श्रीमंत, आप ज्यादा समझदार हैं, सब कुछ जानते हैं, बस इतना याद दिलाना था कि... Ex-Rey@ Lalit Mudgal

Bhopal Samachar
शिवपुरी। 'आपकी बार सिंधिया सरकार' का नारे से विधानसभा का चुनाव का श्रीगणेश करने वाली कांग्रेस ने सिंधिया की दम पर सरकार बना ली, लेकिन सीएम की कुर्सी से सिंधिया को दूर रखा। सिंधिया सियायत नही समझ सके और सीएम की कुर्सी का त्याग करना पड़ा। प्रदेश के नाथ बने कमलनाथ। 

अभी तक आपने सिंधिया दरबार देखा होगा, लेकिन सिंधिया का जनदरबार नही। प्रदेश में कांग्रेस को वनवास मुक्त कराने वाले सिंधिया को कांग्रेस ने ही वनवास दे दिया। पावरलैस सिंधिया सरकार और महाराजा सिंधिया ने अपने आप को कॉमनमैन घोषित कर दिया, सवाल हवा में हैं आईए इन हवा में उठ रहे सवालो का एक्सरे करते हैं। 

कहते हैं समय बडा बलवान होता हैं, जिस सिंधिया समर्थक और सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि केपी यादव ने अशोकनगर में सबसे पहली बार, अबकी बार सिंधिया सरकार ने नारा दिया। टिकिट न दिए जाने पर सिंधिया का हाथ छोड़ भाजपा का दामन पकड लोकसभा चुनाव में अपने आका सिंधिया को ही हरा दिया। 

ग्वालियर के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया का शिवपुरी-गुना से लोकसभा हारना इस देश की लोकसभा चुनाव की 5 सबसे बडी खबरों मे से एक थी। चुनाव क्यो हारे कई सारे कारण गिने और गिनाए गए। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का गुरूवार का शिवपुरी में दौरा था सबसे ज्यादा चर्चा बना जन दरबार का। बात पूरी करनी हैं वह भी चुने गए कम शब्दो में। 

सिंधिया नाम नही ब्रांड मना जाता था, लेकिन चुनाव हारने के बाद हालात बदल गए हैं। पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनी फिर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने नहीं दिया और अब राज्यसभा के रास्ते में भी मीनाक्षी नटराजन आकर खड़ी हो गई है। बताने की जरूरत नहीं कि मीनाक्षी अकेली नहीं है। उनके पीछे वही ताकत खड़ी है ज्योतिरादित्य सिंधिया के जन्म के समय से महल की दीवार तोड़ने की कोशिश कर रही थी। 

अब चर्चा करते हैं सिंधिया के शिवपुरी के दौरे की, और सिंधिया दरबार की। सिंधिया के अभी तक के राजनीतिक कैरियर में चाहे वे केन्द्र में मंत्री रहे हो या सासंद, बॉम्बे कोठी पर सिंधिया दरबार लगा हैं। शिवपुरी में कभी जन दरबार नहीं लगा। पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जनता का दरबार लगाया और वह भी मुंबई कोठी के बाहर। प्रेस से बातचीत में उन्होंने खुद को आम आदमी घोषित किया। हालांकि उठ के स्वागत में सजाई गई सड़कें और उनके आसपास खड़े नेताओं की मुद्राएं, साफ बता रही थी कि 'आम आदमी' सिर्फ एक बयान है।

जैसा कि हमेशा होता है इस बार भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने और आम जनता के बीच किसी और नेता को खड़ा नहीं होने दिया। कुल मिलाकर इस प्रकार के कार्यक्रम के कारण जिले में चर्चा का विषय रहा। मजेदार बात यह है कि ताजा ताजा ' आम आदमी' हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को हवाई पट्टी से सर्किट हाउस तक पहुंचने में 2 घटें से भी अधिक का समय लगाया। कई जगह स्टेज बनाकर ' आम आदमी' का स्वागत किया गया। 6 बजे शुरू होने वाला जनदरबार देर रात में शुरू हुआ क्योंकि बहुत सारे पीड़ित आम आदमी तो पहुंच गए थे परंतु एक 'आम आदमी' समय पर नहीं आया था।

श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को अब तो समझ लेना चाहिए, उनके बयानों से कुछ नहीं होता। उनके आने से पहले और उनके जाने के बाद जो कुछ उनके समर्थक कहते हैं और करते हैं, उससे होता है। लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया से नफरत नहीं करते बल्कि अपने क्षेत्र के उस नेता से नफरत करते हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास होने का दावा करता है। लोकसभा चुनाव में लोगों ने उसी नेता के खिलाफ वोट किया था, क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद लोगों ने उस नेता का रंग बदलते हुए देख लिया था। लोग नहीं चाहते थे कि वह नेता तो 24 घंटे उन्हीं के आसपास रहता है, खुलेआम मनमानी करें। श्रीमंत, आप ज्यादा समझदार हैं। सब कुछ जानते हैं। बस इतना याद दिलाना था कि शिवपुरी के लोग पिछले 70 साल से बातों पर विश्वास करते आए हैं, अब उनका भरोसा टूट गया है। आम आदमी बयानों में नहीं जमीन पर भी दिखाई देना चाहिए।
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