लाखो का पैकेज छोड़ नौकरी को छोड़ खेत को ही बना दिया खाद बनाने की फैक्ट्री- Shivpuri News

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शिवपुरी।
कहते है कि अगर पढ़ जाओगे तो नौकरी मिल जाएगी,इसलिए परिजन अपनी आधी कमाई का हिस्सा बच्चों की पढाई पर खर्च कर रहे है,लेकिन यहां उदाहरण उल्टा ही देखने का मिल रहा हैं एग्जीक्यूटिव की नौकरी छोड़ पुनः खेती की ओर लौटा किसान पुत्र परंपरागत जैविकता की ओर लौट आया और अपने खेत को फैक्ट्री बना दिया।

शिवपुरी के झुंड गांव में रहने वाले एक किसान त्रिलोचन सिंह ने पंद्रह साल तक एक निजी कंपनी में 50 हजार रुपये की एग्जीक्यूटिव की नौकरी करने के बाद अपने गांव वापसी की और फिर फिर बेहद छोटे छह बीघा के खेत को एक फैक्ट्री बना दिया। अब इस युवा को क्षेत्र के लोग आधुनिक किसान के रूप में पहचानते हैं। यह अपने छह बीघा के खेत में गौ.उत्पादन के साथ.साथ, वर्मीकम्पोस्ट खाद, गोमूत्र, वर्मीवाश उत्पादन आदि करता है।

खुद की खेती में तो इनका उपयोग करता ही है साथ ही दूसरों को भी बेचता है। उक्त किसान को जिला स्तर पर आत्मा योजना के तहत प्रशासन द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। वहीं जैविक खेती अपना कर करैरा के खेराघाट की एक बहुत छोटी महिला किसान उषा परिहार मास्टर ट्रेनर बन चुकी है और दूसरे राज्यों में बतौर ट्रेनर जाती है।

गाय के दूध, गोबर और मूत्र तीनों से बन रहा पैसा

त्रिलोचन के अनुसार वह करीब दस साल पहले नौकरी छोड़ कर गांव आया और फिर उसने कृषि वैज्ञानिकों के चर्चा कर खेत में टमाटर की खेती शुरू की। कुछ दिनों बाद टमाटर की खेती के साथ उसने गौ.पालन शुरू कर दिया। त्रिलोचन के अनुसार वह गाय के दूध को बाजार में बेचने लगाए जिससे उसे आय होने लगी।

गायों से हर रोज बहुत सा गोबर एकत्रित हुआ तो कृषि विज्ञान केंद्र ने उसे बर्मीकम्पोस्ट और गोबर गैस के लिए प्रेरित किया। त्रिलोचन ने वैज्ञानिकों के कहने पर गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाना शुरू किया तो लोग इसे भी खरीद कर ले जाने लगे। त्रिलोचन बताते हैं कि बर्मीकम्पोस्ट में उन्हें लागत से तीन गुना कीमत मिलती है। त्रिलोचन ने अपनी गायों के तबेले में पक्का फर्स करवा कर उस पर रबर के गद्दे बिछवा दिए हैं, इससे उसे गौमूत्र मिलने लगा।

त्रिलोचन बताते हैं कि गौमूत्र का छिड़काव खेतों में कीटनाशक की तरह काम करता है, इसके अलावा सर्दियों में गोबर गैस में कम गैस बनती है तो वह गौमूत्र का प्रयोग गोबर गैस में करता हैए जिससे गैस अधिक बनने लगती है। गोबर गैस के कारण उसे ईंधन पर एक रुपये भी खर्च नहीं करना पड़ता है। इसके अलावा उसने अपने खेत में वर्मी वाश की यूनिट भी लगा रखी है। इस यूनिट में वह वर्मी वाश का उत्पादन करना है। त्रिलोचन के अनुसार वर्मी वाश का प्रयोग वह खेती में करना है, यह पौधों के लिए काफी लाभदायक है। त्रिलोचन के अनुसार खेती में वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करने से उसके खेत में खाद की लागत कम हो गई क्योंकि लगातार प्रयोग करने पर बर्मी कम्पोस्ट खाद खेत में तीन साल तक काम करती है, उससे खाद की लागत साल दर साल कम होती चली जाती है। वह गोमूत्र से बीज उपचार, कीटनाशक आदि का निर्माण करता हैए बर्मी वास का प्रयोग भी वह खेती में अच्दे उत्पादन के लिए करता है। इससे उसके टमाटर का साइज बड़ा होने के साथ.साथ उस पर चमक आती है और यह रसायन से मुक्त होता है। ऐसे में व्यापारी उसके टमाटर को खेत से ही खरीद कर ले जाते हैं।

