जसवंत की उम्मीदवारी यथावत रखने की विवशता बनी करैरा में भाजपा की हार का कारण - karera News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस से अपने 20 साल पुराने संबंध तोडक़र 22 विधायकों के साथ भाजपा में आए थे तो एक शर्त यह भी थी कि कांग्रेस छोडऩे वाले और विधायक पद से इस्तीफा देने वाले कांग्रेस विधायकों को उपचुनाव में भाजपा टिकट देगी और भाजपा ने इस शर्त का अक्षरश: पालन भी किया।

इस कारण करैरा में भी विधायकी छोडऩे वाले जसमंत जाटव को दोहराया जाना भाजपा की मजबूरी थी। जबकि कांग्रेस ने बड़ी चतुराई के साथ करैरा में तीन बार से हार रहे जमीन से जुड़े बसपा प्रत्याशी प्रागीलाल जाटव को टिकट दे दिया और प्रत्याशी चयन में जब मतदाता के पास विकल्प रहा तो उसने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर जसमंत की तुलना में प्रागीलाल को पसंद किया। यहीं कारण रहा कि जसमंत 2018 में मिली अपनी 14 हजार की लीड को न केवल गंवा बैठे बल्कि उल्टे 30 हजार से अधिक वोटों से वह पराजित हो गए। 

करैरा विधानसभा चुनाव में भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता पार्टी प्रत्याशी जसमंत जाटव के प्रचार में पूरी समर्पण भावना के साथ जुटे। भाजपा के प्रदेश महामंत्री रणवीर रावत का करैरा विधानसभा क्षेत्र है। वह यहां से 1998 में विधायक भी रह चुके हैं और इसके बाद से वह लगातार संगठन में सक्रिय रहे हैं। भाजपा जिलाध्यक्ष से रहकर किसान मोर्चे के प्रदेशाध्यक्ष पद पर भी उनकी ताजपोशी हुई है। 

श्री रावत का क्षेत्र में अच्छा प्रभाव माना जाता है और इस विधानसभा क्षेत्र में रावत मतदाताओं की संख्या भी लगभग 20 हजार है। रणवीर सिंह रावत पूरी ताकत और समपर्ण भावना के साथ जसमंत जाटव के प्रचार में जुटे। भाजपा ने करैरा जीतने के प्रयास में कोई कमी नहीं छोड़ी और इस विधानसभा क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, डॉ. नरोत्तम मिश्रा और यशोधरा राजे सिंधिया जैसे धूरंधर प्रचार में जुटे। सिंधिया और शिवराज की तो तीन-तीन सभाएं हुई। 

यशोधरा राजे ने ग्रामीण क्षेत्रों में जनसम्पर्क कर महिलाओं से संवाद किया। जसमंत जाटव ने अपनी गलतियों के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी और वह मतदाताओं के समक्ष साष्टांग दंडवत भी हुए। उन्हें कांग्रेस में टिकट वितरण के बाद मची भगदड़ का भी लाभ मिला। बसपा से आए प्रागीलाल को टिकट मिलने के बाद पूर्व विधायिका शंकुतला खटीक, केएल राय जैसे नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी और वह भाजपा में शामिल हो गए। 

2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लडऩे वाले पूर्व विधायक रमेश खटीक भी इस बार भाजपा के प्रचार में जुटे और उन्होंने यथा संभव सहयोग जसमंत जाटव को जिताने के लिए किया। जसमंत की तुलना में प्रागीलाल के पास स्थानीय नेताओं का टोटा रहा। लेकिन उनके प्रचार की कमान आम मतदाता ने संभाली। उनका चुनाव प्रबंधन भी खासा कमजोर रहा और उनके प्रचार में जुटे कांग्रेस कार्यकर्ता यह कहते नजर आए कि प्रागीलाल ने कैसे तीन बार चुनाव लड़ा। 

चुनाव लडऩे का कौशल उनमें कहीं नजर नहीं आया। लेकिन प्रागीलाल को चुनाव प्रबंधन से अधिक अपनी सीधी साधी छवि और जनता के बीच सक्रियता का लाभ मिला। मतदाता ने जब प्रागीलाल और जसमंत जाटव के बीच तुलना की तो उसे लगा कि प्रागीलाल उनके लिए अधिक मुफीद हैं। जीतने के बाद प्रागीलाल भले ही कुछ न करें। लेकिन उनके लिए समस्या तो नहीं बनेंगे। क्योंकि मतदाता जसमंत जाटव का 18 माह का कार्यकाल देख चुका था। 

इस कार्यकाल में उनका व्यवहार दबंग राजनेता की तरह था। प्रशासन पर उनकी तूती बोलती थी और अपने व्यवहार से वह जनता के दिलों से अपना नाम हटा चुके थे। आम मतदाता से सम्पर्क उनका पूरी तरह से कट गया था और अवैध खदान कारोबार में संलिप्तता की खबरों से उनकी छवि काफी खराब हो गई थी। जसमंत आम मतदाताओं के स्थान पर एक कोकस के हाथों में कैद हो गए थे। 

जिन्होंने कभी भी उन्हें सच्चाई से अवगत नहीं होने दिया। बसपा प्रत्याशी के रूप में प्रागीलाल ने 2008 से अपनी पकड़ निरंतर बनाकर रखी। क्षेत्र में लगभग 40 हजार जाटव मतदाता हैं और उनके समर्थन के बलबूते 2008, 2013 और 2018 के चुनाव में प्रागीलाल 35 से 40 हजार वोट लाते रहे। 2008 में तो उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को पछाडक़र दूसरा स्थान प्राप्त कर लिया था। 

उनके स्थान पर बसपा ने जिस प्रत्याशी राजेंद्र जाटव को टिकट दिया, वह बहुत कमजोर था। जिसका फायदा प्रागीलाल जाटव को मिला और बसपा के मतों का धु्रवीकरण भी उनके पक्ष में हुआ। यहीं कारण रहा कि प्रागीलाल जाटव ने बड़ी आसानी से और लंबे मार्जिन से जसमंत जाटव को पराजित करने का कौशल कर दिखाया।
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