हत्यारे ने डॉक्टर को बताया: भगवान का आदेश था इसलिए रॉड मारी और वह मर गया - Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। शिवपुरी जेल में बंद बंदियो का स्वास्थय परिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में जेल में बंद कैदियो का स्वास्थय परिक्षण किया गया। डॉक्टरो ने बंदियो से अपराध क्यो किया ऐसा सवाल किया तो कई बंदियो ने अजीब जबाब दिए। एक बंदी ने कहा कि भगवान का ओदश था इसलिए मैनें उसमें रॉड मारी और वह मर गया।

बंदी का जवाब सुन डॉक्टर व्यास ने कहा कि यह मानसिक बीमारी है। और इसे सीजोफ्रेनिया कहते हैं और इसका पूरा इलाज होगा। जब निश्चित समय तक तुम दवा खाओगे तब इस बीमारी से बचोगे। डॉक्टरं की इस सलाह के बाद बंदी ने दवा टाइम से लेने की बात कही।

दरअसल शिवपुरी जेल में बंद बंदियों के लिए स्वास्थ्य परीक्षण में 8 से अधिक मरीज ऐसे निकले जिनको सीजोफ्रेनिया, मानसिक अवसाद और बायपोलर डिस्ऑर्डर के मरीज मिले। इन बंदियों की विशेष निगरानी के साथ इनके समय पर दवा खाने की निगरानी करने के निर्देश भी जेलर को डॉक्टर्स टीम द्वारा दिए गए।

मानसिक अवसाद जैसी इन तीनों बीमारियों के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉक्टर अर्पित बंसल मानसिक रोग चिकित्सक और नशा मुक्ति केंद्र प्रभारी ने कहा कि

सीजोफ्रेनिया

जब व्यक्ति को (हेल्युशिनेशन) यानि रस्सी को सांप समझना, बेवजह शक करना, मानसिक अवसाद की श्रेणी में आता है। इसमें अपराधी को ऐसा लगता है कि कोई उसके कान भर रहा है और उसने जो अपराध किया है वह इसलिए किया है कि भगवान सपने में आए थे और उसे अपराध के लिए प्रेरित किया इसलिए यह बीमारी है इसका इलाज आवश्यक है।
मानसिक अवसाद: मानसिक अवसाद में व्यक्ति तब आता है जब वह नशा करके छोड़ता है उस दौरान यदि उसे सही मार्गदर्शन मिल जाए तो उसकी दशा बदल सकती है।

बाइपोलर डिसऑर्डर

यानि व्यक्ति मीनिया में चला जाता है,यानि पागलपन की हद तक पहुंच जाता है। इसका दूसरा छोर डिप्रेशन है यानि नैराश्य भाव में चला जाता है।इन तीनों तरह के 10 के करीब मरीज जेल में मिले जिनका इलाज चल रहा है। यह नशा, ड्रग्स और नशीली वस्तुओं के सेवन से होता है।

टीबी और एड्स मरीजों का भी चल रहा है इलाज

डॉ. आशीष व्यास की मानें तो जेल में एड्स के 7 कैदी हैं। जिन्हें रिट्रो वायरल थैरेपी दी जा रही है। इसी तरह से टीबी के मरीज को भी उपचारित किया जा रहा है। सर्किल जेल में लगे स्वास्थ्य शिविर के दौरान नेत्र रोग से पीड़ित 75 बंदियों का परीक्षण नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. गिरीश चतुर्वेदी ने किया जिसमें से 52 नेत्र रोगियों का परीक्षण करने के बाद 18 बंदियों को चश्मे के नंबर वितरित किए गए।
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