शिवपुरी। खबर बडी हट कर हैं कि एक शिक्षक के 2 हजार रूपए में इतनी ताकत होती हैं जिसके बल पर वह पूरी शिक्षा व्यवस्था को लकवाग्रस्त कर सकता हैं। यह बात उतनी ही सत्य है जितनी आप यह खबर पढ रहे हैं। शिक्षको के 2 हजार की ताकत आप भोपाल समाचार के वीडियो खबरो में देख चुके हैं लेकिन 2 हजार में इतनी ताकत केसे आती हैं। आईए इस 2 हजार के नोट की ताकत का एक्सरे करते है जिससे पूरी शिक्षा की व्यवस्था लगवाग्रस्त हो चुकी हैं
पहले समझिए इस सरकारी जमावट को
शिक्षा विभाग का मुखिया होता हैं जिला शिक्षा अधिकारी। शिवपुरी जिले में कक्षा एक से लेकर 12 तक लगभग 3000 से अधिक स्कूल हैं हर जिले में ऐसा होते हैं इसलिए राज्य शिक्षा मिशन का गठन किया गया। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के स्कूल मिशन के हवाले कर दिए गए। ऐकेडमिक और व्यवस्था के सभी पावर मिशन को दिए गए और इस मिशन का मुखिया होता हैं डीपीसी। इस मिशन का जिले स्तर पर सुप्रीमो होता है।
डीपीसी का कार्य मुख्य रूप से 1 से 8 क्लास तक के स्कूलो को शिक्षा व्यवस्था,निर्माण व्यवस्था,शौचालय निर्माण के अतिरिक्त डीपीसी से नीचे स्तर के अमले को शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता पैदा करना शिक्षा संस्थानो में प्रशिक्षण का होता हैं कुल मिलाकर यह ऐकेडमिक पद होता हैं। डीपीसी पद की योग्यता प्राचार्य प्लस 2,एमएड होनी चाहिए लेकिन वर्तमान में राजस्व की अधिकारी के पास यह चार्ज हैे जिन्है इस मिशन की गतिविधयो के विषय में जानकारी शून्य हैं यह एक बिडबंना है कि जिले में इतने पात्र प्राचार्य नही थे क्या,समझने का विषय है इसकी चर्चा फिर कभी करेंगेे।
ब्लॉक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था को दौडाने लिए बीआरसी (ब्लॉक रिर्सोज कोऑर्डिनेटर)
होता है डीपीसी के बाद जिले के प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था को संभालने के लिए बीआरसी होते हैं इनका लगभग वही काम हैं जो डीपीसी का होता हैं
BAC (ब्लॉक ऐकेडमिक कोऑर्डिनेटर)
प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर बीएसी के 4 पद होते हैं। यह विषय वार पद होते हैं हिन्दी,अग्रेजी,साईस और मैथ्स। बीएसी शुद्ध रूप से ऐकेडमिक पद होता हैं।
इस पद का काम होता हैं कि भाषा वार शिक्षको के साथ बच्चो का पढाना,या यू कह लो शिक्षको पढाने का तरीका सिखाना जिससे पाठयक्रम में आने वाले कठिन बिंदुओ को शिक्षक आसानी से पढा सके समझा सके।
CAC (कलिष्टर ऐकेडमिक कोऑर्डिनेटर)
यह पद जनशिक्षा स्तर पर होता हैं और प्रत्येक जनशिक्षा केन्द्रो पर 2 पद होते है। सीएसी का काम होता हैं सप्ताह में 2 प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलो में पहुंचकर पाठयक्रम में आने वाली डाउड क्लीयर करना। सरल भाषा में लिखे तो शिक्षको को बोर्ड पर बच्चो के साथ पढाने का तरीका समझाना होता हैं। इससे बच्चो को कैसे पढाना हैं यह शिक्षको को समझना होता हैं जिससे पाठयक्रम में आने वाली कठनाईयां दूर हो सके।
सीएसी स्कूल पहुंचकर जो कार्य किया उसे अनवैक्षण रजिस्टर पर अंकित करना होता है। शिक्षको को क्या पढाया। कैसे पढाया। स्कूल के रिर्पोट खुले है कि नही,समय पर शिक्षक पहुंचा है कि बच्चे किस प्रतिशत में आ रहे हैं शिक्षा का स्तर कैसा हैं। यह ग्रांउड रिर्पोट अपने उपर के कार्यालय में संविट करना
लेकिन होता क्या हैं
सीएसी अनवैक्षण नही करते बल्कि निरीक्षण करते हैं। पढने ओर पढाने के अतिरिक्त वह सभी काम करते हैं जो साहबगिरी की श्रेणी में आता हैं। कुल मिलाकर ऐकेडमिक काम से दूर रहते हैं। साहबों के जैसे निरीक्षण करते हैं।
कोलारस विधानसभा के स्कूलो में खुली राज्य शिक्षा मिशन के अमने की पोल
भोपाल समाचार ने कुछ दिनो मे कोलारस विधानसभा के कुछ स्कूलों की खबरों का लाईव प्रसारण किया था। यह खबर आप सभी ने देखी होगीं,शिक्षा का स्तर भी आपने देखा होगा बच्चो को छोडिए शिक्षको केा जिला दंडाधिकारी का नाम नही पता था। कई स्कूल महींनो से बंद पडे थे। किसी स्कूल में किराए के मास्टर पढाते मिले। किसी स्कूल मे सिर्फ एक ही शिक्षक पढाता मिला।
इन स्कूलो पर खबर के बाद भेजे गए नोटिस
शासकीय प्राथमिक विदयालय कुल्हाडी,शासकीय प्राथमिक विदयालय दीघौद और मावि सींघन सहित कई स्कूलो को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए।
अब अंत:में 2 हजार के नोट की ताकत देखिए
शिक्षा विभाग के सूत्रों से खबर मिल रही है कि प्रत्येक स्कूलों से 2 हजार रूपए साल भर का चार्ज वसूला जाता हैं। यह सीएसी से होते हुए बीआरसी तक पहुंचाया जाता है। इसके बाद शिक्षक साल भर के लिए फ्री। मिशन का बीआरसी स्तर तक का अधिकारी आपके स्कूल को चैक करने नही आऐगा अगर आकंडे भरने है तो आप तक सूचना पहुंच जाऐगा। उदाहरण समझाने की कोशिश करते है कि जिन स्कूलो की खबरें चली उन पर नोटिस पहुंचे।
लेकिन उससे पहले सीएसी ने नोटिस क्यों नही किया और कार्रवाई के लिए बीआरसी कार्यालय को पत्र क्यों नही लिखा। उसके बाद फिर किसी को नाटिस नही दिए गए किसी ने स्कूलों का निरीक्षण नही किया। अर्थात सभी स्कूल सुचारू रूप से चल रहे हैं। अगर फिर खबरें चलती हैं तो फिर नोटिस दिए जाऐंगें क्योंकि मामला पब्लिकी हो जाएगा नोटिस देना मजबूरी है कुल मिलाकर कहने का सीधा सा अर्थ हैं प्रति स्कूल 2 हजार रूपए साल फिक्स फिर कुछ भी करो। इतनी ताकत हैं सरकारी शिक्षक के इस 2 हजार के एक नोट में कि उसने पूरे सिस्टम को लकवा ग्रस्त कर दिया।