माधव नेशनल पार्क शिवपुरी में 90 कैमरे करेंगें टाइगर की निगरानी, कर्मचारियों को प्रशिक्षण- Shivpuri News

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शिवपुरी।
माधव राष्ट्रीय उद्यान में बाघों को फिर से बसाए जाने के लिए तय की गई टाइमलाइन के अनुसार अब सिर्फ 10 दिन का समय ही शेष रह गया है। इसके लिए अब तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। तैयारियों के निरीक्षण के लिए इस सप्ताह के अंत तक नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) की टीम भी यहां आ सकती है।

वर्तमान में पदस्थ कर्मचारियों को चार तरह की ट्रेनिंग दी जा रही है। इसके साथ ही टाइगर की निगरानी के लिए माधव राष्ट्रीय उद्यान में कैमरा ट्रैप भी लगाया गया है। उद्यान में करीब 90 कैमरे लगाए गए हैं और उनका डेटा भी एकत्रित किया जा रहा है। अभी इनमें अन्य वन्य जीव आ रहे हैं। बाघ के ऊपर तकनीक से तो नजर रखी ही जाएगी।

बाघ के पंजों के निशान मिल सकें इसके लिए पग मार्ग भी बनाए जा रहे हैं। इसमें छह मीटर लंबी और तीन मीटर चौड़ी जगह में रेत डाली जाती है। जब वाघ यहां से होकर गुजरता है तो उसके पंजे के निशान बन जाते हैं और इनसे उसका मूवमेंट ट्रैक किया जाता है। ऐसी 200 से अधिक जगह चिन्हित की गई। हैं। दूसरी और जिन बाड़ों में बाघों को रहना है वे भी बनकर लगभग तैयार हैं।

10 जनवरी तक तैयारियां पूरी कर ली जाएंगी। इसके बाद संभवतः 15 जनवरी को ही यहां पर दो मादा और एक नर बाघ को शिफ्ट कर दिया। जाएगा। करीब 15 दिनों तक बाड़े में रखने के बाद उन्हें खुले में छोड़ा जाएगा। इनके पुनर्स्थापित होने के बाद अलग चरण में दो और बाघ राष्ट्रीय उद्यान में लाए जाएंगे।

ग्रामीणों को मिलेगा रोजगार का मौका

नेशनल पार्क में टाइगर आने के बाद आसपास के ग्रामीणों को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जाएंगे। ग्रामीणों को वाघ मित्र बनाने के साथ टूरिस्ट गाइड का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा टाइगर सफारी के दौरान चलने वाले वाहनों में उन्हें चालक आदि की नौकरी भी मिलेगी। टाइगर से होने वाली आय का एक हिस्सा भी इनके विकास पर खर्च किया जाएगा।

अधिकारियों का कहना है कि प्रस्तावित टाइगर रिजर्व में बड़ा क्षेत्र बफर जोन में आएगा। बफर जोन में आने वाले ग्रामीण क्षेत्र में पाबंदियां काफी कम होती हैं, लेकिन उन्हें विभाग की ओर से सुविधाएं भी दी जाती हैं। एनटीसीए के अधिकारियों ने दिसंबर में राष्ट्रीय उद्यान का दौरा किया था और इसके बाद तैयारियों को लेकर निर्देश दिए थे। उसके आधार पर ही बाड़ा निर्माण से लेकर अन्य गतिविधियां की जा रही हैं।

टाइगर को फ्री रेंज में छोड़े जाने पर रेडियो कालर से उनकी निगरानी की जाएगी। रेडियो कालर से निकलने वाले सिग्नलों की रेंज में कर्मचारी मौजूद रहते है और उससे उन्हें टाइगर की लोकेशन मिलती रहती है। इसका प्रशिक्षण देने के लिए पत्रा से सिस्टम मंगवाया गया है। जल्द की नेशनल पार्क को भी उनका सेटेलाइट सिस्टम मिल जाएगा।

ऽ कर्मचारियों को प्रेशर इंप्रेशन पैड यानी पीआइपी की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। बाघ जंगल में अपने पंजों के निशान छोड़ता है। वाघों के निशान बन सके इसके लिए 200 से अधिक जगहों पर सरचाएं भी बना रहे हैं। इसमें बाहर लाकर रेत डाली जा रही है

यह दिया जा रहा है प्रशिक्षण

जिससे टाइगर के पंजों के निशान बनें। इन निशानों के आधार पर टाइगर के जाने का रास्ता आदि जानने का प्रशिक्षण विशेषज्ञ दे रहे हैं।
पार्क में कैमरा ट्रैप लगा दिए गए हैं और इनसे डेटा एकत्रित करना भी शुरू कर दिया है। कर्मचारियों को कैमरा ट्रैप और उससे मिलने वाले डाटा का अध्ययन करने में दक्ष बना रहे हैं।

टाइगर की निगरानी में शामिल रहने वाले कर्मचारियों को इस बात का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है कि टाइगर के आसपास रहने पर किस तरह का व्यवहार उन्हें रखना है।

इनका कहना हैं

अब संभवत शनिवार को फिर से एनटीसीए की टीम आएगी और अंतिम तैयारियां देखेगी। यदि उन्हें कुछ कमियां नजर आती हैं और अगले एक सप्ताह में उन्हें पूरा कर दिया जाएगा जिससे टाइगर लाने के समय पर किसी तरह की परेशानी न आए।

तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। और कुछ काम अंतिम स्थिति में है। कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। हम तय किए गए समय में टाइगर ले आएंगे।
उत्तम कुमार शर्मा, सीसीएफ सिंह परियोजना
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