तीर्थाटन की उम्र में 4 पार्टियों का तीर्थाटन करने वाले हरिवल्लभ शुक्ला अभी भी बने है महल के लिए बारूद / SHIVPURI NEWS

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शिवपुरी। राजनीति इन दिनो अशोक कोचेटा/ 40 साल लंबे राजनैतिक कैरियर में लगातार चर्चाओं और मुख्य धारा में बने रहना तब बेहद मुश्किल होता है जब राजनीति में कोई गॉड फादर न हो। लेकिन पोहरी के लड़ाकू, जुझारू, जिन पर विश्वास न किया जा सके ऐसे राजनैतिज्ञ हरिवल्लभ शुक्ला का इसे अद्भूत कौशल न कहे तो क्या कहे। सदाबहार हरिवल्लभ भले ही 40 साल पहले पोहरी से विधानसभा का चुनाव जीते हों। लेकिन आज भी राजनीति के मैदान में उनकी जवानी बरकरार है।  

कांग्रेस से सफर प्रारंभ कर वह समानता दल, भाजपा, बहुजन समाज पार्टी में घूम फिरकर फिर कांग्रेस में लौट आए हैं। उनकी मुख्य राजनैतिक धुरी सिर्फ और सिर्फ महल विरोध पर केन्द्रित रही है। उनके समय के जितने भी राजनीतिज्ञ हुए वह सब चुक गए हैं। बहुत से लोगों ने दुनिया छोड़ दी है और जो बचे भी हैं। वह भी अब अप्रासांगिक होकर उनकी भी सिर्फ यादें ही जिंदा हैं।

लेकिन हरिवल्लभ न केवल आज भी प्रासांगिक बने हुए हैं। बल्कि उनकी संघर्षशीलता आज भी यथावत कायम है। उनमें जहां संघर्ष करने का जज्बा है, वहीं अविश्वसनीयता उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता, कुरूपता या पूंजी। इस चुनाव में भी भले ही उन्हें टिकट मिले या न मिले। लेकिन टिकट के प्रबलतम दावेदारों में उनका नाम शामिल होना भी राजनीति में उनके आदम कद का परिचायक हैं।

1980 में शिवपुरी जिले की राजनीति में संघी विचारधारा के और जनसंघ दल के गोपालकृष्ण दंडोतिया और कांग्रेसी विचारधारा के हरिवल्लभ शुक्ला अपनी नई चमक के साथ दृष्टिगोचर हुए। दोनों राजनीतिज्ञों का भविष्य बड़ा उज्जवल माना जा रहा था। छात्र राजनीति से दोनों का दलगत राजनीति में आगमन हुआ था। दोनों की वक्तृत्वकला वेमिसाल थी।

कै. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के समक्ष जब गांधी चौक में गोपालकृष्ण दंडोतिया की दहाड़ गूंजी तो राजमाता ने उन्हें 1980 के विधानसभा चुनाव में शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से टिकट दे दिया और वह भी उस समय के हिस्ट्रीशीटर माने जाने वाले कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गौतम के मुकाबले। जिनकी राजनीति की अभी एबीसीडी भी शुरू नहीं हुई थी।

उस समय स्व. माधवराव सिंधिया जनसंघ छोडक़र कांग्रेस में शामिल हुए थे और उन्होंने शिवपुरी जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर अपने प्रति निष्ठावानों को टिकट दिए। उस समय हरिवल्लभ सिंधिया जी की गुड लिस्ट में थे। शिवपुरी से गणेश गौतम, कोलारस से पूरन सिंह बेडिय़ा, करैरा से दाऊ हनुमंत सिंह और पिछोर से भैया साहब लोधी को माधवराव सिंधिया ने कांगे्रसी उम्मीदवार बनाया और उन्हें जिताने का संकल्प लिया।

स्व.माधवराव के प्रति जनविश्वास इतना गहरा था कि प्रतिभा सम्पन्न गोपाल दंडोतिया शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए और सिंधिया जी के हरिवल्लभ सहित सभी पांचों उम्मीदवार विधायक पद का चुनाव जीत गए। गोपाल दंडोतिया की शिवपुरी से हार इस बात की परिचायक थी कि जिले में पांचों सीटों पर कांग्रेस की जीत उम्मीदवारों के प्रोफाईल के आधार पर नहीं बल्कि स्व. माधवराव सिंधिया के करिश्माई व्यक्तित्व के कारण हांसिल हुई थी।

लेकिन हरिवल्लभ ने यह आंकलन करने में भूल कर दी। उस समय विधायक बने पूरन सिंह बेडिय़ा और दाऊ हनुमंत सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं। भैया साहब लोधी और गणेश गौतम दोनों ही कांग्रेस में हैं। लेकिन दोनों ही पदों की दौड़ में राजनैतिक चर्चाओं से बाहर हो गए हैं। परंतु हरिवल्लभ, हरिवल्लभ है।

1980 मेें चुनाव जीतकर उनकी महत्वाकांक्षा ने जोर पकड़ा और उन्होंने चुनाव जीतने के बाद माधवराव सिंधिया से तुरंत अपना हाथ झटक लिया और वह स्व. विद्याचरण शुक्ला के कैम्प मेें चले गए। उस समय विधायकों का बहुमत शुक्ला गुट के पास था। यह बात अलग है कि इंदिरा गांधी के वीटो के कारण कम विधायक होने के बाद भी अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन हरिवल्लभ को भरोसा था कि देरसबेर शुक्ला गुट के उम्मीदवार शिवभानू सिंह सोलंकी मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन उनका अनुमान गलत साबित हुआ।

