शिवपुरी। शहर या कस्बे में अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी स्थानीय निकाय की होती है,लेकिन यहां मामला निकाय के सीएमओ आवास पर ही अतिक्रमण का है और अतिक्रमण करने वाला व्यक्ति नगर परिषद का कर्मचारी है,निकाय अपने ही कर्मचारी से संपत्ति का मुक्त नहीं करा पा रही है। इसके लिए आंदोलन तक हुए थे,वही इस मामले को उलझाने के लिए शातिर कर्मचारी ने न्यायालय का सहारा लिया था,न्यायालय ने भी इस मामले को भी अतिक्रमण माना है,उसके बावजूद भी प्रशासन इस परिषद के अदने से कर्मचारी से परिषद के मुख्य अधिकारी सीएमओ का आवास खाली नहीं करा सकी है।
पहले समझे आप मामले को
बैराड नगर परिषद जब ग्राम पंचायत थी उस समय ग्राम पंचायत कालामढ़ द्वारा सरकारी बजट से मनोरंजन भवन का निर्माण कराया था। जब बैराड़ नगर पंचायत अस्तित्व में आई तो ग्राम पंचायत कालामढ का विलय बैराड़ नगर पंचायत में हो गया और यह भवन नगर पंचायत की समिति की सूची में आ गया। इस कारण इस भवन में सीएमओ निवास बनाया गया था। लेकिन बाद में इस भवन में नगर पंचायत बैराड के कर्मचारी संजय गुप्ता इस भवन में अपने परिवार सहित निवास करने लगा।
दुकानो का अवैध निर्माण,बैराड का जनमानस हडताल पर
बाद में इस भवन के पास स्थित सरकारी भूमि में दो दुकानों का अवैध निर्माण संजय गुप्ता के द्वारा करा लिया गया। जब यह निर्माण किया जा रहा था उस समय इस भवन को खाली कराने के बैराड़ की जनता को भूख हड़ताल पर बैठना पडा। प्रशासन के आश्वासन के बाद हड़ताली उठ गए लेकिन प्रशासन इस भवन को खाली नहीं करा सका है।
कर्मचारी के अपने पिता की संपत्ति मानते हुए न्यायायल की शरण में
दावा था कि वादी को 29 अप्रैल 1989 को ग्राम पंचायत बैराड़ द्वारा आवासीय प्रयोजन के लिए एक भूखंड आवंटित किया गया था, जिस पर उन्होंने मकान बनाकर अपना निवास शुरू किया। वादी ने तहसीलदार और नगर परिषद की कार्यवाही को चुनौती देते हुए संपत्ति पर अपना मालिकाना हक घोषित करने और उसे ढहाने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी।
न्यायालय ने माना अवैध आवंटन
अदालत ने पाया कि जिस जमीन (सर्वे नंबर 872) पर मकान बना है, वह सरकारी रिकॉर्ड में 'पठार' दर्ज है और 'आबादी भूमि' नहीं है। मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 244 के तहत ग्राम पंचायत को ऐसी भूमि आवंटित करने का अधिकार ही नहीं है; यह अधिकार केवल तहसीलदार के पास है।
फर्जीवाड़े का संदेह: सरकारी पक्ष ने दलील दी कि वादी का पुत्र संजय गुप्ता नगर परिषद में रिकॉर्ड शाखा का प्रभारी रहा है और उसने अपने पद का दुरुपयोग कर भवन पंजी में हेरफेर करके अपने पिता का नाम दर्ज किया। अदालत ने दस्तावेजों के अवलोकन में पाया कि रजिस्टर में पहले दर्ज किसी अन्य नाम को इस तरह से काटा गया था कि उसे पढ़ा न जा सके और उसके नीचे शिवनारायण का नाम लिख दिया गया।
अंतिम निर्णय
