hindi story- प्रकृति

Bhopal Samachar
एक दिन, शिष्यों का एक समूह अपने गुरु के पास गया और उन्हें बताया कि वे सभी तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं।
गुरु ने पूछा, "आप तीर्थ यात्रा क्यों करना चाहते हो?"
सभी की ओर से, शिष्यों में से एक ने उत्तर दिया, "हम अपनी भक्ति को गहरा करना चाहते हैं, गुरुदेव।"
गुरु ने कहा, "यह प्रशंसनीय है! पर क्या तुम मेरा एक काम करोगे?"
सभी शिष्यों ने एक साथ कहा, "आज्ञा दें गुरुदेव।"
गुरु ने कहा, "कृपया इस करेले को अपने साथ ले जाएँ। आप जहाँ भी जाएँ और जिस भी मंदिर में जाएँ, इसको भी देवता के चरणों में रखें, आशीर्वाद लें और इसे वापस लायें, मेरे लिए।"
तो, केवल शिष्य ही नहीं, बल्कि करेला भी तीर्थ यात्रा पर गया!
और अंत में, जब शिष्य अपनी यात्रा से वापस आए, तो गुरु ने शिष्यों से करेले को पकाने और उसे परोसने के लिए कहा।

जैसा कहा गया, शिष्यों ने करेले को पकाया और बड़ी श्रद्धा के साथ अपने गुरु को परोसा।
पहला टुकड़ा खाने के तुरंत बाद, गुरु ने कहा, "कितने आश्चर्य की बात है!"
गुरु किस बारे में आश्चर्य कर रहे थे, कोई भी शिष्य यह नहीं समझ पा रहा था। आखिर एक शिष्य ने पूछा, "गुरुदेव इसमें आश्चर्य की क्या बात है?"
गुरु ने उत्तर दिया, "इतनी तीर्थयात्रा के बाद भी करेला कड़वा है! ऐसा कैसे हो सकता है?"
भ्रमित शिष्यों ने कहा, "लेकिन करेले की तो प्रकृति ही कड़वी होती है... है ना, गुरुदेव?"

यह सुनकर गुरु मुस्कराये और फिर कहा, "यही तो मैं समझाने की कोशिश कर रहा हूँ। जब तक हम अपनी प्रकृति (स्वभाव) नहीं बदलेंगें, चाहे हम कितनी भी तीर्थ यात्रा कर लें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा! यह एक उल्टे बर्तन पर पानी डालने के समान है। वह अपने अंदर पानी को पकड़ ही नहीं सकता है!"

आध्यात्म कहता है, स्वयं में बदलाव के बिना हमें कुछ भी नहीं बदल सकता कोई भी गुरु या शिक्षक भी तब तक मदद नहीं कर सकते जब तक हम अपने अंदर को बदलने की इच्छा नहीं रखते हैं।
और सभी परिवर्तन केंद्र से शुरू होते हैं, जो हम में हमारा दिल है। वहीं हृदय पर ध्यान मदद करता है! यह हमें अपने स्वभाव को विकसित करते हुए स्वयं को मूल से बदलने में सक्षम बनाता है।

ऐसी स्थिति में हमारा भीतर और बाहर एक ही लय में बना रहता है, हमारी आंतरिक और बाहरी प्रकृति एक हो जाती है!

"जब हम अपना व्यवहार बदलते हैं, तो यह हमारी सोच को बदलने में मदद करता है। जब हम अपनी सोच बदलते हैं, तो यह हमारे विश्वास पैटर्न को बदल देता है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हम धीरे-धीरे प्रकृति के साथ संरेखित होते हैं।"
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