शहर की बर्बादी + जेल की हवा + भ्रष्टाचार + घोटाले = मुन्नालाल,​ कुछ ऐसे रहे शहर के 5 साल

Bhopal Samachar
शिवपुरी। अत:शहर के नपाध्यक्ष की कुर्सी से मुन्नालाल कुशवाह से मुक्त हो गई। शिवपुरी के पिछले 5 साल को अगर एक लाईन में लिखने की कोशिश करेंगें तो पिछले 5 साल का कैलेंडर विकास के नाम पर गायब रहा। यह शब्द उपयुक्त हो सकते हैं।

मुन्नालाल का कार्यकाल विकास के लिए नही बल्कि जेल की हवा खाने से अधिक पहचाना जाऐगा। पूरा का पूरा कार्यकाल विवादो से घिरा रहा। विवाद शहर के विकास के लिए नही हुए बल्कि घोटाले और भ्रष्टाचार को लेकर अधिक हुआ।

पांच साल झक्क सफेद कपड़ो में वह हमेशा नजर आने वाले मुन्नालाल ने दिन में तीन-तीन बार उनकी ड्रेस बदली लेकिन वो सफेदी नगर पालिका के प्रशासन में वह नहीं ला पाए। नपाध्यक्ष के रूप में उनकी उपलब्धियां क्या है यह शायद वह भी नहीं बता पाएंगे। उनके कार्यकाल संभालने के पहले नगर जिस सिंध जलावर्धन योजना की प्रतिक्षा कर रहा था। वह योजना आज भी अधूरी है। सीवेज प्रोजेक्ट की स्थिति भी जस की तस है। शहर को साफ स्वच्छ रखने में भी उनका कोई योगदान नहीं है।

शिवपुरी को अतिक्रमण मुक्त शहर भी वह नहीं बना पाए हैं। गरीब ठेले वालों के लिए भी वह उचित हॉकरजोन नहीं बना पाए। उनके कार्यकाल में जहां तक विकास का संबंध है तो कार्य कुछ कम नहीं हुए। करोड़ों रूपए की सड़के बनी, वार्डो में भी विकास के काम हुए लेकिन उनका कथित विकास तब भौंथरा पड़ गया जब सड़के समय सीमा से पहले ही उखडऩे लगी।

प्रशासक के रूप में नपा कर्मचारियों पर उनकी कोई पकड़ नहीं हैं। यहां तक कि अपनी पार्टी के पार्षदों को भी वह अपने पाले मेें रखने में सफल नहीं रहे हैं। उनके कार्यकाल में यदि कुछ गढ़ा गया है तो नपा प्रशासन में भ्रष्टाचार का एक कीर्तिमान अवश्य। नगर पालिका के खजाने को बुरी तरह सैंध लगाई गई है।

यहां तक कि जाते-जाते वह पात्रता न होने के बावजूद सफारी गाड़ी अपनी सवारी के लिए ले आए। जिसका भुगतान भी अभी तक नहीं हुआ है। नपाध्यक्ष के रूप में प्रशासन पर, जनता पर और पार्षदों पर वह अपनी कोई छाप नहीं छोड़ पाए और छाप यदि छूटी भी तो उससे वह कतई गौरवांवित नहीं होंगे। उनके लाभ हानि के बहीखातों में लाभ का कॉलम बिल्कुल खाली है।

मुन्नालाल कुशवाह सीधे प्रत्यक्ष पद्धति के चुनाव से नपाध्यक्ष बनने वाले पहले कांगे्रसी हैं। 2015 में उनके मुकाबले भाजपा ने हरिओम राठौर को चुनाव मैदान में उतारा था। 2010 से 2015 तक भाजपा की ऋषिका अष्ठाना नगर पालिका अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहीं थी। भाजपाई नपाध्यक्ष की एंटीइंकंबेंसी का फायदा कांग्रेस के मुन्नालाल कुशवाह को मिला।

 उस समय सीवेज खुदाई के कारण शहर की सारी सड़के उखडी पड़ी थी और धूल से जनजीवन बुरी तरह परेशान था। जिसकी गाज उस समय की भाजपा की नपाध्यक्ष ऋषिका अष्ठाना पर गिरी और चुनाव में इसका फायदा मुन्नालाल कुशवाह को मिला। श्री कुशवाह एक बार नगर पालिका के पार्षद रह चुके हैं। हालांकि एक बार वह पार्षद पद का चुनाव हार भी चुके थे।

