तथागत और महावीर समकालीन थे फिर बौद्ध के मुकाबले क्यों पिछड़ा जैन धर्म- संत कुलदर्शन विजय जी #paryushanparv

Bhopal Samachar
शिवपुरी। तथागत बुद्ध और भगवान महावीर समकालीन थे। दोनों महान मूर्तियां बिलक्षण और प्रतिभाशाली थे। लगभग ढ़ाई हजार साल पहले भारतवर्ष के एक प्रांत बिहार उन दोनों की कर्मभूमि रही हैं। लेकिन फिर क्या कारण रहा कि भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म सारे विश्व में फैल गया और अहिंसा के प्रणेता भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित जैन धर्म भारतवर्ष में ही सिकुड गया।

इसका शायद एक ही कारण है कि जैन धर्म शासन प्रभावना अर्थात प्रचार.प्रसार की कमी के कारण पूर्ण वैभव को प्राप्त नहीं कर पाया। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन संत पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने आराधना भवन में पर्यूषण पर्व के दौरान आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में उन्होंने जैन धर्म की दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा का भी शास्त्रोक्त अंतर बताया।

जैनाचार्य कुलचंद्र सूरिश्वर महाराज साहब की निश्रा में श्वेताम्बर समाज पर्युषण पर्व धूमधाम उत्साह उमंग श्रद्धा भक्ति तथा तप आराधना के साथ मना रहा है। पर्यूषण पर्व के दौरान आराधना भवन में जहां मुनि कुलदर्शन विजय जी वहीं पोषद भवन में मुनि कुलरक्षित विजय जी धर्मोपदेश दे रहे हैं।

संत कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय में मुख्य अंतर यह है कि श्वेताम्बर समाज का दृष्टिकोण भगवान महावीर के कथन पर केन्द्रित है। जबकि दिगम्बर समाज भगवान महावीर ने जैसा जीवन जीया उसे प्राथमिकता देता है। भगवान महावीर वस्त्रधारी थे या दिगम्बर इसे भी संत कुलदर्शन विजय जी ने अपने नजरिये से स्पष्ट करते हुए बताया कि दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर के शरीर पर सिर्फ एक वस्त्र रह गया था।

इसके बाद किसी ने उनसे वस्त्र की याचना की तो उन्होंने आधा वस्त्र फाड़कर उसे दे दिया तथा शेष आधा वस्त्र झाड़ी में फंस गया। इसके पश्चात भगवान महावीर ने दिगम्बर रूप धारण किया। पर्युषण पर्व को सार्थक कैसे बनाएं इसका जिक्र करते हुए संत कुलदर्शन जी ने बताया कि हमें सुनने की क्षमता विकसित करनी होगी। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि महाभारत युद्ध के बाद भगवान कृष्ण की वाणी को अर्जुन ने सुना इसलिए वह बच गया।

जबकि रामायण में विभीषण की वाणी को यदि रावण सुन लेता तो उसका और उसके कुल का नाश नहीं होता। पर्युषण पर्व की सार्थकता के लिए उन्होंने कहा कि हमें अच्छा सोचना चाहिए। जैसा हम सोचेंगे वैसा हम बनेंगे। पर्युषण पर्व की सार्थकता के लिए हमें अपने भीतर संकीर्णता से मुक्त होना होगा। जबकि हम दूसरे के शब्दों और व्यवहारों को पकड़ते हैं तथा जिंदगीभर उनसे मुक्त नहीं हो पाते। किसी ने हमारी शान में कुछ कहाए तो उसे भूल जाओ। दूसरों के गलत व्यवहार को भी याद मत रखो।

समता धारण करना संतत्व को प्रमुख लक्षण रू संत कुलरक्षित

पोषद भवन में स्थानकवासी समाज के समक्ष धर्म सभा को संबोधित करते हुए संत कुलरक्षित विजय जी ने अपने उदबोधन में कहा कि संत वह नहीं हैए जो चमत्कार करता हैए सूरदास को आंखे और गरीब को धन देता है। संत वह है जिसके जीवन में समता है। गुरू वहीं है जो समता धारण करता है। उन्होंने बताया कि समता धारण करने के कारण ही वर्धमान महावीर बने।

उन्होंने कहा कि आपके जीवन में गति बहुत हैए लेकिन देख लेना कि उस गति की दिशा ठीक है या नहीं। दिशा ठीक न होने पर आप अपने गंतव्य पर नहीं पहुंच पाएंगे। संत कुलरक्षित विजय जी ने कहा कि धर्म में मात्रा का महत्व नहीं है बल्कि गुणवत्ता का मूल्य अधिक है। सामायिक भले ही पांच न करो बल्कि एक करो परंतु उस सामायिक में समता भाव होना चाहिए।

विशिष्ट अंदाज में लिखी गईं शताब्दी महोत्सव की पत्रिकाएं

शिवपुरी में 100 वर्ष पूर्व प्रसिद्ध जैनाचार्य विजय धर्म सूरि जी का कालधर्म हुआ था। शिवपुरी में उनकी बीटीपी स्कूल के प्रांगण में समाधि भी बनी है। आचार्य विजय धर्म सूरि जी के समाधि महोत्सव पर 9 सितम्बर से 19 सितम्बर तक भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर 9 सितम्बर को महामहिम राज्यपाल मंगू भाई पटेल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे। शताब्दी महोत्सव की पत्रिका लिखने के लिए 100 जैन श्रावकों ने साफा बांधकर जैन मुनियों के सानिध्य में पत्रिकाएं लिखीं।
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