शिवपुरी। शिवपुरी जिले के पोहरी विधानसभा के छर्च-पोहरी मार्ग पर सोमवार सुबह सड़क पर जीवन ने जन्म लिया है। इस क्षेत्र से लगातार जननी एक्सप्रेस की लापरवाही भर खबर आती रहती है। जननी एक्सप्रेस समय पर नहीं पहुंचती इसलिए प्रसुताओं को प्राइवेट वाहन से आना पड़ता और इस समय की लेटलतीफी के कारण असुरक्षित प्रसव की संभावना बढ जाती है। ऐसा की कुछ इस मामले मे हुआ है।
छर्च गांव की 30 वर्षीय मंजू जाटव को प्रसव पीड़ा के दौरान चर्च के स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था। लेकिन, प्रसूता की गंभीर स्थिति के बावजूद, उसे पोहरी के लिए रेफर कर दिया गया। मंजू की सास कमला जाटव ने बताया कि पीड़ा असहनीय थी, फिर भी स्टाफ ने रेफर करने की जिद की। परिजनों ने तुरंत जननी एक्सप्रेस 108 एम्बुलेंस के लिए कॉल किया, लेकिन जननी समय पर नहीं आई। इस कारण मंजु जाटव के परिजनों को प्राइवेट वाहन का सहारा लेना पडा।
15 किलोमीटर का सफर, बेबसी का मंजर
किराए के वाहन से पोहरी की तरफ जा रहे परिजनों के लिए यह सफर किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। पोहरी से लगभग 15 किलोमीटर पहले पोहरी—छर्च रोड पर मंजू की पीड़ा इतनी बढ़ गई कि गाड़ी में बैठना असंभव हो गया। बेबस परिजनों ने महिला को सड़क के किनारे उतारा, जहां मानवता और सरकारी व्यवस्था दोनों ने दम तोड़ दिया। इसी जगह, मजबूर मां ने अपनी पांचवीं संतान को जन्म दिया।
यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब पोहरी के बीएमओ डॉ. दीक्षांत गुधैनियां खुद मानते हैं,यदि एम्बुलेंस समय पर उपलब्ध होती, तो शायद सड़क पर डिलीवरी की नौबत नहीं आती। उन्होंने यह भी स्वीकारा कि एम्बुलेंस में डिलीवरी के लिए सभी संसाधन मौजूद होते हैं।
फिलहाल, मां और नवजात बच्ची को पोहरी स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है। यह घटना स्वास्थ्य विभाग के उन दावों की पोल खोलती है, जहां 'जननी सुरक्षा' जैसी योजनाओं की बात की जाती है, लेकिन हकीकत में 'जननी' को सड़क पर जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
छर्च गांव की 30 वर्षीय मंजू जाटव को प्रसव पीड़ा के दौरान चर्च के स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था। लेकिन, प्रसूता की गंभीर स्थिति के बावजूद, उसे पोहरी के लिए रेफर कर दिया गया। मंजू की सास कमला जाटव ने बताया कि पीड़ा असहनीय थी, फिर भी स्टाफ ने रेफर करने की जिद की। परिजनों ने तुरंत जननी एक्सप्रेस 108 एम्बुलेंस के लिए कॉल किया, लेकिन जननी समय पर नहीं आई। इस कारण मंजु जाटव के परिजनों को प्राइवेट वाहन का सहारा लेना पडा।
15 किलोमीटर का सफर, बेबसी का मंजर
किराए के वाहन से पोहरी की तरफ जा रहे परिजनों के लिए यह सफर किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। पोहरी से लगभग 15 किलोमीटर पहले पोहरी—छर्च रोड पर मंजू की पीड़ा इतनी बढ़ गई कि गाड़ी में बैठना असंभव हो गया। बेबस परिजनों ने महिला को सड़क के किनारे उतारा, जहां मानवता और सरकारी व्यवस्था दोनों ने दम तोड़ दिया। इसी जगह, मजबूर मां ने अपनी पांचवीं संतान को जन्म दिया।
यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब पोहरी के बीएमओ डॉ. दीक्षांत गुधैनियां खुद मानते हैं,यदि एम्बुलेंस समय पर उपलब्ध होती, तो शायद सड़क पर डिलीवरी की नौबत नहीं आती। उन्होंने यह भी स्वीकारा कि एम्बुलेंस में डिलीवरी के लिए सभी संसाधन मौजूद होते हैं।
फिलहाल, मां और नवजात बच्ची को पोहरी स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है। यह घटना स्वास्थ्य विभाग के उन दावों की पोल खोलती है, जहां 'जननी सुरक्षा' जैसी योजनाओं की बात की जाती है, लेकिन हकीकत में 'जननी' को सड़क पर जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।