छिमछिमा नरेश, पोहरी की ओर मुख तो कृपा बरसती है,अंधी कर दी थी मुगल सेना - Shivpuri News

Bhopal Samachar

पप्पू सिठेले पोहरी। शिवपुरी जिले के पडोसी जिला श्योपुर की विजयपुर तहसील में स्थित छिमछिमा हनुमान मंदिर में विराजमान हनुमानजी जी की प्रतिमा का मुख पोहरी की ओर है,इसलिए माना जाता है कि पोहरी क्षेत्र के लोगों पर अधिक कृपा बरसती है। छिमछिमा सरकार के नाम से देश में प्रसिद्ध इस मंदिर ने कलयुग में संकट मोचन होने का कई बार अहसास कराया है भक्तो के मन में तो प्रतिदिन बजरंगी वली कलयुग में निवास करने का अहसास कराते है लेकिन प्रत्यक्ष रूप से मुगल सेना को भी हनुमान जी ने अहसास कराया था। मंदिर पर आक्रमण के समय मुगल सेना को उल्टे पाँव वापस जाना पडा था।


पोहरी से 75 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा मे विजयपुर तहसील से महज 9 किलोमीटर दूरी पर छिमछिमा हनुमान जी का विशाल मंदिर है। भादौ माह के मंगलवार के दिन एक विशाल मेले का आयोजन किया जा रहा है जिसमें लाखों की तादाद में भक्त गण विजयपुर क्षेत्र के आसपास के ग्रामवासी सहित पोहरी बैराड़ के क्षेत्र के भक्तगण लाखों की तादात में पहुंचते है  

जानकारी के अनुसार  मूर्ति के मुख की दिशा बैराड़ पोहरी  क्षेत्र के तरफ होने से पोहरी बैराड़ के भक्तों पर ज्यादा कृपा बरसती है   विजयपुर तहसील के क्षेत्र के लोगों की अपेक्षा पोहरी एवं बैराड क्षेत्र से कई लोग पैदल झंडा यात्रा कर लेकर दर्शन के लिए हजारों की संख्या में जाते हैं  और अपनी मनोकामना पूरी करते है।  

400 साल पुराने इस मंदिर को तोड़ने के लिए जब मुगल सेना ने हमला किया तो उसे खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ा।हनुमान जी की महिमा के चलते मुगल सेना अंधी हो गई थी वही मुगल सेना ने तोप के गोले चलाये जो आज भी मंदिर की उत्तर दिशा मे उसके निशान देखे जा सकते है इसी महिमा को देखते हुए आसपास  के क्षेत्र सहित पोहरी बैराड़ के हजारों की तादाद मे पैदल व अपने साधन से जाते है लोग वही अपनी मनोकामना पूरी करते है

मंदिर तोड़ने आई मुगल सेना को हटना पड़ा था पीछे
स्थानीय लोगों के मुताबिक भारत में जब मुगल साम्राज्य था, उस समय संत समर्थ गुरु ने जगह-जगह हनुमान प्रतिमाओं की स्थापना की। इसी के तहत विजयपुर से 9 किमी दूर घने जंगल में छिमछिमा हनुमान की स्थापना हुई। कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में जब औरंगजेब ने पूरे भारतवर्ष में मूर्ति और मंदिर तोड़ने का अभियान चलाया था, उस समय मुगल सेना यहां भी आई।

हनुमान जी की कृपा से मंदिर के आसपास एक किलोमीटर के दायरे में चारों ओर की जमीन मोम की हो गई, जिससे औरंगजेब की सेना आगे नहीं बढ़ सकी। मान्यता है कि हनुमान जी ने प्रकट होकर सेना को अंधा कर दिया, ऐसे करतब को देख सेना को उल्टे पैर वापस लौटना पड़ा। यही वजह है कि छिमछिमा हनुमान मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।

छिमछिमा पर भादो मास में लगता है मेला बताया जाता है कि वर्ष 1945 तक हनुमान जी का मंदिर एक पाटोर नुमा था, लेकिन उसके बाद मंदिर की भव्यता बढ़ती गई। हर साल भादो मास की अमावस्या के बाद आने वाले पहले मंगलवार या शनिवार को यहां मेला लगता है। मान्यता है कि मंदिर परिसर में मौजूद प्राचीन कुंडों के पानी से कई तरह की बीमारियां दूर हो जाती है।