जिसका परिणाम यह हुआ कि हरिवल्लभ को 1985 और 1990 में तमाम प्रयासों के बाद भी सिंधिया की नकार के कारण टिकट नहीं मिला। 1993 में भी हरिवल्लभ ने टिकट के लिए बहुत हाथ पैर मारे। लेकिन माधवराव सिंधिया ने पोहरी से उनके स्थान पर बैजंती वर्मा को टिकट दिया। पार्टी से विरोध की हिम्मत हरिवल्लभ जुटा नहीं पाए लेकिन उन्होंने अपने भाई स्व. रंजीत शुक्ला को निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान मेें उतारा।

रंजीत शुक्ला बहुत मजबूती से चुनाव लड़े। लेकिन वह जीत नहीं पाए। हालांकि विजयी प्रत्याशी बैजंती वर्मा की टक्कर उनसे ही रही। इसके बाद हरिवल्लभ कांगे्रस से बाहर कर दिए गए। हरिवल्लभ पहले सामंतवाद के खिलाफ बोलते थे। फिर वह खुलकर मुखर अंदाज में महल के खिलाफ जमकर आग उगलने लगे। इससे महल विरोधियों के वह लाड़ले बने।

1998 के विधानसभा चुनाव से पूर्व हरिवल्लभ की कांग्रेस में वापिसी हुई और उस चुनाव में भी उन्होंने पोहरी से टिकट मांगा। लेकिन उस समय के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उन्हें पोहरी के स्थान पर शिवपुरी से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया के मुकाबले चुनाव मैदान में उतारा। अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया के राजनैतिक विरासत संभाल रही यशोधरा राजे का यह पहला चुनाव था और हरिवल्लभ भले ही शिवपुरी में रहते थे। लेकिन उनकी राजनैतिक कर्मभूमि तो पोहरी थी।

इसलिए यहीं माना जा रहा था कि कांगे्रस ने डमी केंडिडेट के रूप मेें हरिवल्लभ को चुनाव मैदान में उतारा है। लेकिन हरिवल्लभ का मूल्यांकन करने में भूल हुई और हरिवल्लभ ने एकतरफा समझे जाने वाले मुकाबले को रोचक बना दिया। यशोधरा राजे सिर्फ साढ़े 6 हजार मतों से चुनाव जीत पाईं। इस चुनाव में भी हरिवल्लभ ने महल विरोध का जमकर शंखनाद किया था।

2003 के विधानसभा चुनाव में जब उन्हें कांग्रेस से टिकट मिलने की आस नजर नहीं आई तो वह अंजान से समानता दल से टिकट ले आए और जीत भी गए। उस चुनाव में उन्होंने निवर्तमान भाजपा विधायक की जमानत जप्त करवा दी। महल विरोध की छवि के कारण भाजपा ने समानता दल के विधायक हरिवल्लभ शुक्ला को गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से उपचुनाव में रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले चुनाव मैदान में उतार दिया। हरिवल्लभ ने इस मुकाबले में भी जान डाल दी। सिंधिया 77 हजार से ही चुनाव जीत पाए। 

2008 के विधानसभा चुनाव में हरिवल्लभ शुक्ला बसपा प्रत्याशी के रूप में पोहरी से चुनाव लड़े भाजपा के विजयी प्रत्याशी प्रहलाद भारती से वह 25 हजार मतों से चुनाव हार गए। इसके बाद हरिवल्लभ का बसपा से मोह भंग हो गया और वह 2009 के लोकसभा चुनाव से पूर्व सिंधिया के प्रयासों से कांग्रेस में शामिल हो गए और अभी तक महल को निशाना बनाने वाले हरिवल्लभ सिंधिया शरणम गच्छामि हो गए।

इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेसियों के विरोध के बाद भी हरिवल्लभ को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट दिया और हरिवल्लभ महज साढ़े 3 हजार मतों से प्रहलाद भारती से चुनाव उस स्थिति में हार गए जबकि पोहरी के लगभग सभी कांग्रेसी उनके खिलाफ मैदान में थे।

2018 में उन्हें सिंधिया ने टिकट नहीं दिया और सिंधिया ने जब कांग्रेस छोड़ी तथा वह भाजपा में शामिल हुए तब हरिवल्लभ ने एक झटके में सिंधिया से पल्ला झाड़ लिया और वह उपचुनाव में कांगे्रस का झंडा लेकर सिंधिया के खिलाफ मैदान में खड़े हो गए। उन्होंने फिर से महल विरोध की कमान अपने हाथ में संभाल ली। नई परिस्थितियों में इसलिए उन्हेंं अधिक प्रासंगिक माना जा रहा है।

यहीं कारण है कि पोहरी उपचुनाव में हरिवल्लभ कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार हैं,लेकिन जितने दावेदार हैं उतना ही उनका विरोध हर बार उनका टिकिट की दौड में नाम सबसे आगे होता हैं लेकिन टिकिट ले जाता कोई ओर हैं। इस समय की बात करे टिकिट की दौड में पूर्व मंडी अध्यक्ष एनपी शर्मा,कांग्रेस युवा नेता रामवीर सिंह यादव, लक्ष्मीनारायण धाकड ओर एडवोकेट विनोद धाकड का नाम भी टिकिट की दौड में लिया जा रहा हैंं

लेकिन यह बात भी तय हैं कि 40 साल तक संघर्षपूर्ण स्थिति में राजनीति में सक्रिय रहना और अपनी मूल्यवता बनाए रखना भी हरिवल्लभ जैसे महारथी के ही वश की बात हैं।
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