लागत हुई दो गुनी,आर्थिक तंगी से गुजर रहे किसान,कैसे लाभ का धंधा बनाए खेती को ? - Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। किसानों की आय को दोगुनी करने एवं कृषि को लाभ का धंधा बनाने की बात सरकार के प्रतिनिधियों के मुख से सार्वजनिक मंचों से खूब सुनाई पड़ती हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं। पिछले दो साल में खेत की जुताई से लेकर खाद, बीज, कीटनाशक दवायें, सिंचाई, कटाई व थ्रेसिंग महंगी होने के कारण किसानों की हालत दयनीय हो गई। प्राकृतिक आपदा की मार से भी फसलें बर्वाद हो रही हैं।

बर्वाद फसलों का उचित मुआवजा समय पर न मिलने के कारण किसान आज मजदूरों से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं। गांव में चर्चा के दौरान जो बात सामने निकल कर आई की किसान अपने बच्चों को खेती के धंधे से दूर रखना चाहता हैं। गांव के युवा कृषि कार्य को छोड़कर नौकरी की तलाश शहर की ओर पलायन कर रहा हैं। इन परिस्थितियों के चलते किसानों की आय को कैसे दोगुना किया जा सकता हैं और खेती कैसे बनेगी लाभ का धंधा।

पेट्रोल डीजल की मूल वृद्धि के चलते जुताई हुई महंगी

पेट्रोल डीजल की कीमत में लगातार की जा रही मूल वृद्धी का असर कृषि लागत पर भी साफ रूप से देखने को मिल रहा हैं। डीजल, पेट्रोल से चलने वाले कृषि यंत्र संचालकों ने भी अपनी रेटें दोगुनी कर दी हैं। जिसकी मार भी किसान की खेती की लागत पर असर डाला हैं।

बताया गया हैं कि दो साल पूर्व प्रति बीघा खेत की जुताई ट्रेक्टर द्वारा 250 रूपए में की जाती थी, लेकिन अब प्रति बीघा 600 रूपए की जा रही हैं। इसी प्रकार सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले डीजल पंप भी महंगे हो गए हैं। बुआई के लिए उपयोग किए जाने वाले मशीनरी की रेट 500 से 900 रूपए प्रति बीघा की जा चुकी हैं।

बिजली का करंट भी मार रहा है किसानों को झटका

विद्युत विभाग द्वारा किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त बिजली उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं वहीं दूसरी ओर किसानों से मनमाफिक बिजली के नाम पर राशि बसूली जाती हैं। बताया गया है कि किसानों पर बिद्युत चोरी के केस भी सर्वाधिक बनाए जाते हैं। तमाम शिकायतों के बाद भी किसानों की कोई सुनने वाला नहीं हैं। इन स्थिति में किसानों की दुगनी आय कैसे होगी यह समझ से परे हैं।

बीमा कंपनी भी कर रहीं है किसानों का शोषण

शासन की फसल बीमा योजना भी ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं देखा गया है कि किसान द्वारा फसल बीमा कराते समय बीमा धन की संपूर्ण राशि कंपनी द्वारा जमा करा ली जाती हैं। जब प्राकृतिक आपदा के चलते उनकी फसल बर्वाद हो जाती हैं तब यही बीमा कंपनियां उचित मुआवजा समय पर देने से पीछे हट जाती हैं। बीमा कंपनियों की मनमानी के चलते किसान अपनी फसल का बीमा कराने में कतराने लगे हैं।
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