पैर पकड़ने के बहाने महाराज के पैरो के नीचे की जमीन खींच ली गई, हार के बाद हासिए पर सिधिंया | Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में सिंधिया राजपरिवार के विरोधी कभी कम नहीं रहे। स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया जब कांग्रेस में थी तब उस समय के मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा से उनकी कभी पटरी नहीं बैठी जिसके कारण राजमाता ने 36 कांग्रेस विधायकों को तोडक़र डीपी मिश्रा को सीएम पद से बेदखल किया।

स्व. माधवराव सिंधिया भी एक ओर जहां लोकप्रिय जननेता थे वहीं मुख्यमंत्री पद के लिए भी पूरी तरह पात्र थे, लेकिन स्व. अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ने उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। ठीक उसी तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस में राजनैतिक विरोधियों की कोई कमी नहीं है।

लोकसभा चुनाव में सिंधिया की पराजय के पूर्व उनके कद को देखते हुए उनके विरोधी उनके खिलाफ मुंह नहीं खोल पाते थे, लेकिन लोकसभा में पराजय के बाद सारे विरोधी सिधिया के कद को कम करने में एक साथ पूरी ताकत से जुट गए और यही कारण है कि सिंधिया प्रदेशाध्यक्ष भी नहीं बन पा रहे हैं और उनके समर्थक मंत्री अपने प्रभाव को तलाशने में ही जुटे हैं।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था। सिंधिया ने कांग्रेस को जिताने के लिए खूब पसीना भी बहाया था और पूरे प्रदेश की खाक छानी थी लेकिन सिंधिया के खिलाफ चालें विधानसभा चुनाव के पूर्व ही चली जाने लगी थीं।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जब कमलनाथ को बनाया गया तब यह कहा गया कि प्रदेश में कांग्रेस यदि सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया होंगे। इसी दिलासा के कारण सिंधिया ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी और इसमें सफलता भी हासिल की, लेकिन जब कांग्रेस सत्ता में आ गई और मुख्यमंत्री पद का सवाल आया तो दावेदार दो थे एक तो सिंधिया और दूसरे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ।

ऐसे निर्णायक मौके पर राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ को समर्थन देकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री पद से वंचित कर दिया। दिग्गी राजा के समर्थन के कारण मुख्यमंत्री कमलनाथ अभी भी अभिभूत है। कमलनाथ के जन्मदिवस पर जो विज्ञापन प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा जारी किया गया था उसमें यह भी लिखा था कि कमलनाथ दिग्विजय सिंह के समर्थन के कारण मुख्यमंत्री बने हैं।

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की ताकत को देखते हुए राहुल गांधी ने भी ज्योतिरादित्य सिंधिया से पल्ला झाड़ लिया था। इसके बाद से ही सिंधिया खेमे में नाराजगी बनी हुई थी। लोकसभा चुनाव में सिंधिया जब अपनी परंपरागत सीट से चुनाव हार गए तो उनका राजनैतिक वजन भी कम हो गया इससे विरोधियों के हौंसले बुलंद हो गए।

लोकसभा चुनाव हारने के बाद सिंधिया के पैरो के नीचे की जमीन ही खीच गई,पार्टी सिंधिया को लगातार हाासिए पर फैक दिया। खबर की हैडलाईन इस खबर को दोनो ओर इंगित करती है। सिंधिया के हार के बाद उनका पार्टी में वजन तो कम हुआ है। चुनाव वे भाजपा के खिलाफ लडे थे, लेकिन इस हार में स्वंय सिंधिया के समर्थको का कम योगदान नही रहा हैं।

सिंधिया समर्थको के चरण पकडने वाली राजनीति में सत्य गायब हो गया। चुनाव का सही आकलन नही दिया गया बस जीत के आंकडे पकडा रहे थें। यह कारण भी सिंधिया के कार का एक बडा कारण हो सकता हैं,पैर पकडने के बहाने सिंधिया के पैरो के नीचे की जमीन खीच ली। अब पार्टी चुनाव हारने के कारण सिंधिया विरोधी भी जमीन खीचने का प्रयास कर रहे है और साफ दिख्राई भी दे रहा हैं।

लेकिन उनके समर्थक सदा उनके साथ पूरे जोश के साथ नजर आते हैं,और अब अपने नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे है। लेकिन इस मांग को भी कांग्रेस ने पूरा नहीं किया और सिंधिया आज भी प्रदेशाध्यक्ष पद की तलाश में जुटे हुए हैं। सिंधिया की अपनी ही सरकार से नाराजगी की दूसरी वजह यह मानी जा रही है कि उनके समर्थक मंत्रियों को सरकार में उतना महत्व नहीं मिल रहा जितना मिलना चाहिए था।

कैबिनेट बैठक में सिंधिया खेमे के र्मंत्री प्रद्युम्र सिंह तोमर और सुखदेव पांसे के बीच विवाद पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने श्री तोमर को झिडक़ा था और उनसे यह भी कहा था कि मुझे मालूम है कि तुम किसके इशारे पर यह सब कर रहे हो। सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने कई बार यह भी आरोप लगाया कि प्रदेश के अधिकारी उनकी नहीं सुन रहे हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी ने यहां तक कह दिया कि हमारे विभाग के अधिकारियों का तबादला हो जाता है और हमें पता भी नहीं चलता। प्रदेश सरकार में दिग्विजय सिंह की सक्रियता से भी सिंधिया और उनके खेमे में नाराजगी है।

शपथ ग्रहण के बाद दिग्विजय सिंह मंत्रियों के साथ कैबिनेट बैठक करते हुए देखे थे और यह फोटो सोशल मीडिया की भी सुर्खियां बनी थी। प्रदेश सरकार के कई कार्यक्रमों में दिग्विजय सिंह मौजूद रहते हैं और उनकी छवि सुपर सीएम के रूप में नजर आती है। जबकि सिंधिया अपने ग्वालियर संभाग तक ही सीमित बने हुए हैं और वह अपनी ही सरकार में उपेक्षित बने हुए हैं।

सिंधिया ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने का समर्थन कर  अपनी ही पार्टी को संकट में डाल दिया था इस समर्थन के बाद पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से दूरी बना ली थी। राहुल गांधी के इस्तीफा देने और सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने से भी सिंधिया अकेले पड़ गए हैं।

सिंधिया और सोनिया गांधी के बीच मुलाकात की तारीख भी तय हुई थी, लेकिन सोनिया गांधी ने सिंधिया से मुलाकात भी नहीं की जबकि इसके बाद सोनिया गांधी और कमलनाथ की कई मुलाकातें हो चुकी है। किसान कर्जमाफी को लेकर भी सिंधिया की मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी सरकार से नाराजगी बनी हुई है।

सिंधिया ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि हमने दो लाख रूपए तक के किसानों के कर्जे माफ करने का वादा किया था लेकिन किसानों का केवल 50 हजार रूपए का कर्ज माफ हुआ है। 

इस तरह से कांग्रेस और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच लगातार दूरियां बढ़ती जा रही हैं देखना यह है कि इन दूरियों का परिणाम क्या सिंधिया के पार्टी छोडऩे के रूप में सामने आएगा अथवा वह अपनी ही पार्टी में बने रहेंंगे। और आज सोशल पर किया गया सिंधिया का धमाका इसी ओर इंगित करता हैं।