शिवपुरी। बड़े बेआबरु होकर तेरे कूचे से हम निकले। यह वाकया, उप्र के एटा और शिवपुरी जिले के पडौदा गांव के 30 आदिवासी परिवारों के साथ घटा।एटा से रोजगार पाने की चाहत में 8 युवक 4 महीने पहले कर्नाटक के हुबली गए। वहां फड़ लगाकर जूते बेचने वाले इन युवकों को आधी कीमत में जूते दुकानदार को बेचकर इसलिए भागना पड़ा क्योंकि पुलिस ने शहर खाली करने को कहा।
हालात यह बने कि 1 हजार किमी तक न तो इनको खाने का दाना मिला और न ही दूध-चाय। पानी से बिस्कुट के पैकेट खाकर दो दिन में यह कर्नाटक से मप्र की सीमा में पहुंचे। यहां इन्हे इंदौर के निकट भोजन नसीब हुआ। यही हालात जिले के पडौरा निवासी 30 आदिवासी परिवार का रहा। ये आदिवासी भी उप्र के आगरा में आलू बीनने गए थे और वहां से शहर निकाला आदेश मिलने के बाद इन्हें 300 किमी का सफर तय करने में पूरे दो दिन लग गए और शिवपुरी आकर इन्हे खाना नसीब हुआ।
उप्र के एटा निवासी 34 साल के रविकुमार ने बताया कि वह और उसके आठ साथी कर्नाटक के हुबली में रोजगार की तलाश में गए थे। वहां जूते-चप्पल खरीदकर सडक़ पर फड़ लगाकर बेचते थे। हमारे साथ सात लोग और थे। 100-200 रुपए प्रति जोड़ी जूते चप्पल खरीदकर महंगे दामों में बेचकर अपना गुजारा कर रहे थे। लेकिन 25 तारीख से लॉकडाउन शुरु हुआ तो पुलिस ने वहां से हमें अपने वतन लौट जाने के लिए कह दिया।
वहां से यहां आने के लिए न बसें थी न ट्रेन। ऐसे में जैसे-तैसे जिस दुकानदार से वह जूते चप्पल खरीदते थे, उसको आधी कीमत में बचा हुआ माल वापस करके आए। इससे जो पैसा मिला वह बाइक और स्कूटर में पेट्रोल भरवाने के काम आया। वहां से सिर्फ बिस्किट पैकेट लेकर िनकले। क्योंकि खाने पीने का भी सामान नहीं था।
1 हजार किमी तक यानि मप्र की सीमा तक हमें खाने को कुछ नहीं मिला। जैसे-तैसे पानी से बिस्कुट खाकर हम इंदौर पहुंचे। यहां दो दिन बाद हमने पहली बार खाना खाया। इसके बाद शिवपुरी आ गए और यहां गुना बायपास पर हमें हाथ देकर महावीर जयंती समिति के लोगों ने रोका और भोजन कराया। अब यहां से एटा जाना है। यदि रास्ते में किसी ने कहीं नहीं रोका तो हम कल तक एटा पहुंच जाएंगे।