शिवपुरी। प्रदेश के जिन 24 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं, उनमें शिवपुरी जिले की दो विधानसभा सीटें पोहरी और करैरा भी शामिल हैं। उपचुनाव की अभी तिथि भी घोषित नहीं हुई है। जसवंत और सुरेश के अलावा अन्य दलों के प्रत्याशियों की घोषणा नहीं हुई है। लेकिन इसके बाद भी भाजपा के संभावित प्रत्याशी और विधानसभा से इस्तीफा देने वाले कांग्रेस विधायक सुरेश राठखेड़ा और जसवंत जाटव के पास एडवांटेज प्वाईंट है।
प्रदेश में सत्ता भाजपा की है और यदि बहुत उलटफेर या चमत्कार नहीं हुआ तो यह निश्चित है कि उपचुनाव के परिणाम के बावजूद भी सत्ता भाजपा के पास ही रहने वाली है। इस एडवांटेज प्वाईंट के सहारे पोहरी से भाजपा प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा और करैरा से भाजपा प्रत्याशी जसवंत जाटव चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं।
लेकिन इसके बावजूद भी मुख्य सवाल यह है कि क्या यह अतिरिक्त लाभ उन्हें विजयश्री दिलाने में सफल होगा या फिर इन निवर्तमान विधायकों की असफलता और भाजपा के कार्यकलापों से उपजी कथित निराशा उन्हें विजय से वंचित करने में सफल रहेगी।
आम मतदाता जब मतदान के लिए मतगणना केन्द्र में जाता है तो उसके जहन में यह बात भी रहती है कि सत्ता किस दल को मिलने वाली है और अधिकांश मतदाताओं की मानसिकता रहती है कि जिस दल की सत्ता बनने वाली है उसके प्रत्याशी को विजयी बनाया जाए। क्योंकि सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधि से कम से कम एक आशा तो रहती है कि वह जन अपेक्षाओं को पूरा करने में सफल रहेंगे। यह बात अलग है कि जन प्रतिनिधि इस अपेक्षा की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं।
आम तौर पर हर चुनाव में यह अस्पष्ट रहता है कि सत्ता किस दल को मिलेगी। लेकिन प्रदेश में हो रहे उपचुनाव में अधिक संभावना यहीं है कि सत्ता भाजपा के पास ही बनी रहेगी। क्योंकि प्रदेश मेें 24 सीटों के उपचुनाव होने हैं और भाजपा के विधायकों की वर्तमान संख्या 107 है। ऐसे में पूर्ण बहुमत पाने के लिए भाजपा को सिर्फ 9 सीटों की आवश्यकता है।
24 में से 9 सीट जीतना एक असंभव टास्क नजर नहीं आ रहा। केन्द्र में भाजपा की सत्ता होने का फायदा अलग से है। जबकि कांग्रेस को सत्ता में आने के लिए पूर्ण बहुमत हेतु सभी 24 सीटें जीतना होंगी। वर्तमान में कांग्रेस विधायकों की संख्या 92 है और 116 के फिगर तक पहुंचने के लिए उसे सभी सीटें जीतना अनिवार्य है।
लेकिन यदि वह जोड़ तोड़कर सत्ता में आना चाहती है तो भी उसे कम से कम 17 सीटें तो जीतना होंगी। वह भी उस स्थिति में जबकि चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा के विधायक का समर्थन उसके पास हो।
इसलिए यह लगभग तय लग रहा है कि पोहरी और करैरा के परिणाम कुछ भी हों। लेकिन प्रदेश में सत्ता भाजपा की ही है और रहेगी भी। यह सबसे बड़ा एडवांटेज सुरेश राठखेड़ा और जसवंत जाटव को है।
लेकिन इसके बावजूद भी यदि इस स्थिति को वह अपने पक्ष में नहीं भुना पाते तो यह उनकी ही असफलता होगी। डेढ़ साल पहले सुरेश राठखेड़ा पोहरी से और जसवंत जाटव करैरा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित होकर आए।
लेकिन आज वह भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। ऐसे में उनके पाला बदल या दल बदल को मतदाता किस रूप में लेता है, यह भी देखने वाली बात होगी। हालांकि दोनों पूर्व विधायकों का कहना है कि कांग्रेस सरकार जनअपेक्षाओं की कसौटी पर खरा नहीं उतर रही थी। मतदाताओं के साथ किए गए वायदों को पूरा नहीं किया जा रहा था।
ऐसी स्थिति में उन्होंने अपने विधायक पद का त्याग कर जनता की अदालत में उतरने का लोकतांत्रिक कदम उठाया है। लेकिन इसके इतर कांग्रेस का आरोप है कि निर्वाचित विधायकों ने भारी रकम लेकर अपने पदों से इस्तीफा दिया।
आरोप तो यहां तक लगाए जाते हैं कि दोनों को 35-35 करोड़ रूपए की राशि कांग्रेस और विधायक पद से इस्तीफा देने के लिए दी गई है। लेकिन सवाल यह है कि जनता श्री राठखेड़ा और श्री जाटव के दल बदल को किस रूप में लेती है।
क्या वह उन दोनों के तर्को से सहमत है। या फिर उसका भी मानना है कि धन के प्रलोभन में दोनों ने विधायक पद से इस्तीफा दिया। इस सवाल का जबाव पाकर ही मतदाता मतदान करेगा, ऐसा माना जा रहा है। दूसरा सवाल यह है कि विधायक निर्वाचित होने के बाद डेढ़ साल तक सुरेश राठखेड़ा और जसवंत जाटव अपने पदों पर रहे।
इन डेढ़ सालों में उनका कार्याकाल कैसा रहा, उनके जनता के प्रति रिश्ते कैसे रहे। यह भी देखने वाली बात होगी और मतदान के समय यह बात भी उसके मन में होगी। तात्पर्य यह है कि यदि उनका व्यवहार उनका कार्याकाल और उनके आचरण से यदि जनता ज्यादा नाखुश हुई तो जो एडवांटेज सुरेश राठखेड़ा और जसवंत जाटव ने हांसिल किया है, उसे वह गंवाकर चुनाव में पराजित हो जाएंगे। ऐसे में सबकुछ उनके व्यवहार, कार्यकाल और आचरण पर निर्भर है।