2004 के नपाध्यक्ष चुनाव में यशोधरा राजे की अनदेखी भाजपा को भारी पड़ी, निर्दलीय सेंगर जीते थे चुनाव- Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। नपाध्यक्ष पद के पहले चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के भाजपा प्रत्याशी माखनलाल राठौर चमत्कारिक रूप से यशोधरा राजे सिंधिया के करिश्माई नेतृत्व के कारण विजयी होने में सफल रहे थे। दूसरे नपाध्यक्ष पद के चुनाव में यह पद सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हुआ। उस चुनाव में भाजपा ने इलाके में अच्छा जनाधार रखने वाली विधायक यशोधरा राजे सिंधिया की अनदेखी की और उनकी इच्छा के विरूद्ध उस समय की मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती ने पूर्व विधायक देवेंद्र जैन को उम्मीदवार बना दिया।

उस दौरान यशोधरा राजे सिंधिया और साध्वी उमा भारती भले ही एक दल में थीं। लेकिन उनके रिश्तों में वह गर्माहट नहीं थी। इसी कारण 25 हजार से अधिक मतों से जीतने के बाद भी उमा भारती ने यशोधरा राजे सिंधिया को पहले अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया और फिर नपाध्यक्ष पद के चुनाव में यशोधरा राजे की इच्छा के विपरीत पूर्व विधायक देवेंद्र जैन को प्रत्याशी घोषित कर दिया।

कांग्रेस ने पूर्व नपाध्यक्ष गणेशी लाल जैन को उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के प्रत्याशी जनता को रास नहीं आए और यशोधरा राजे की उपेक्षा से भी जनता खिन्न रही। जिसका परिणाम यह हुआ कि जनता ने पहली बार इतिहास बनाते हुए निर्दलीय जगमोहन सिंह सेंगर को अध्यक्ष बना दिया।

शिवपुरी जिले की राजनीति में यशोधरा राजे सिंधिया 1989 से सक्रिय हैं और उनका राजनीति में प्रवेश भी अचानक हुआ। वह अपनी मां की इच्छा से राजनीति में आर्इं और उनके आदेश को शिरोधार्य कर वह भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी स्व. सुशील बहादुर अष्ठाना को जिताने में जुट गईं। तकनीकी गड़बड़ी के कारण श्री अष्ठाना को पार्टी का अधिकृत चुनाव चिन्ह आवंटित नहीं हो पाया था। लेकिन वह थे भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी। लेकिन जिन विनोद गर्ग टोडू को पार्टी का चुनाव चिन्ह आवंटित हुआ था।

वह बगावती प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। ऐसे में उस प्रत्याशी के लिए प्रचार करना जिसके पास भाजपा का अधिकृत चुनाव चिन्ह नहीं है, राजमाता साहब के लिए मुश्किल लग रहा था। इस धर्म संकट में उन्होंने श्री अष्ठाना को जिताने की जिम्मेदारी अपनी छोटी बेटी यशोधरा राजे सिंधिया को सौंपी जो अभी तक राजनीति में सक्रिय नहीं थीं। यशोधरा राजे ने इस जिम्मेदारी का निर्वहन किया और वह स्व. सुशील बहादुर अष्ठाना को भारी बहुमत से चुनाव जीतने में सफल रहीं।

इसके बाद इलाके की राजनीति में अपने मृदु व्यवहार, मिलनसारिता और सहजता से यशोधरा राजे जनता के दिलों में छा गई। 1993 में उन्होंने देवेंद्र जैन को शिवपुरी से विधायक बनवाया। 1998 में वह खुद विधायक बनीं और 2004 के चुनाव में वह 25 हजार से अधिक मतों से शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से विजयी रहीं। इसके पूर्व 1999 के नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में यशोधरा राजे का करिश्माई नेतृत्व देखने को मिला। जब उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से भाजपा के कमजोर माने जाने वाले प्रत्याशी माखनलाल राठौड़ को चुनाव जितवा दिया। यशोधरा राजे का शिवपुरी जिले की राजनीति में वर्चस्व स्थापित हो चुका था।


2004 में प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई और साध्वी उमा भारती की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी हुई। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उमा भारती ने पात्रता के बावजूद भी यशोधरा राजे सिंधिया को अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया। यहीं कहीं 2004 के नपाध्यक्ष पद के चुनाव में उमा भारती ने यशोधरा राजे की राय को दरकिनार करते हुए एक तरफा रूप से पूर्व विधायक देवेंद्र जैन को टिकट दे दिया। तर्क यह दिया गया कि शिवपुरी नगर पालिका क्षेत्र में वैश्यों को वर्चस्व है और वह आसानी से चुनाव जीत जाएंगे।

कांग्रेस ने भी वैश्य उम्मीदवार पर दाव लगाया और उस समय के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गणेशीलाल जैन को कांग्रेस उम्मीदवार घोषित किया। 1977 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के वैश्य उम्मीदवार थे। कांग्रेस की ओर से जहां गणेशीलाल जैन मैदान में थे, वहां भाजपा ने महावीर जैन को टिकट दिया था। उस चुनाव में महावीर जैन विजयी होने में सफल रहे थे। लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में जब दोनों दलों ने वैश्य उम्मीदवार को टिकट दे दिया तो इसकी प्रतिक्रिया अन्य समाजों में काफी तीखी रही। जगमोहन सिंह सेंगर ने कांग्रेस टिकट के लिए पूरी कोशिश की।

लेकिन जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वह निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में आ डटे। श्री सेंगर 1999 में नगर पालिका उपाध्यक्ष पद पर विजयी रहे थे और उपाध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल एक अच्छा कार्यकाल माना जाता था। इसके बावजूद भी यह नहीं लग रहा था कि वह चुनाव जीतने की दौड़ में हैं। यहीं संभावना व्यक्त की जा रही थी कि देवेंद्र जैन या गणेशलाल जैन में से कोई एक प्रत्याशी विजयी होगा। जनता के पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है, ऐसा सोचा जा रहा था। लेकिन जनता के मन में कुछ और था।

यशोधरा राजे सिंधिया की जब अनदेखी हुई तो उन्होंने चुनाव प्रचार से दूरी बना ली और तटस्थता की मुद्रा अपना ली। उनके समर्थक भी भाजपा के प्रचार-प्रसार से दूर हो गए। कांग्रेस में भी गणेशी लाल जैन की उम्मीदवारी से नाराजी थी। पूर्व युवक कांग्रेस अध्यक्ष रामकुमार शर्मा एण्ड कम्पनी अप्रत्यक्ष रूप से जगमोहन सिंह के प्रचार में जुट गए। कांग्रेस और भाजपा के बडी संख्या में कार्यकर्ता जगमोहन सिंह का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग देने लगे।

श्री सेंगर के पक्ष में धनपतियों ने अपनी तिजोरी खाली करना शुरू कर दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि मतदान के एक दिन पूर्व श्री सेंगर जीत की रेस में मजबूती से शामिल हो गए और परिणाम जब निकला तो श्री सेंगर लगभग 10 हजार मतों से चुनाव जीत गए। कांग्रेस प्रत्याशी को अपनी जमानत से हाथ धोना पड़ा।

उस चुनाव में शिवपुरी की जनता ने कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों को अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया था। एक ऐसा इतिहास बन गया। जिसकी अभी तक पुनरावृत्ति नहीं हुई है। यशोधरा राजे के प्रति जो विश्वास उस चुनाव में जनता के मन में कायम था, उसमें आज भी लेशमात्र कमी नहीं आई है।
G-W2F7VGPV5M