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वादी यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा कि उसे जमीन का वैध आवंटन हुआ था। इस आधार पर, विचारण न्यायालय (व्यवहार न्यायाधीश वरिष्ठ खंड पोहरी) द्वारा 30 अप्रैल 2025 को दिए गए उस निर्णय की पुष्टि की गई जिसमें वादी के दावे को खारिज किया गया था। अदालत ने आदेश दिया कि दोनों पक्ष मुकदमे का अपना-अपना खर्च स्वयं वहन करेंगे
पहले समझे आप मामले को
बैराड नगर परिषद जब ग्राम पंचायत थी उस समय ग्राम पंचायत कालामढ़ द्वारा सरकारी बजट से मनोरंजन भवन का निर्माण कराया था। जब बैराड़ नगर पंचायत अस्तित्व में आई तो ग्राम पंचायत कालामढ का विलय बैराड़ नगर पंचायत में हो गया और यह भवन नगर पंचायत की समिति की सूची में आ गया। इस कारण इस भवन में सीएमओ निवास बनाया गया था। लेकिन बाद में इस भवन में नगर पंचायत बैराड के कर्मचारी संजय गुप्ता इस भवन में अपने परिवार सहित निवास करने लगा।
दुकानो का अवैध निर्माण,बैराड का जनमानस हडताल पर
बाद में इस भवन के पास स्थित सरकारी भूमि में दो दुकानों का अवैध निर्माण संजय गुप्ता के द्वारा करा लिया गया। जब यह निर्माण किया जा रहा था उस समय इस भवन को खाली कराने के बैराड़ की जनता को भूख हड़ताल पर बैठना पडा। प्रशासन के आश्वासन के बाद हड़ताली उठ गए लेकिन प्रशासन इस भवन को खाली नहीं करा सका है।
कर्मचारी के अपने पिता की संपत्ति मानते हुए न्यायायल की शरण में
दावा था कि वादी को 29 अप्रैल 1989 को ग्राम पंचायत बैराड़ द्वारा आवासीय प्रयोजन के लिए एक भूखंड आवंटित किया गया था, जिस पर उन्होंने मकान बनाकर अपना निवास शुरू किया। वादी ने तहसीलदार और नगर परिषद की कार्यवाही को चुनौती देते हुए संपत्ति पर अपना मालिकाना हक घोषित करने और उसे ढहाने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी।
न्यायालय ने माना अवैध आवंटन
अदालत ने पाया कि जिस जमीन (सर्वे नंबर 872) पर मकान बना है, वह सरकारी रिकॉर्ड में 'पठार' दर्ज है और 'आबादी भूमि' नहीं है। मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 244 के तहत ग्राम पंचायत को ऐसी भूमि आवंटित करने का अधिकार ही नहीं है; यह अधिकार केवल तहसीलदार के पास है।
फर्जीवाड़े का संदेह: सरकारी पक्ष ने दलील दी कि वादी का पुत्र संजय गुप्ता नगर परिषद में रिकॉर्ड शाखा का प्रभारी रहा है और उसने अपने पद का दुरुपयोग कर भवन पंजी में हेरफेर करके अपने पिता का नाम दर्ज किया। अदालत ने दस्तावेजों के अवलोकन में पाया कि रजिस्टर में पहले दर्ज किसी अन्य नाम को इस तरह से काटा गया था कि उसे पढ़ा न जा सके और उसके नीचे शिवनारायण का नाम लिख दिया गया।
अंतिम निर्णय
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वादी यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा कि उसे जमीन का वैध आवंटन हुआ था। इस आधार पर, विचारण न्यायालय (व्यवहार न्यायाधीश वरिष्ठ खंड पोहरी) द्वारा 30 अप्रैल 2025 को दिए गए उस निर्णय की पुष्टि की गई जिसमें वादी के दावे को खारिज किया गया था। अदालत ने आदेश दिया कि दोनों पक्ष मुकदमे का अपना-अपना खर्च स्वयं वहन करेंगे