सिंधिया नाम ब्रांड या संघर्ष का:बिना संघर्ष के कुछ नही मिला स्वयं सिंधिया को,लेकिन जिसको जो चाहा वह दिया

Bhopal Samachar
शिवपुरी समाचार डॉट कॉम
। ग्वालियर राजघराने के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को देश की कैबिनेट में स्थान मिल गया हैं। वह अब देश के नागरिक उडयन मंत्री हैं,सिंधिया ने हमेशा कहा है कि वह राजनीति के माध्यम से जनसेवा करते हैं। सिंधिया नाम एक ब्रांड हैं पर सिंधिया नाम एक सघंर्ष भी हैं,ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में सिंधिया राजघराने की तीसरी पीढी राजनीति के मैदान में हैं।

अगर सिंधिया राजघराने के तीनो पीढियो के राजनीतिक सफर का विश्लेषण किया जाए तो यह बाद स्वयं सिद्ध हो जाता है कि सिंधिया नाम ब्रांड है लेकिन संघर्ष का दूसरा नाम भी सिंधिया हैं। राजमाता से लोकमाता बनने का सफर राजमाता विजयराजे सिंधिया का किसी से छुपा नही हैं। राजमाता विजयाराजे और कांग्रेस की इंदिरा गांधी की तकरार किसी से छुपी नही हैं।

जनसंघ जो अब विशाल भाजपा दल हैं उसे खडा करने के लिए राजमाता ने अपनी सगाई की अंगूठी तक बेच दी थी। राजमाता विजयराजे सिंधिया आपातकाल के दौरान जेल गई अगर वह इंदिरा गांधी का समर्थन कर देती तो शायद उन्है जेल की यात्रा नही करनी पडती,राजमाता से लोकमाता बनने के सफर में भाजपा का ध्वज राजमाता हमेशा थामी रही।

भाजपा से राजमाता ने कुछ नही लिया बल्कि दिया हैं। राजमाता की राजनीतिक यात्रा संघर्षो से भरी रही। एक रानी को जेल भेज दिया गया,लेकिन उन्होने अपने सिंद्धात नही छोडे। कुल मिलाकर सिंधिया सरनेम ब्रांड के पीछे एक संघर्ष की लंबी कहानी है।

माधवराव सिंधिया दो बार बनते बनते रह गए सीएम

साल 1989 का जब मध्य प्रदेश में चुरहट लॉटरी कांड हुआ था। उस समय प्रदेश में अर्जुन सिंह की सरकार थी और वे चुरहट से विधायक थे। यही कारण था कि उनपर इस्तीफे का दवाब बनने लगा। लोग ये मांग करने लगे कि जिस मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में ये कांड हुआ है, उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने का काई औचित्य नहीं है। तब केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे।

उन्होंने ने सोचा चुरहट कांड का बवाल और ज्यादा बढ़े इससे पहले ही मुख्यमंत्री को बदल दिया जाए। उनकी इच्छा थी कि माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाए। लेकिन, अर्जुन सिंह भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे। उन्होंने साफ कर दिया कि वे इस्तीफा नहीं देंगे। सिधिंया भी तब तक भोपाल पहुंच चुके थे। वो बस सीएम बनने की घोषणा का इंतजार कर रहे थे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

अर्जुन सिंह के शर्त ने पासा पलट दिया

अर्जुन सिंह ने अपना इस्तीफा देने से पहले कांग्रेस आलाकमान के सामने एक शर्त रख दी थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं तभी इस्तीफा दूंगा जब मोतीलाल वोरा को सीएम बनाया जाएगा। इसके बाद एक समझौते के तहत वोरा को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया और सिंधिया बस बनते-बनते रह गए। इस घटना से तात्कालिन प्रधानमंत्री राजीव गांधी अर्जुन सिंह से नाराज हो गए। उन्होंने पार्टी में अर्जुन सिंह के धुर विरोधी शायामाचरण शुक्ल को ज्वाइन करवा दिया और मोतीलाल वोरा के बाद शुक्ल को ही मुख्यमंत्री बनाया गया।

