शिवपुरी। मकर संक्रांति के त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार अक्सर हर साल जनवरी महीने की 14 तारीख को आता है। लेकिन साल 2020 में मकर संक्रांति का त्योहार इस बार 15 जनवरी को मनाना उचित हैं।
मकर संक्रांति का पर्व सूर्य देव को समर्पित है। सूर्य को सनातन संस्कृति में आदि काल से ही पूजा जा रहा है। केवल हिन्दू संस्कृति में ही नहीं, अन्य संस्कृतियों में भी सूर्य देव को एक अहम स्थान दिया गया है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है, जो कि बहुत ही शुभ घटना है।
मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान और दान-पुण्य किया जाता है। इस साल मकर संक्रांति की तारीख को लेकर भ्रम की स्थिति है और ये तारीख हैं 14 या 15 जनवरी।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस बार सूर्य, मकर राशि में 14 जनवरी की रात 02:07 बजे प्रवेश करेगा। इसलिए संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की, इस समय सूर्य उत्तरायण होता है।इस समय किए जप और दान का फल अनंत गुना होता हैं।
हिन्दू धर्म में मकर संक्राति के दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है। सूर्य के उत्तरायण में 6 माह की प्रतिक्षा भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए की थी,वे सूर्य देव की उत्यरायण होने की प्रतिक्षा में 6 माह तक कांटो की सैया पर रहे।
मकर संक्रांति का पर्व सूर्य देव को समर्पित है। सूर्य को सनातन संस्कृति में आदि काल से ही पूजा जा रहा है। केवल हिन्दू संस्कृति में ही नहीं, अन्य संस्कृतियों में भी सूर्य देव को एक अहम स्थान दिया गया है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है, जो कि बहुत ही शुभ घटना है।
मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान और दान-पुण्य किया जाता है। इस साल मकर संक्रांति की तारीख को लेकर भ्रम की स्थिति है और ये तारीख हैं 14 या 15 जनवरी।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस बार सूर्य, मकर राशि में 14 जनवरी की रात 02:07 बजे प्रवेश करेगा। इसलिए संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की, इस समय सूर्य उत्तरायण होता है।इस समय किए जप और दान का फल अनंत गुना होता हैं।
हिन्दू धर्म में मकर संक्राति के दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है। सूर्य के उत्तरायण में 6 माह की प्रतिक्षा भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए की थी,वे सूर्य देव की उत्यरायण होने की प्रतिक्षा में 6 माह तक कांटो की सैया पर रहे।