शिवपुरी नगर पालिका के अध्यक्ष का पद पिछड़ा वर्ग पुरूष के लिए घोषित होने पर कांग्रेस ने मुन्नालाल कुशवाह को उम्मीदवार बनाया। हालांकि दावेदार अनेक थे। लेकिन सिंधिया को उनकी बह अदा भा गई थी। जिसमें उनके युवा पुत्र की दुर्घटना में मौत के बाद भी वह सिंधिया के लोकसभा चुनाव के प्रचार में जुटे रहे थे।  

श्री कुशवाह को टिकट मिल गया और शहर के वैश्य वर्ग ने उनका खुलकर साथ दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि 8 हजार मतों से वह चुनाव जीत गए। श्री कुशवाह मिलनसार, मृद़ुभाषी और विनम्र हैं।

शिवपुरी की राजनीति में उनके गुण के समकक्ष यदि कोई दूसरा राजनैतिज्ञ है तो वह भाजपा के नपा अध्यक्ष और विधायक रहे माखनलाल राठौर हैं। राजनीति में इन गुणों का अपना मूल्य होता है और इसी का फायदा माखनलाल को मिला और मुन्नालाल कुशवाह को भी। यदि सोने में सुहागा तब होता जब उनकी यह विनम्र कार्यप्रणाली नपाध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकलापों के क्रियान्वयन में भी परिलक्षित होती।

परंतु चुनाव  जीतने के बाद सत्ता का कैसे निज हित में उपयोग किया जाता है, इसी पर उनका पूरा ध्यान केन्द्रित रहा। उन्होंने अपने जेबी पार्षदों की पीआईसी बनाई। लेकिन जब पार्षदों को लगा कि गलत निर्णय से वह जेल की हवा खा सकते हैं तो पीआईसी के सदस्य पार्षदों ने इस्तीफा दिया।

इनमें कांग्रेस के पार्षद आकाश शर्मा भी थे। एक जमाने में वह मुन्नालाल कुशवाह का झंडा थामकर चलते थे। फिर उन्होंने खुलकर कुशवाह का विरोध करना शुरू कर दिया और अंतिम समय तक वह मुन्नालाल कुशवाह का विरोध करते रहे। लेकिन कुछ पार्षद निजहित में अंतिम समय तक उनके साथ जुडे रहे। नपा उपाध्यक्ष के पद पर कुशवाह की पार्टी कांग्रेस के अन्नी शर्मा पदस्थ रहे।

लेकिन अन्नी शर्मा की भी मुन्नालाल कुशवाह से नहीं पटी और परिषद की बैठक में वह बराबर मुन्नालाल कुशवाह को जलील और बेईज्जत करते रहे। भ्रष्टाचार के कई मामलों में मुन्नालाल कुशवाह घिरे, जिनमें बैंच, टेंट और केबल तथा लाईट मामला मुख्य है। श्री कुशवाह ने नपाध्यक्ष बनने के पहले गरीबी रेखा का राशनकार्ड भी अपने नाम बना लिया था और नपाध्यक्ष बनने के बाद उनमें इतनी समझ नहीं रही कि उस राशनकार्ड को निरस्त करा देते।

जिसका परिणाम यह हुआ कि फर्जी बीपीएल राशनकार्ड मामले में उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ और उन्होंने जेल की हवा भी खाई। श्री कुशवाह के पुत्र और साले भी लगातार विवादों में घिरे रहे और उन्होंने भी जेल की यात्रा की। उनके घर पर नगर पालिका के थोकबंद कर्मचारी लगातार चाकरी बजाते रहे, जबकि वेतन वह नगर पालिका से लेते रहे।

अपने सजातीय बंधुओं को उपकृत करने में भी उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में उन्होंने पेड़ और ट्री गार्ड सप्लाई की पूरी प्लानिंग की थी। लेकिन नपा उपाध्यक्ष अन्नी शर्मा की सक्रियता के कारण वह सफल नहीं हो पाए। परंतु बताया जाता है कि पिछले दो माह में 49-49 हजार की लगभग 500 फाइलें चली और जिनका ऑडिट भी हो गया है। 50 हजार से कम ये फाइलें इसलिए चलाई गई ताकि पीआईसी में पुष्टि के लिए ये न जाए। उनके कार्यकाल में भगवान शिव की यह नगरी सुअरों की नगरी के रूप में तब्दील हुई।

हालांकि सुअरों को मारने के लिए लाखों रूपए का बजट ठिकाने लगाया गया। जनता में उनकी इस हद तक बदनामी रही, जिसे पहचानकर नगर पालिका और खासकर लोकसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस के प्रचार-प्रसार से दूर रखा गया। लेकिन इसके बावजूद भी कांग्रेस दोनों चुनावों में बुरी तरह पराजित हुई। कुल मिलाकर श्री कुशवाह का कार्यकाल ऐसा रहा जिसे वह खुद भी भुला देना चाहेंगे। 
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