अनंत चौदहस: क्या हैं अनंत और यह किसका रूप हैं और इसे क्यो बाजू पर बांधा जाता हैं,गणेश जी का विसर्जन इसी दिन क्यो - Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। 19 सितंबर रविवार को अंनत चौदहस हैं। हम सभी प्राय जानते हैं कि इस दिन गणेश जी का जल में विसर्जन किया जाता है। एक धागा जिसमें कुछ गाठे लगी होती हैं हमारे घर के बुर्जग हमारे हमारी बाजू पर बांधते हैं,लेकिन इस धागे को अंनत क्यो कहा जाता हैं और अनंत चौदहस के दिन ही गणेशजी का विसर्जन क्यो होता हैं। आईए जानते हैं इन सभी सवालो के जबाब पाने की कोशिश करते हैं,क्यो की सनातन हिन्दू धर्म में अंनत चौदहस का दिन बडा ही महत्वपूर्ण है।

जैसा कि आपने और हमने सुना हैं,हरि अनंत और कथा अंनता अर्थ सीधा सा है कि हरि अनंत हैं श्रीहरि अर्थात श्रीविष्णु भगवान उन्है इस सृष्टि का पालनहार कहा जाता हैं। अनंत चौहहस का दिन भगवान विष्णु का दिन हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती हैं।

अंनत जो हाथ पर बांधा जाता हैं वह क्या हैं, और इस धागे में चौदह गाँठें क्यो

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनंत भगवान (भगवान विष्णु) की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है। ये कपास या रेशम का धागा होता हैं और इनमें चौदह गाँठें होती हैं। यह चौहह गाँठें भगवान श्रीहरि के चौरह अवतारो का प्रतीक हैं और अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी।

इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, और भगवान श्रीहरि ने अपने दो पग में आकाश धरती और पताल का नाप दिया था,जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। पुरुष अनंत सूत्र को दांये हाथ में और महिलाएं बांये हाथ में बांधे।

अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

यह हैं अनंत चौदहस का व्रत और पूजा विधि और कथा जो श्रीकृष्ण ने बताई थी

अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है। यह पूजा दोपहर के समय की जाती है।

इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर कलश स्थापना करें। कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें या आप चाहें तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगा सकते हैं।

इसके बाद एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए। इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें। अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें।

अनंत चतुर्दशी की कथा

महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे। भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं। युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें।

इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला।

और अंत में श्रीगणेश की विदाई का दिन अनंत चौहरस क्यो

अंनत चौदहस को भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। अनंत जिसका कोई अंत नही होता हैं। हम गणेशजी का विसर्जन इस श्रृद्धा के साथ करते हैं कि हे गणेश जी हमारे सभी कार्य पूर्ण करना ओर आप अगले वर्ष आना,अर्थात माना जाता है कि श्रीगणेश जो देवताओ में प्रथम पूज्य माने गए हैं और प्रथम पूज्य देवता के प्रति यह 10 दिन की श्रृद्धा हमारे आने वाले अनंत दिनो तक रहे,और अगले वर्ष श्रीगणेश हमारे घर पधारे और यह क्रम अनंत काल तक चलता रहे। अनंत का एक और अर्थ होता हैं जिसका अंत नही हैं और प्रथम देव श्रीगणेश के प्रति हमारी श्रृद्धा कभी कम न हो,इस कारण ही अनंत चौदहस के दिन श्रीविध्नहर्ता को जल में विर्सजन किया जाता हैं।


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