महाशिवरात्रि: क्या कनेक्शन है शिव से शिवपुरी का, क्या किसी की गलती का नतीजा है यह, गोरखनाथ है साक्षात प्रमाण

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Ex-Rey @ ललित मुदगल शिवपुरी।
आज महाशिवरात्रि का दिन है,शिव भक्तों के साथ साथ शिवालयों में जाकर पूजा करने के लिए। महाशिवरात्रि शिव की आराधना का दिन,शिव की उपासना का दिन,आज शहर में कई कार्यक्रम है। लेकिन शिवपुरी की मीडिया और आम जन कहते है कि शिव की पुरी है शिवपुरी। सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच भगवान शिव के कारण शिवपुरी का नाम शिवपुरी रखा है। क्या किसी के गलत शब्द के उच्चारण के कारण ऐसा संभव हुआ है। दोनो के प्रमाण मौजूद है आइए इन प्रमाणो का एक्सरे करते है। हर हर महादेव का नाम लेते हुए

झांसी का सिपरी रोड, आज भी इस बात का प्रमाणित करता है

उत्तर प्रदेश का झांसी जिला या यू कह लो मप्र की सीमा पर बसा शिवपुरी जिले की सीमा को छूता हुआ। झांसी से शिवपुरी की ओर आना वाला एक रोड हैं जिसका नाम सीपरी बाजार हैं। इतिहास और तथ्य बताते हैं कि आजादी से पूर्व इस रोड पर हाट लगती थी और अधिकांश:व्यापारी शिवपुरी जिले के होते थे इस कारण इस हाट का नाम ही सीपरी बाजार पड गया इस रोड का आज भी सिपरी रोड के नाम से जाना जाता हैं।

लिखित में यह है सीपरी से शिवपुरी नामकरण का इतिहास

शिवपुरी का पुराना सीपरी था। इसे बदलकर 102 साल पहले शिवपुरी नाम रखा गया और इसके लिए तत्कालीन ग्वालियर रियासत के राजा माधौ महाराज ने गजट नोटिफिकेशन भी किया था। यह नाम परिवर्तन 1 जनवरी 1920 को किया गया था। हालांकि नई सीपरी का विकास 1835 में प्रारंभ हो चुका था।

1896 में नरवर से जिला मुख्यालय का सीपरी स्थानांतरण और 15 जुलाई 1900 में ग्वालियर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने के बावजूद नया नामकरण इसके 20 साल बाद 1 जनवरी को ही किया गया था। माना जाता है कि शिवपुरी के नए नाम के साथ ही इसे विकसित करने के लिए इंजीनियर विश्वैश्वरैया ने डिजायन बनाया।

gwaliordivisionmp.nic.in के अनुसार मप्र शासन की इस अधिकृत बेबसाईड को हमने इस मामले को लेकर सर्च किया। इसमें सिपरी से शिवपुरी के नाम के सफर का उल्लेख मिलता हैं इसमें प्रकाशित किया हैं कि शिवपुरी को पहले सिपरी के नाम से जाना जाता था। इस जगह का इतिहास मुगल काल से है। शिवपुरी के घने जंगल एक समय में शाही शिकार के मैदान थे। समुद्र तल से 478 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, इस शहर का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया है। 1804 तक यह शहर कच्छवाहा राजपूतों के स्वर्ग के रूप में जाना जाता था। उसके बाद यहाँ सिंधिया राजवंश द्वारा शासन किया गया। शिवपुरी के जंगलों में पहले मुगल सम्राटों के शिकार क्षेत्र थे,मप्र शासन के इस अधिकृत पोर्टल पर यह अवश्य लिखा गया हैं कि एक पैराणिक कथा के अनुसार इस शहर का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया हैं लेकिन पैराणिक कथा का उल्लेख नही हैं।

घने जंगलो में छुपी नगरी को किसने खोजा

हम इस मामले को सर्च कर रहे थे। कई जगह पर यह मिला इस स्थान को सबसे पहले मुगल काल में खोजा गया। गुगल पर सर्च करते करते यह लिंक http://www.mponline.gov.in/Portal/Content/districts/Shivpuri_hi-in.html हमे मिली इसमें शिवपुरी के नाम के विषय के इतिहास से सबंधित एक लेख मिला। इस लेख के अनुसार वर्तमान में जिस स्थान पर शिवपुरी शहर बसा हैं उसे मुगलो ने खोजा हैं।