बाजार से दोगुना भाव लेकर बेचती है गेहूं, मूंगफली

करैरा के ग्राम खेराघाट की महिला किसान उषा परिहार चार बीघा के खेत में जैविक खेती करती है। महिला के अनुसार उसने कम जमीन से अधिक मुनाफा कमाने के लिए जैविक खेती अपनाई। बकौल उषा उसने सबसे पहले जैविक खेती का प्रशिक्षण लिया। इस प्रशिक्षण में उसे जो कुछ सिखाया गया उसने उसे अक्षरहरू अपनाना शुरू कर दिया तो वह गांव में जैविक खेती का रोल माडल बन गई।

अब गांव की 32 अन्य महिलाएं उसकी तर्ज पर खेती कर रही हैं। इतना ही नहीं वह राज्य की तरफ से जिले में मास्टर ट्रेनर भी हैं और तीन बार पंजाब तथा दो बार उत्तर प्रदेश जाकर किसानों को जैविक खेती की का प्रशिक्षण भी दे चुकी हैं। उषा बताती हैं कि वह चार बीघा के खेत में 25 से 30 क्विंटल गेहूं का उत्पादन करती हैं और बाजार से दोगुने भाव पर उनका गेहूं घर से ही बिक जाता है। उषा के अनुसार इस साल उन्होंने 32 रुपये किलो के भाव से अपना गेहूं घर से ही बेच दिया।

बीजोपचार से लेकर खाद सब खेत पर

उषा के अनुसार वह गौमूत्र, गुड़ हल्दी, पानी, चूना से दबा बनाकर खुद ही बीजोपचार करती हैं और उनके यहां मौजूद एक गाय व दो बछड़ों के गोबर से बर्मी कम्पोस्ट खाद बनाती हैं। इसके अलावा खेती में जब कीटनाशक की आवश्यकता होती है तो वह भी वह गौमूत्र की मदद से खुद ही बनाती हैं। इससे न सिर्फ लागत घटती है बल्कि दाम भी दोगुने मिलते हैं।

वह बताती हैं कि लोग सोचते हैं एक गाय के गोबर से वर्मी कम्पोस्ट खाद कैसे बनाया जा सकता है, लेकिन लोग यह नहीं जानते एक गाय दिन भर में दस किलो गोबर देती हैए जो महीने भर में 300 किलो होता है और साल भर में 3600 किलो। क्या इतने गोबर से वर्मी कम्पोस्ट खाद नहीं बन सकता हैघ् उषा कहती है कि वह इस वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग न सिर्फ अपने खेत में करती है बल्कि शेष को बाजार में बेच भी देती है। शून्य लागत से तैयार इस वर्मी कम्पोस्ट को वह बाजार में एक हजार रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचती है।

पहले ताने मिले और फिर मिला सम्मान

उषा परिहार के अनुसार जब वह राज्य की तरफ से मास्टर ट्रेनर बनाई गईं और वह अन्य राज्यों में ट्रेनिंग देने गई तो गांव वालों ने उसे तमाम तरह के ताने दिए। बकौल उषा लोगों ने यहां तक कहा कि अब यह पंजाब से लौट कर वापिस नहीं आएगी। यह अपने पति को छोड़ जाएगी लेकिन जब उसकी सफलता ने आयाम गढ़े तो लोगों ने उसे खुद व खुद सम्मान देना शुरू कर दिया।उषा के अनुसार अब गांव की 32 अन्य महिलाएं भी उसके पैटर्न पर खेती कर रही हैं।
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