संतोष शर्मा, पोहरी। बंजर पड़ी भूमि पर जब एक संत की कृपा होती है तो वह भी हरे भरे उपवन का रूप ले लेती है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पोहरी शिवपुरी मार्ग पर स्थित ममलेश्वर आश्रम को देखकर ही पता लग जाता है। महाराज चंद्रमा दास के तप, अथक मेहनत एवं लगातार प्रयासों का परिणाम है कि आज हजारों की संख्या में वृक्ष अपनी हरियाली बिखेर रहे हैं तथा फलदार पौधे हजारों क्विंटल फल प्रदान कर रहे है।
वर्ष 2001 से लगातार पौधरोपण का कार्य महाराज श्री द्वारा किया जाता रहा इसके लिए उन्होंने न केवल कई समस्याओं का सामना किया अपितु अपने हाथों से कुए से पानी बाल्टियों, कट्टियों के माध्यम से कंधे पर रख कर पेड़ों को जिंदा रखा, उन्होने तब जब कोई बिजली का साधन नहीं, मोटर पंप आदि नहीं था उन पौंधों को पेड़ बनने तक पाला उनकी देखभाल की तब जाकर आज वहां हमें उपवन नजर आता है।
उन्होने आंवला, आम, बेलपत्र, कटहल, चीकू, अनार, नींबू, जाम फल, अमलतास, नीम, कैंत, बरगद, पीपल, हर्र, बहेडा, अशोक अर्जुन आदि कई तरह के न केवल फलदार पौधों को लगाया अपितु औषधीय पौधों को भी उन्होने इस आश्रम में लगाया, उनकी देखरेख की।
यह बात है वर्ष 2001 कि जब चित्रकूट आश्रम से महाराज चंद्रमा दास जी भ्रमण करते हुए पोहरी आए, यहां उन्होंने बडे पुल के नजदीक जीर्ण हालत में शिव मंदिर को देखा तो उन्हे अत्यंत कष्ट हुआ उन्होने उसी समय यह निर्धारित कर लिया कि मुझे इस स्थान पर रहना है, तब वहां न कोई संसाधन थे और न ही रहने की कोई व्यवस्था परंतु अपने दृढ़ संकल्प के बल पर उन्होंने इस स्थान पर पौधे लगाने प्रारंभ कर दिये, भरी गर्मी में उन पौधों को पानी देने के लिए कांधे पर कट्टियों को रखकर लगातार मेहनत करते रहे।
पर्यावरण के प्रति उनका विशेष प्रेम रहा जब तक वह जीवित रहे तब तक उन्होंने पेड पौधों की सेवा जारी रखी, 7 नवंबर 2021 को उन्होने नश्वर देह त्याग दी, जिसके बाद उनके साकेत गमन उत्सव अर्थात षोडशी के आयोजन में हजारों की संख्या में उनके भक्त सम्मिलित हुए।
निर्मोही अखाड़े से संबद्ध महाराज चंद्रमा दास जी चित्रकूटधाम के महाराज महावीर दास जी के शिष्य थे, उन्होने कमलेश्वर आश्रम जिसे रैय्या आश्रम भी कहते हैं वहां आकर अपनी तपस्या प्रारंभ की तथा संत परंपरा का अनुसरण करते हुए भरी गर्मी के प्रारंभ अर्थात माघ महीने में बसंत पंचमी के दिन से ज्येष्ठ माह मे पड़ने वाले गंगा दशहरा तक लगभग चार माह प्रतिदिन सुबह ग्यारह से दो तीन बजे तक अपने चारों ओर कंडों की अग्नि में तपस्या किया करते थे।
वैसे तो निर्मोही अखाडे में 18 वर्ष तक यह परस्या करने का नियम है परंतु चंद्रमा दास महाराज द्वारा 36 वर्षों तक इस तप को निरंतर जारी रखा। जिसका परिणाम है कि आज बंजर पडी उस भूमि पर हजारों की संख्या में पेड़ लहलहा रहे साथ ही भव्य मंदिर परिसर एवं धर्मशाला भी बनकर तैयार हो चुकी है, उनके देवलोक गमन के बाद उनके ही शिष्य हरिदास जी महाराज चित्रकूट आश्रम वालों ने उनके शेष रहे कार्यां को पूर्ण करने का दायित्व लिया है।