Shivpuri News- धन, पुण्य और प्रेम की अपनी सीमाएं हैं, सबसे बड़ा वो जिसके दिल में परमात्मा बसते हैं

Bhopal Samachar
शिवपुरी। जब तक ईश्वर का निवास आपके दिल में नहीं है तब तक कितने भी मंदिरों में भगवान की प्रतिष्ठा कर लोए उसका कोई अर्थ नहीं है। दिल में भगवान की प्रतिष्ठा सबसे बड़ी प्रतिष्ठा है। आज के प्रवचन में प्रसिद्ध जैन संत कुलदर्शन विजय जी ने तर्कसंगत ढंग से धन,पुण्य और प्रेम की सीमाओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि धन बहुत कुछ दे सकता है लेकिन सब कुछ नहीं।

धन से ऊपर दर्जा उन्होंने पुण्य को और पुण्य से भी ऊपर दर्जा प्रेम को दिया। लेकिन उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ इंसान वही है जिसके दिल में परमात्मा का वास होता है। प्रारंभ में आराधना भवन में मौजूद श्रोताओं को आचार्य कुलचंद्र सूरि जी महाराज साहब के श्रीमुख से मांगलिक पाठ सुनने का अवसर मिला।

पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने धन, पुण्य प्रेम और परमात्मा की शरीर के अंगों से तुलना की। उन्होंने कहा कि जिस तरह से हमारे शरीर में हाथ की सीमा है और एक सीमा के बाद हम हाथ को आगे नहीं बढ़ा सकते। उसी तरह धन की भी सीमा है। इस सीमा को पहचानकर अति सर्बत्र वज्यते कहावत को याद रखो।

उन्होंने बताया कि अपनी और अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन कमाना गलत नहीं है। लेकिन भोग विलास, अहंकार और यश की कामना से धन यदि आप कमाओगे तो कभी भी इससे मुक्त नहीं हो पाओगे। पैसा.पैसा कर जाओगे और पैसा.पैसा कर मर जाओगे। मृत्यु के बाद भले ही आपकी समाधि बन जाए लेकिन अपने जीते जी जीवन को समाधि नहीं बना पाओगे।

महाराज श्री ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि शरीर में जो स्थान पैर का होता है, वहां जीवन में पुण्य का दर्जा होता है। पैर से आप हजारो किमी की यात्रा कर सकते हो। उसी तरह से पुण्य से आप अपने जीवन को सुरक्षित रख सकते हो। जीवन पैसे से नहीं बल्कि पुणे से चलता है। पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने पुण्य से भी श्रेष्ठ प्रेम को बताया।

उन्होंने कहा कि शरीर में आंख और जीवन में प्रेम की भूमिका एक है। प्रेम पुण्य से श्रेष्ठ कैसे हैए इसे स्पष्ट करते हुए जैन मुनि ने कहा कि पुण्य से दोस्त आपके दुश्मन बन सकते हैं। लेकिन प्रेम में दुश्मनों को दोस्त बनाने की सामर्थय है। लेकिन प्रेम पर आवरण नहीं होना चाहिए और प्रेम सशर्त नहीं होना चाहिए। उन्होंने प्रेम को साधु संतों की प्रमुख ताकत बताया।

अंत में मुनि कुलदर्शन विजय जी ने कहा कि जिस तरह से शरीर में हृदय का स्थान अव्वल है, उसी तरह जीवन में परमात्मा की अहमियत सबसे अधिक है। सवाल यह है कि क्या परमात्मा की प्रतिष्ठा घरों और मंदिरों में करना पर्याप्त है। महाराज श्री ने जवाब दिया कि जब तक परमात्मा हमारे दिल में नहीं बसेंगे,तब तक ऐसी प्रतिष्ठा का कोई अर्थ हमारे लिए नहीं है।

गुरुदेव के शताब्दी महोत्सव में महामहिम राज्यपाल आएंगे

प्रदेश के महामहिम राज्यपाल मंगू भाई पटेल के शिवपुरी आगमन के अवसर पर जैनाचार्य कुलचंद्र सूरि जी के आदेश पर जैन समाज के प्रतिनिधि मंडल ने चार्तुमास कमेटी के संयोजक तेजमल सांखला के नेतृत्व में उन्हें गुरूदेव विजय धर्म सूरि जी के 9 से 19 सितम्बर तक शिवपुरी के समाधि मंदिर में आयोजित होने वाले शताब्दी महोत्सव में पधारने का निमंत्रण दिया।
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