शिवपुरी। नगर पालिका के चुनाव विधायक और सांसद के चुनाव की तरह हर पांच साल में होते हैं। लेकिनपिछले कुछ वर्षो से जिस तरह नगर पालिका के निर्वाचित अधिकांश जनप्रतिनिधियों ने भ्रष्टाचार कर इसकी छवि को खराब किया है, उससे अब जनता का विश्वास चकनाचूर हुआ है और शहर का विकास प्रभावित हुआ है। 40-50 साल पहले शिवपुरी की पूरे प्रदेश में जहां एक अलग पहचान थी।
वहीं विकास में पिछडने और भ्रष्टाचार में अग्रणी होने के कारण यह नगरी निचले पायदान पर पहुंच गई है। जनता को यह साफ नजर आ रहा है कि इस बार भी यदि अध्यक्ष पद पर गलत व्यक्ति का निर्वाचन हुआ तो शिवपुरी का भगवान ही मालिक है। इस कारण हर शिवपुरीवासी के लिए नपाध्यक्ष का पद दिलचस्पी का विषय बन गया है।
जनता की सोच है कि दलों ने यदि अच्छे व्यक्ति को टिकट नहीं दिया तो अच्छे व्यक्ति को चुनने की जिम्मेदारी फिर निर्वाचन के जरिए जनता को उठानी पड़ेगी। कौन नहीं जानता कि गलत चुनाव के कारण नगर पालिका प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर पाया। शहर के लिए आवश्यक सिंध जलावर्धन योजना का पूरी तरह क्रियान्वयन आज तक नहीं हो पाया और सीवेज प्रोजेक्ट का न केवल क्रियान्वयन शेष है बल्कि इसकी सफलता में भी पर्याप्त संदेह है। सिंध और सीवेज प्रोजेक्ट के कारण शहरवासियों ने कष्ट भी बहुत भुगते हैं।
नगर पालिका प्रशासन की नाकामी के कारण शहर विकास मेें आज अन्य नगरों की तुलना में बहुत पीछे चला गया है और भ्रष्टाचार और गुणवत्तारहित निर्माण कार्यो के कीर्तिमान स्थापित हुए हैं। इसलिए इस बार नगरीय प्रशासन चुनाव खासकर नपाध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस और भाजपा किसे टिकट देती है इस पर जन-जन की नजर है। एक अच्छे व्यक्ति को टिकट मिले इसके लिए पहला चलना तो दलों को लगाना होगा और यदि दलों ने गलत टिकट दिया तो दूसरा चलना फिर जनता लगाएगी। ताकि गलत व्यक्ति नगरीय प्रशासन चुनाव में जीत न पाए।
नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में पिछले 35 सालों में तीसरी बार यह पद सामान्य महिला के लिए आरक्षित हुआ है। 1994 में नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव अप्रत्यक्ष पद्वति से होता था और चुने हुए पार्षद अध्यक्ष का चुनाव करते थे। उस चुनाव में भाजपा ने समाजसेवी स्व. प्रमोद गर्ग की धर्मपत्नी और भाजपा नेता स्व. विनोद गर्ग तोडू की भाभी स्व. राधा गर्ग को उम्मीदवार बनाया।
जबकि कांग्रेस ने पूर्व विधायक गणेश गौतम की धर्मपत्नी श्रीमति तृप्ति गौतम को टिकट दिया। उस समय परिषद में कांग्रेस का बहुमत था और यह आशा थी कि कांग्रेस प्रत्याशी तृप्ति गौतम आसानी से चुनाव जीत जाएंगी। इस कारण चुनाव से पहले ही ढोल नगाडे और आतिशबाजी का इंतजाम कर लिया गया था।
लेकिन उस चुनाव में बडी संख्या में कांग्रेस पार्षदों ने पार्टी से भितरघात किया और श्रीमति राधा गर्ग को जिताया। गणेश गौतम के विरोध में कांग्रेस का एक बडा धड़ा था। हालांकि श्री गौतम स्व. माधवराव सिंधिया के विश्वासपात्र थे और इसी कारण उनकी धर्मपत्नी को टिकट दिया गया था। लेकिन पार्टी के इस निर्णय से पार्षद गणेशीलाल जैन, स्व. सांवलदास गुप्ता, स्व. शीतलप्रकाश जैन और अरूण प्रताप सिंह सहमत नहीं थे।
इस कारण बडी संख्या में कांग्रेस के पार्षदों ने भितरघात कर राधा गर्ग को चुनाव जिता दिया। उस चुनाव में नगर पालिका उपाध्यक्ष पद कांग्रेस के अरूण प्रताप सिंह चौहान के खाते में गया। 2009 मेें अध्यक्ष पद पुन: सामान्य महिला के लिए आरक्षित हुआ। लेकिन उस चुनाव में नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष पद्वति से हुआ और चुनाव से पहले यह बहस चल निकली कि कांग्रेस और भाजपा अपनी निष्ठावान महिला कार्यकर्ताओं को टिकट देगी अथवा नेताओं की धर्मपत्नी को उम्मीदवार बनाया जाएगा।
दोनों दलों ने उस चुनाव में अपनी निष्ठावान महिला कार्यकर्ताओं की अपेक्षा नेताओं की पत्नियों पर अधिक भरोसा किया। भाजपा ने पूर्व शहर अध्यक्ष अनुराग अष्ठाना की धर्मपत्नी श्रीमति रिशिका अष्ठाना और कांग्रेस ने अजय गुप्ता की धर्मपत्नी श्रीमति आशा गुप्ता को टिकट दिया।
भाजपा द्वारा निष्ठावान महिला कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से उपजी नाराजी के कारण मंजूला जैन निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में आ डटीं और उस चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष में भाजपा की विद्रोही उम्मीदवार ने वैश्य मतों मेें सैंध लगाई। जिससे कांग्रेस उम्मीदवार आशा गुप्ता ढ़ाई हजार मतों से पराजित हो गईं। इस बार अध्यक्ष पद फिर सामान्य महिला के लिए आरक्षित हुआ है और टिकट की इच्छुक महिलाएं तथा उनके समर्थक सक्रिय भी हो गए हैं।
नगर पालिका पिछले कुछ वर्षो में जिस तरह से भ्रष्टाचार का अड्डा बना है उससे इस बार चुनाव लडऩे वालों में आकर्षण भी बढ़ा है। नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों में ऐसे-ऐसे उम्मीदवार सामने आ रहे हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन इस बार भाजपा हो या कांगे्रस दोनों दलों को पर्याप्त सतर्कता और सावधानी बरतनी होगी।
यदि किसी भी दल ने गलत उम्मीदवार को टिकट दिया तो जनता उसे नकारने में संकोच नहीं करेगी। भाजपा भी इस भ्रम में न रहे कि जनता को उसके उम्मीदवार को चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हां हो सकता है भाजपा उम्मीदवार न चुने जाने का खामियाजा इस क्षेत्र को भोगना पड़े। लेकिन गलत उम्मीदवार को जिताने की अपेक्षा इस खामियाजे को भुगतने के लिए भी तैयार है।