शिवपुरी पहली बार 1564 में उस वक्त अस्तित्व में आया जब मुगल बादशाह अकबर ने यहां विश्राम करना शुरु किया। ग्वालियर राज्य के समय नरवर जिला था। शिवपुरी 1804 तक कछवाहा राजपूतों के आधिपत्य में था। इसके बाद इस पर सिंधिया राजघराने का कब्जा हो गया। 1817 में इस पर अंग्रेजों ने कब्जा जमाया तथा इसके एक साल बाद पुनः सिंधिया को वापस कर दिया जो ग्वालियर राज्य का हिस्सा रहा। खडेराव रासो में भी उल्लेख मिलता हैं कि मुगलो ने यहां कई दिनो तक रूककर शिकार किया हैं।

अगर यह माना जाए कि 1817 मे शिवपुरी अंग्रेजो के अधीन थी तो उनकी टंग स्लिप के कारण वह सिपरी को शिवपुरी करने लगे हो और यह भगवान शिव के नाम से होने के कारण पंसद आया हो,अब इसी मामले को लेकर शिवपुरी के शिव मंदिरो की ओर चलते हैं।

आदि मानव काल के शैलचित्रों में मिलती हैं शिव की आकृति

भगवान शिव के नाम पर इस नगर का नाम शिवपुरी शायद इसलिए पड़ा क्योंकि यहां शिवजी के मंदिर अधिक हैं और शिव आराधना का यह जिला प्राचीनकाल से ही केंद्र रहा है।

आदि मानव के द्वारा बनाए गए शिवपुरी के शैलचित्रों में भी एक जगह पर त्रिशूल का विशाल रेखांकन कर पास ही सींगधारी नृत्यरत पुरुषाकृति है, जिसके एक हाथ में डमरू लिए दिखाया गया है। यह पशुपति शिव की आकृति है।

नाग राज्य की सीमाओं से लगा था अपना शिवपुरी

नाग राज्य एक संघ राज्य था जो विदिशा, नाग वध (नागोद) पद्मावती (पवा) कांतिपुरी (कुतवारा) नरवर के भागो में विभक्त था। नागराजा शैव मतालंबी थे। उनकी नाग स्थापत्य कला उच्चकोटि की थी। दो सर्पों के मध्य शिवलिंग नागों का राज चिन्ह था। नरवर एवं पवा से भीम नाग, खुर्जर नाग, वत्स, स्कंध नाग, वृहस्पति नाग, गणपतिनाग, व्याघ्र नाग, वसुनाग और देवनाग ने क्रमश: 1 ईसवीं से 220 ईसवीं तक राज किया।

गुरू गोरखनाथ का मंदिर हैं प्रमाण

शिवपुरी में सिद्धेश्वर मंदिर व हुसैन टेकरी के बीच एक नाथ संप्रदाय के गुरू गोरखनाथ का मंदिर है,इस मंदिर पर गुरु गोरखनाथ की मूर्ति पर संवत 1064 अंकित हैं,वर्तमान में विक्रम संवत 2079 चल रहा हैं इससे यह प्रमाणित होता हैं कि यह मंदिर 1 हजार से अधिक पुराना हैं। इस मंदिर में शिवलिंग भी स्थापित हैं।

कोलारस का कैलधार तथा जिले भर में अनेक प्राचीन शिवमंदिर इसी समय के हैं। नाथ संप्रदाय कापालिक मत का ही सुधरा हुआ रूप था। नाथ संप्रदाय शैव मतावलम्बी था। शिवपुरी जिले में शैव साधुओं ने अनेक शिव मंदिर बनवाए, जिनमें रन्नौद, सुरवाया, तेरही और गुना कदवाया (कदंब गुहा) का मंदिर प्रमुख हैं।

इनके अलावा शिवपुरी जिले में 10वीं व 11वीं शताब्दी के कई शैव मंदिर हैं। जिसमें खैरागांव, भीमपुर, राई, बड़दी, सेसई, बलारपुर, पहाड़ी, थरखेड़ा, नरवर के झिरना, काली पहाड़ी, सुभाषपुरा, ख्यावदाकलां, पिपरघार आदि स्थानों पर प्राचीन शिव मंदिरों के अवशेष हैं। जब भी कोई साधु समाधि लेता था, उसके अंतिम संस्कार के स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की परंपरा रही है।

यहां के अंतिम शासक सिंधिया राजवंश के लोग भी शिव उपासक ही थे। उनके द्वारा भी जहां-जहां छत्रियां आदि बनाई गई हैं, वहां शिव मंदिर की स्थापना भी की गई है,और एक प्रमाणित है कि तत्कालीन ग्वालियर रियासत के राजा माधो महाराज ने गजट नोटिफिकेशन में यह नाम परिवर्तन 1 जनवरी 1920 को किया गया था,इससे पहले शिवपुरी को सिपरी कहते थे।
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