चुनाव स्मरण - जनता द्वारा चुने गए नपाध्यक्ष की जीत में राजे की रही थी अहम भूमिका- Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए पहली बार जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग 1999 में किया था। जब सरकार ने प्रत्यक्ष पद्धति से नपाध्यक्ष का चुनाव कराने का निर्णय लिया था। पहली बार प्रत्यक्ष पद्धति से हुए चुनाव में भाजपा के कमजोर माने जाने वाले प्रत्याशी माखनलाल राठौर ने कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी पूर्व नपाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण शिवहरे को मात देने में इसलिए सफलता हासिल की।

क्योंकि उनकी जीत के लिए क्षेत्र में खासा जनाधार रखने वाली यशोधरा राजे सिंधिया ने पूरी ताकत लगा दी थी। श्री माखनलाल की जीत के लिए वह गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले में घूमी थीं और जनसंपर्क तथा नुक्कड़ सभाएं कर माखनलाल राठौर के लिए वोट मांगे थे। यशोधरा राजे ने मतदाताओं से कहा था कि वह श्री राठौर को नहीं बल्कि उन्हें अपना समर्थन दें। जिसके परिणामस्वरूप भाजपा प्रत्याशी माखनलाल राठौर ने कांग्रेस प्रत्याशी स्व. लक्ष्मीनारायण शिवहरे को 2900 मतों से पराजित कर दिया।

हालांकि कांग्रेस की गुटबाजी के कारण भी लक्ष्मीनारायण शिवहरे पराजित हुए। फूल छाप कांग्रेस ने भाजपा प्रत्याशी माखनलाल राठौर का समर्थन कर श्री शिवहरे की हार सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उस समय कांग्रेस के सिंधिया समर्थक नेता और कार्यकर्ताओं पर भितरघात का आरोप लगा था।

1999 मेंं नगर पालिका अध्यक्ष का पद अन्य पिछड़ा वर्ग पुरुष के लिए आरक्षित हुआ। उस चुनाव में भाजपा में टिकट के लिए अनेक दावेदार थे। भाजपा टिकट की दौड़ में अशोक बाबा, मांगीलाल रावत, बाबूलाल कुशवाह आदि के नाम शामिल थे। माखनलाल राठौर भी चुनाव लड़ने की हसरत पाले हुए थे। लेकिन उनका कमजोर पक्ष यह था कि इसके पहले पार्षद पद के चुनाव में वह पराजित हो गए थे। लेकिन टिकट की कतार में जब अशोक बाबा और मांगीलाल रावत के नाम पर सहमति नहीं बनी तो अन्य नामों पर विचार किए जाने लगा।

फिर आम सहमति के उम्मीदवार के रूप में माखनलाल राठौर का नाम सामने आया। अपनी विनम्रता के बलबूते वह टिकट पाने में सफल रहे। लेकिन राजनीतिक तौर पर उन्हें कमजोर उम्मीदवार के रूप में ही देखा जा रहा था। कांग्रेस संगठन में उस समय दिग्विजय सिंह खेमे का दबदवा था और वर्तमान जिला कांग्रेस अध्यक्ष श्री प्रकाश शर्मा उस समय भी जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज थे। प्रदेश में सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे थे। जबकि गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में स्व. माधवराव सिंधिया का प्रभाव था। लेकिन कांग्रेस के दिग्विजय सिंह खेमे ने लक्ष्मीनारायण शिवहरे की उम्मीदवारी तय कर दी।

इसके पीछे लॉजिक यह था कि स्व. लक्ष्मीनारायण शिवहरे पूर्व में नगर पालिका अध्यक्ष रह चुके थे। उनका कार्यकाल भी बहुत अच्छा था। वह सुशिक्षित थे और नगर पालिका चलाने का उन्हें खासा अनुभव था। जब श्री शिवहरे की उम्मीदवारी तय हुई तो यह माना जा रहा था कि कांग्रेस को जीतने से रोकना भाजपा के लिए संभव होगा। गुणात्मक रूप से स्व. लक्ष्मीनारायण शिवहरे को भाजपा प्रत्याशी माखनलाल राठौर की तुलना में बहुत श्रेष्ठ माना जा रहा था।

शिवपुरी नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव उस समय ऐसा माना जा रहा था कि खरगोश और कछुए के बीच दौड़ का फाइनल खेला जा रहा है। ऐसी विपरीत स्थिति में यशोधरा राजे सिंधिया ने माखनलाल राठौर को जिताने की कमान अपने हाथ में ली। उन्होंने श्री राठौर के खिलाफ जितनी भी शंका जनता के मन में थीं, उन सब का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि नगर पालिका अध्यक्ष माखनलाल राठौर होंगे। लेकिन विकास की जिम्मेदारी मेरी होगी।

यशोधरा राजे ने विभिन्न समाजों की बैठक लेकर श्री राठौर के पक्ष में माहौल बनाया। व्यक्तिगत जनसम्पर्क पर जोर दिया। सैकड़ों नुक्कड़ सभाओं को भी संबोधित किया। श्री राठौर की विनम्रता ने भी जनता को मोहने का काम किया। उस चुनाव में नपाध्यक्ष पद की लड़ाई गरीब और अमीर के बीच केन्द्रित हो गई। श्री राठौर के पक्ष में सहानुभूति का माहौल बना। लेकिन मतदान से पूर्व यहीं संभावना प्रबल थी कि जीतेंगे तो लक्ष्मीनारायण शिवहरे। परंतु मत पेटियां जब खुली तो पूरा परिदृश्य बदल गया और माखनलाल राठौर 2900 मतों से जीत गए।

उस चुनाव में कांग्रेस संगठन पर टिकट बदलने का लगा था आरोप

1999 के नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में सूत्रों के अनुसार स्व. माधवराव सिंधिया ने रामजीलाल कुशवाह की उम्मीदवारी तय की थी। बताया जाता है कि जिला संगठन को खाली मेंडेट इस निर्देश के साथ भेजा गया था कि मेंडेट पर रामजीलाल कुशवाह का नाम लिखा जाए। लेकिन जिला संगठन ने इसकी अवहेलना कर लक्ष्मीनारायण शिवहरे के पक्ष में मेंडेट दे दिया।

दलील यह दी गई कि रामजीलाल कुशवाह की तुलना में लक्ष्मीनारायण शिवहरे अधिक मजबूत उम्मीदवार हैं और श्री कुशवाह को टिकट देना हार का आमंत्रण है। दिग्विजय सिंह खैमे ने जब यह चोट की तो चुनाव में इसकी कसर सिंधिया खेमे ने निकाली और फूल छाप कांग्रेसी श्री शिवहरे को हराने में पूरी ताकत से जुट गए।
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