दूसरी बार दिग्विजय ने दे दी थी सिंधिया को मात

अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश की राजनीति से निकल कर केंद्र में चले गए। लेकिन उन्होंने सिंधिया को कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। एक बार फिर से 1993 में ऐसा लगा कि सिंधिया ही मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन, अर्जुन सिंह गुट ने सिंधिया राजघराने के प्रतिद्वंदी और राघौगढ़ राजघराने के राजा दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया। कहा जाता है कि उस वक्त अर्जुन सिंह, दिग्विजय के राजनीतिक गुरू हुआ करते थे। इस कारण से दूसरी बार भी सिंधिया मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए।

हालाकि कैलाशवासी माधवराव सिंधिया का कद कांग्रेेस में काफी बडा था,लोकप्रिय और जनमानस को अपनी ओर आकृषित करने वाले नेता थे। कांग्रेस की केन्द्र सरकार में कैबीनेट मंत्री भी रहे,लेकिन मप्र के सीएम नही बन सके। कांग्रेस के कारण ही कैलाशवासी माधवराव सिंधिया और उनकी मां राजमाता विजयराजे की बीच दूरिया बडी।

अंत समय तक मां बेटे के बीच बातचीत बंद रही। अगर देखा जाए तो एक कैलाशवासी माधवराव का एक सांसद बनने से लेकर केन्द्रीय मंत्री बनने का सफर काफी सघर्षपूर्ण रहा,ओर अंतिम समय में माधवराव सिंधिया की दुखद निधन भी जब हुआ जब वह कांगेेस की एक सभा को संबोधित करने जा रहे थे।

कांग्रेस ने कमजोर समझा ज्योतिरादित्य को:पलटवार में उखड गई सरकार

कहानी शुरू होती हैं मप्र के आम विधानसभा चुनावो से मप्र की जनता ने कांग्रेस का चेहरा समझा ज्योतिरादित्य सिंधिया को,भाजपा ने भी अपने विज्ञापन में बस करो महाराज का कैंपन चलाया,भाजपा को भी लगा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया खिलाफ शिवराज की जंग हैं।

कांग्रेस ने जब मप्र में सरकार बनाई तो दिग्गी ने अपनी चाले चलते हुए कमलनाथ को मप्र का सीएम बनाबा दिया। ऐसा लग रहा था कि सिंधिया सीएम नही बने तो मप्र कांग्रेस की कमान उनके हाथ सौंपी जाऐगी,लेकिन ऐसा नही हुआ।

2019 का लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार हुई। इसके बाद कलमनाथ और दिग्गी राजा ने मिलकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को लगातार अपमानित किए जाने लगा। इसके बाद राज्य सभा चुनाव में भी सिंधिया की राह में रोडे लटकाए जाने लगे। शायद दिग्गी राजा और कमलनाथ को ऐसा लग रहा था कि सिंधिया का कैरियर अब ढलान की ओर हैं।

लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्य सभा चुनाव से पूर्व कांगेस का हाथ छोड भाजपा का दामन थाम लिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मप्र के 17 विधायक भी कांग्रेस को छोड भाजपा में चले गए और अपनी विधायकी से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस सरकार अल्पमत में आकर उखड गई और भाजपा ने पुन:सरकार बना ली।

2 दिवस पूर्व ज्योतिरादित्य सिंधिया को नागरिक उडयन मंत्री बनाया गया हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण छोडने के कारण कांग्रेस अब मप्र में मृत अवस्था में आ चुकी है। कुल मिलाकर इस बात में कोई संदेह नही है कि सिंधिया नाम एक ब्रांड हैं,लेकिन यह भी परम सत्य है कि सिंधिया नाम एक संघर्ष भी हैं।

चाहे राजमाता विजयाराजे सिंधिया हो या फिर कैलाशवासी माधवराव सिंधिया हो,या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया हो। इन्है आसानी से सफलताए नही मिली हैं एक लंबा सघर्ष करना पडा हैं,लेकिन यह भी परम सत्य हैं कि इन तीनो ने जिसको जो चाहा वह दिया हैं। कई विधायक और मंत्री मप्र में है जो सिर्फ सिंधिया के कारण ही विजयी हुए है।
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