कोलारस। कोलारस विधानसभा की रन्नौद तहसील के अकाझिरी में पिछले 5 सालों में विकास कार्यों के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन यह विकास कार्य धरातल पर नहीं उतर पाए। इनमें नगर के मुक्तिधाम भी शामिल हैं। 10 साल पहले दो मुक्तिधाम बनाए गए थे, लेकिन दोनों की ही हालत इन दिनों खस्ताहाल है, न तो इन मुक्तिधाम तक जाने की सुगम रास्ता है और न ही यहां पर टीनशेड की व्यवस्था है। ऐसे में खुले में ही अव्यवस्थाओं के बीच शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है।
अकाझिरी रन्नौद की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है और यहां पर 5 हजार से अधिक की आबादी और 2600 की वोटिंग है। ऐसे में यहां पर हर मूलभूत सुविधा के लिए पर्याप्त बजट आया और विकास कार्य भी हुए, लेकिन अधिकांश काम आधे-अधूरे पड़े हैं और लोगों को उनका लाभ नहीं मिल पा रहा है। गांव का जो मुक्तिधाम है वहां पर कोई भी सुविधा नहीं है। मुक्तिधाम पर न तो लकड़ी व कंडों की व्यवस्था है और न ही यहां पर पानी या छाया के इंतजाम किए गए हैं। लोगों को यहां पर शवों का अंतिम संस्कार करने में असुविधा होती है।
एक मुक्तिधाम पर किया कब्जा
स्थिति यह है कि लोगों ने मुक्तिधाम की जमीन पर ही कब्जा करके रखा है। यहां पर लोगों ने चारों तरफ से तार फेंसिंग कर यहां पर कंडा, भूसा, लकड़ियां आदि रखा है और इन सभी को तिरपाल से छिपाकर रखा गया है। इस संबंध में पंचायत के जिम्मेदारों को शिकायत भी की गई, लेकिन इसके बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो सकी। इसके अलावा मुक्तिधाम पर जाने के लिए सही रास्ता तक नहीं है। बारिश के मौसम में मुक्तिधाम तक जाने में काफी परेशानी आती है।
अकाझिरी गांव में दो मुक्तिधाम है। दोनों काफी जर्जर हालत में हैं। यहां पर कोई सुविधा नहीं है। खुले में शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है। जिम्मेदार इस तरह ध्यान नहीं दे रहे।
केशव प्रसाद गुप्ता, अकाझिरी
स्थिति यह है कि मुक्तिधाम पर गांव के लोगों ने कब्जा कर रखा है। यहां पहुंचने तक के लिए रास्ता नहीं है। पहले भी यह मामला उठाया गया था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।
शिवकुमार झा नवासी अकाझिरी
मैं सुबह सब इंजीनियर को मौके पर भेजकर दोनो मुक्तिधामों की स्थिति दिखवा लेता हूं, जो भी दिक्कत होगी, उस समस्या को खत्म किया जाएगा।
अरविंद शर्मा, सीईओ, जनपद पंचायत, बदरवास।
अकाझिरी गांव में दो मुक्तिधाम है। दोनों काफी जर्जर हालत में हैं। यहां पर कोई सुविधा नहीं है। खुले में शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है। जिमेदार इस तरह ध्यान नहीं दे रहे।
केशव प्रसाद गुप्ता, अकाझिरी