करैरा। करैरा का सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र जिस पर करैरा जनपद के लगभग 150 गांवों के लोगों के इलाज करने की जिम्मेदारी हैं। 150 गांवों के नागरिकों का इलाज करने वाला अस्पताल BMO की कुर्सी का अखाड़ा बन चुका हैं लगातार विवाद होने के कारण यह अस्पताल विवादो का दूसरा नाम बन गया हैं। अस्पताल में सुविधाएं नहीं हैं,जितने डॉक्टरों के पद हैं उतने डॉक्टर नह हैं खासकर महिलाओं और बच्चों का कोई भी विशेषज्ञ डॉक्टर करैरा अस्पताल मे नही है।
यहां जानना जरूरी होगा कि करैरा सीएससी पर कुल आठ पद हैं जिनमें से सिर्फ 4 पद ही भरे हैं। जहां तक विशेषज्ञ डॉक्टर का सवाल है तो स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ व शिशु रोग विशेषज्ञ का पद यहां बीते काफी समय से खाली है। यहां जो दो डॉक्टर हैं उनमें एक BMO हैं। जिनको अभी BMO बनाया गया वह दिनारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर थे जो अधिकांशत सरकारी मीटिंगों व अन्य शासकीय कार्यों में ही व्यस्त रहते हैं।
ऐसे में एक और डॉक्टर हैं जिनकी कागजों में तो ड्यूटी करैरा के अलावा क्षेत्र के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर अलग अलग दिन लगा दी गई है। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि यह डॉक्टर कहीं भी अपनी सेवाएं ठीक ढंग से नहीं दे पा रहे हैं। यहां पर स्वास्थ्य सेवाएं सुचारू हों या नहीं, लेकिन कुर्सी की लड़ाई बकायदा चल रही है। इसका ही नतीजा है कि पिछले 10 महीने में ही तीन BMO बदले जा चुके हैं।
एक्सरे मशीन बनी है शोपीस, कैसे हों एमएलसी
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र करैरा पर एक्सरे मशीन तो लग गई, लेकिन एक्सरे कभी निकलते तो कभी निकलते ही नहीं हैं। जो टेक्नीशियन है उनका कोई अता पता नही रहता है जबकि यहां रेडियोग्राफर का पद भरा हुआ है। ऐसे एक ओर जरूरतमंदों का एक्सरे नहीं हो पा रहा है तो वहीं बिना काम के ही रेडियोग्राफर को वेतन प्राप्त हो रहा है। यह जानना जरूरी होगा कि करैरा जनपद क्षेत्र में 66 ग्राम पंचायत व करीब 150 गांव आते हैं।
इनमें थाना दिनारा, सुरवाया, अमोला, सीहोर, पुलिस चौकी आमोलपठा, थनरा, सुनारी आती हैं। यहां की पुलिस लड़ाई झगड़े व एक्सीडेंट के मामलों में लोगों की एमएलसी कराने करैरा अस्पताल लाती है लेकिन यहां एक्सरे मशीन न होने से काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे स्थिति में न सिर्फ मरीज को परेशानी आ रही है बल्कि पुलिस का कीमती समय व आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।
महिलाओं के लिए महिला डॉक्टर जरूरी
करैरा अस्पताल पर स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में महिला डॉक्टर का होना बेहद जरूरी है। क्योंकि सामान्यता महिलाएं अपनी हर बीमारी के बारे खुलकर पुरुष डॉक्टर को नहीं बताती हैं। जिसके कारण सही समय पर इलाज न होने से उनका मर्ज बिगड़ जाता है और आगे चलकर उन्हें ऑपरेशन जैसी स्थिति से भी गुजरना पड़ जाता है। इसी तरह बच्चों के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर होना जरूरी है क्योंकि कई बार जनरल फिजिशियन बच्चों की बीमारी को ठीक ढंग से नहीं पकड़ पाता और सामान्य बुखार आगे चलकर मलेरिया, टाइफाइड बन जाता है।
करैरा में दस माह में बदले तीन BMO
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पिछले दस में तीन से BMO बदल गए। अब दिनारा स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ मेडिकल ऑफिसर अरविंद अग्रवाल को करैरा का BMO बनाया गया है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में सिरसौद स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ डॉ संत शर्मा विगत 6 माह से प्रभार में थे। इसके पूर्व डॉ बीके रावत व बीच मे और भी कई BMO बदले। जबकि पहले करैरा में डॉ एन एस चौहान व डॉ प्रदीप शर्मा वर्षों तक BMO बने रहे थे।
आखिर ऐसा क्या हो गया जो रोज बीएमओ बदलने की जरूरत पड़ती है। कोई स्थायी बीएमओ क्यो नही मिल पा रहा है। करैरा में बाहर के BMO पदस्थ करना वहां की भी व्यवस्था खराब होती है और यहां की भी। करैरा में पदस्थ आधा दर्जन डॉक्टरों में से क्या कोई BMO लायक नही है। जिनको अभी हटाया उनको फिर से BMO का प्रभार देने का चल रहा है ।
इनका कहना है
करैरा अस्पताल में महिला डॉक्टर न होने से क्षेत्र के लोगों को बहुत परेशानी आ रही है। हर घर की महिला किसी न किसी बीमारी से पीड़ित है। अस्पताल में पुरुष डॉक्टर के चलते यह महिलाएं अपनी बीमारी को नहीं बता पा रही हैं। जो परिवार आर्थिक रूप से सक्षम है वह तो अपने साधनों से शिवपुरी व झांसी जाकर इलाज करवा लेता है लेकिन गरीब लोग इलाज नहीं करवा पाते।
नासिर खान,नागरिक
गर्भवती महिलाओं को समय समय पर जरूरी जांच करवाना होती हैं लेकिन वे महिला डॉक्टर न होने के चलते यह जांच नहीं करवा पाती है इससे आगे चलकर परेशानी का सामना करना पड़ता है।
फूलवती जाटव, नागरिक