाहुबली परिवार ने लोकतंत्र की हत्या करते हुए बिना चुनाव के यहां से निर्विरोध चुनाव करा दिया।

दूसरा मामला
दूसरा मामला भी शिवपुरी जिले के कोलारस विधानसभा की ग्राम पंचायत लुकवासा है। यहां महिला आरक्षित सीट है। पूर्व में यहां दीपक रघुवंशी समर्थित सरपंच निर्वाचित हुआ था। इस बार भी दीपक रघुवंशी ने अपनी अनुसूचित जाति महिला प्रतिनिधि का नामंकन पत्र दाखिल करा रहे थे, लेकिन नामंकन पत्र जमा नहीं हो सका। दीपक ने विरोधी पक्ष पर नामांकन पत्र लेकर भाग जाने के आरोप लगाए हैं।

वहीं वहां मौजूद लोगों का कहना था कि दीपक तय समय के बाद वहां पहुंचे थे जिसके कारण पत्र जमा नहीं हो सका। यहां से एक मात्र नामंकन पत्र सिंधिया समर्थक हरिओम रघुवंशी समर्थित अनीता पत्नि देवेंद्र जाटव का ही जमा हो सका है। वहीं दीपक रघुवंशी ने बताया कि तयशुदा समय पर हम पहुंच गए थे।

किंतु वहां उपस्थित दूसरे पक्ष के लोगों ने हमें अंदर जाने नहीं दिया और हमारा फार्म छुडाकर भाग गए। इसके चलते हम अपने समर्थक का फार्म दाखिल नहीं कर सके। जिसके बाद दीपक रघुवंशी अपनी समर्थित आवेदिका के साथ नामंकन पत्र जमा न होने के मामले को लेकर पुलिस चौकी लुकवासा में बैठे हुए नजर आए।

यहां भी सुनियोजित तरीके से विरोधी को पर्चा दाखिल नही करने दिया गया। जिसके बाद हरिओम रघुवंशी की ओर से सरपंच पद की दावेदार अनी ता जाटव र्निविरोध सरपंच बन गईं। इस प्रकार ग्राम की जनता से उनका मत देने का हक छीन कर जनता के द्धारा चुनाव न कराते हुए र्निविराध सरपंच उन पर थोप दिया गया।

तीसरा मामला
तीसरा मामला भी शिवपुरी जिले के कोलारस विधानसभा की इमलावदी पंचायत का हैं। सबसे पहले इस गांव के वोटरो का गणित समझने का प्रयास करते है। इमलावदी यादव बाहुल्य गांव है। इसमें बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग भी रहते हैं। इस बार यहां सरपंच की सीट आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) के लिए आरक्षित है, जबकि संबंधित दावेदार अलग वर्ग से है ऐसे में वह जिस भी आदिवासी को खड़ा करेगा, वह ही र्निविरोध चुना जाएगा। इमलावदी में करीब 1200 की वोटिंग है। इसमें दो मजरे और शामिल हैं जिसमें करीब 400 आदिवासी मतदाता हैं।

ग्राम पंचायत ईमलावदी में गांव के एक यादव समाज के दावेदार ने मंदिरों के जीर्णोद्वार के लिए 31 लाख रुपये दिए हैं। जिसके बदले आम सहमति बना ली कि कोई भी विरोध में नामांकन नहीं भरेगा। इसके लिए गुरुवार को गांव के हनुमान मंदिर पर संंबंधित दावेदार 31 लाख रुपये बोरे में भरकर पहुंचा और कहा कि इन रुपयों से पंचायत में आने वाले सभी मंदिरों का जीर्णोद्वार होगा। सरपंच बनने के बाद जो आय होगी उसका भी एक हिस्सा मंदिरों के लिए दिया जाएगा। इसके बाद पूरे गांव में बतासे बांटकर उसके सरपंच बनने का जश्न मनाया गया।

इस तरह खुले आम लोकतंत्र की हत्या की गई। ऐसा नही है कि इस मामले से कलेक्टर अक्षय कुमार बाकिब नही हैं बल्कि वह भी गांव मे पहुंचे और वहां ग्रामीणों से बातचीत की परंतु इस गांव मे लोकतंत्र के हत्यारों ने इस घटना को इतनी आसानी से अंजाम दिया कि चाह कर भी कलेक्टर और पूरा चुनाव आयोग कुछ नही कर सका और सरपंच का पद भिण्डी, आलू की तरह बोली लगाकर बिक गया।