SHIVPURI NEWS - जिले की 4 साधिकाओ ने किया सांसारिक जीवन का त्याग,दो सगी बहने

Bhopal Samachar

शिवपुरी। पहली बार शिवपुरी जिले की चार साधिकाओं ने संसार से नाता तोड़कर आर्थिका दीक्षा (जैनेश्वरी दीक्षा) ली। आचार्य विमर्श सागर  महाराज   ने दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में 13 लोगों को दीक्षा दी, इनमें 4 दीक्षाएं शिवपुरी से हैं। इनमें दो सगी बहनें भी शामिल हैं।

खास बात यह है कि 8 साल पहले जिस मां ने आर्थिका दीक्षा ली अब उनकी दोनों नव दीक्षार्थी बेटियों रिया और गुंजन की दीक्षा से पहले केशलोंच के संस्कार उनकी गृहस्थ अवस्था की मां अर्थिका विनयांश्री ने करके परिषह सहन (दुःख सहन करने की क्षमता) का सबक सिखाया। यही नहीं नवदीक्षार्थियों में पोस्ट ग्रेजुएट दीपा बहन के साथ 68 वर्षीय मित्रवती भी शामिल हैं।

जैन दर्शन के विद्वान और क्षत्री जैन मंदिर ट्रस्ट कमेटी के अध्यक्ष राजकुमार  जैन की मानें तो जैन दर्शन में महिलाओं की सर्वोच्च दीक्षा आर्यिका व्रत की होती है। जिसमें एक साड़ी वह अपने साथ रखती हैं। इसके अलावा गर्मी में कूलर, पंखा, एसी, सर्दी में स्वेटर-रजाई का उपयोग जीवन भर नहीं करती हैं। 24 घंटे में दिन में एक ही बार विधि मिलने पर भोजन (आहार-पानी) लेती हैं।

केशलोंच अर्थात (अपने सिर के बालों को हाथों से निकालने की प्रक्रिया) अपने हाथ से करती हैं। अहिंसा व्रतों के पालन के लिए यह केश लोंच होता है। जीवन भर नंगे पैर पैदल चलने का संकल्प भी उनका रहता है।

कोलारस की दा सगी बहनो ने ली दीक्षा
कोलारस में रहने वाली दो बहनों गुंजन 29 साल जिनने बीए तक पढ़ाई की और रिया 25 साल जिन्होंने 12वीं तक शिक्षा ग्रहण की। उनके दादा मुनि विश्वांत सागर, पिता मुनि विश्वार्थ सागर, मां-आर्यिका विनयांत्री और भाई ईमुनि विशुभ्र सागर जब संयम मार्ग पर आगे बढ़े तो पहले 6 साल घर में आत्म साधना कर धर्माभ्यास किया। अब दोनों बहनों ने आचार्य विमर्श सागर महाराज से दीक्षा लेकर उन्हें नया नाम आर्विका विकर्षिता श्री और आर्यिका विदर्शिका श्री मिला है।


कृष्ण पुरम में निवासरत बेटी रीना 21 साल को आचार्य विमर्श सागर महाराज के संपर्क में आने पर वैराग्य आया और उन्होंने 10 साल पहले आर्यिका दीक्षा लेकर विक्रांत श्री नाम पाया। मां मित्रवती 68 साल जब भी आर्यिका विक्रांत श्री के दर्शनार्थ जातीं तो वह वैराग्य मार्ग पर आगे बढ़ने की बात कहती थीं। जिससे मां मित्रवती ने सोनागिर में 2023 में आचार्य विमर्श सागर महाराज से ब्रह्मचर्य व्रत को लेकर धर्म साधना बढ़ाई और फिर दिल्ली में दीक्षा के साथ उन्हें नया नाम विमोचिता श्री मिला।

पोस्ट ग्रेजुएट दीपा बहन ने भी ली दीक्षा
मां घर को देखकर बेटी दीपा को उनसे वैराग्य आया
सिद्धेश्वर कॉलोनी निवासी पिता बालचंद और मां शारदा को घर में व्रत उपवास और धर्म साधना करते हुए बेटी दीपा देखती थीं। वैराग्य मार्ग पर आगे बढ़ने का इरादा बचपन से था। आचार्य विमर्श सागर महाराज के कहने पर 6 साल की साधना के बाद पोस्ट ग्रेजुएट दीपा बहन भी दीक्षा लेकर अब आर्यिका विदीपिता श्री हो गई हैं।