बच्चो के मस्तिष्क में असिमित पावर होती हैं, नेगेटिविटी हम भरते हैं: शिक्षाविद सौरभ शर्मा | SHIVPURI NEWS

Bhopal Samachar
शिवपुरी। बच्चो के मासूम मन को पढ कर सकारात्मक सीखाने के साथ बच्चो को पढाने का प्रयास कर रहे हैं। बच्चो के मस्तिक में असिमित पवार होती है,और उतने ही सवालो के साथ जिज्ञासा भी,बस इन्ही जिज्ञासओ और सवालो को सकारात्मक जबाब उनके मन में भर दो,यकीन मानिए आपका बच्चा अपने जीवन के सर्वोच्च शिखर हो छु सकता हैं। बस बचपन के मन में निगेटिवटी नही भरीए यह कहना हैं लक्ष्य स्कूल के 29 वर्षीय डारेक्टर सौरभ शर्मा का।

इस उच्च विचार के साथ लक्ष्य स्कूल के डारेक्टर सौरभ शर्मा ने शिवपुरी समाचार डॉट कॉम की संवाददाता कंचन सोनी से कुछ विषयो पर बातचीत की। इस बातचीत को पढने से पूर्व सौरभ शर्मा का यह है संक्षिप्त परिचय,नाम सौरभ शर्मा उम्र 29 साल पिता का श्री देवेन्द्र बोहरे संचालक बाबा सुपारी प्राईवेट बस स्टैंड, शिक्षा बीबीए इंदौर से, एमबीए दिल्ली से।

शिक्षा के क्षेत्र क्यो चुना और अपना स्कूल शुरू करने से पहले मन में क्या टारेगेट थे इस पर सौरभ ने कहा कि शिवपुरी की ऐजुकेशन में भारी भरकम बस्ते और मोटी-मोटी किताबे तो अवश्य हैं लेकिन प्रारभिंक क्लासो में शिक्षा के प्रति मोटिबेसन नही हैं। बच्चे को सिर्फ इतना पता होता है कि सुबह उठना है स्कूल जाना हैं।

क्यो जाना हैं पढना जीवन में क्यो जरूरी होता है यह बच्चे को नही पता होता है। कुछ बच्चे जिनका घर में पढने के लिए अपने बच्चो में जागरूकता पैदा नही कर पाते वह बच्चा औसत हो जाता हैं,और आगे चलकर उसे बडे कॉम्पिटशन फाईट करने में बडी परेशानी होती हैं।

हम जब पढते थे और पास आउट करके महानगरो में गए तो महानगरो के बच्चो को देखा तो उनकी लाईफ स्केल हमसे उच्च थी,उनका कॉन्फिडेंस हमसे अधिक था। कारण हमारे स्कूलो में लाईफ स्केल को लेकर कुछ नही किया गया। बच्चो में पढाई के प्रति जागरूकता पैदा करना है हमारे स्कूल का टारगेट था। जिससे वह आगे के क्लासो ओर कॉम्पिटशन की तैयारी करते समय लडखडाए नही। उसके दिमाग में उसका टारगेट सैट करना भी हमारा एक टारगेट हैं।

अपने टारगेट का अचीव करने की परेशानी के बारे में सौरभ ने बताया कि मैने एमबीए कम्पीलट करने के बाद पहली जॉब जंबग डॉट कॉम में की। दूसरी जॉब बच्चो को स्मार्ट क्लास पढाने वाली ऐजुकेशन सिस्टम को तैयारी करने वाली कंपनी में की। इस कारण मैने पूरे राजस्थान के छोटे बडे स्कूलो के शिक्षा प्रणाली का वारिकी से अध्यन किया था।

हमको हमारे टारगेट से हिसाब से अपनी ऐजूकेशन सिस्टम को तैयार करना था,इसके लिए कडी मेहनत करनी पडी। हर माह बच्चो को पढाने के बाद एक उनका टेस्ट होता था इस टेस्ट से हमारा टेस्ट भी होता रहा कि हम जो सोच रहे है ऐसा हो रहा हैं क्या। इस सिस्टम को बनाने के बाद फ्लो करने लिए ऐसा स्टाफ की भी आवश्यकता थी।  

अपनी सफलता को अब कैसे देखते है इस प्रश्न पर सौरभ ने कहा कि हमारे लक्ष्य स्कूल को 5वां वर्ष चल रहा हैं। 350 प्लस स्टूडेंट है,जेसे प्लान बनाया वैसा ही हो रहा हैं। समाज को क्या सदेंश देना चाहते हैं इस पर सौरभ ने कहा कि बच्चो के मस्तिक में असिमित पावर होती हैं,उसमें निगेटिवटी हम भरते हैं अगर बच्चा कोई प्रश्न करे तो उसे आराम से उस प्रश्न का उततर दे। किसी चीज से डराए नही। पॉजिटिव सोचने की आदत को उसमें डबलव करे।

भाग्य या कर्म पर विश्वास करने पर सौरभ ने कहा कि अच्छे संस्कार उच्च विचार वाले मां बाप और परिवार के साथ ऐसे ही भाई बहन मिले यह मेरा भाग्य हैं। और कर्म कर मेरे टारगेट का अचीव करता हैं। दोनो ही महव्वपूर्ण है मेरे लिए।

अपने आईडल कि विषय में बातचीत करते हुए अपने पिता को बताया कि कर्म की परिभाषा मैने उन्ही से सीखी हैं। समाज कैसा होनेा चाहिए इस पर सौरभ ने बताया कि समाज को नियानुसार होना चाहिए,जिसकी जो जिम्मेदारी है वह उसे अपनी पूरी ईमानदारी से पूर्ण करे।

आज की शिक्षा के अतिरिक्त नैतिक शिक्षा का क्या महत्व है जीवन में इस पर सौरभ कहा कि हमारा पूरा पढाने का जो सिस्टम हैं वह नैतिकता के आधार पर हैं हम नैतिक शिक्षा बच्चो को दे रहे हैं इस कारण हमारे यहां का पढने वाला बच्चा अपनी जिम्मेदारी अपनी उम्र से निभा रहा हैं। आज की शिक्षा से बच्चा शिक्षित तो हो सकता हैं लेकिन अगर उसमें नैतिक शिक्षा का अभाव है तो वह सभ्य नही हो सकता है समाज और देश के प्रति वफादार नही हो सकता हैं।
G-W2F7VGPV5M