ललित मुदगल/शिवपुरी। शिवपुरी के कोलारस नगर में स्थित एक बागीचे में एक विशाल वृक्ष है। स्थानीय लोग इसे कल्पवृक्ष कहते हैं। इस वृक्ष की उम्र 1 हजार साल से भी अधिक बताई जा रही हैं। हिन्दू पुराणों के इस वृक्ष का वर्णन मिलता हैं। इस वृक्ष के नीचे अपार सकारात्मक उर्जा का अनुभव होता है।
शिवपुरी समाचार डॉट कॉम को इस वृक्ष के होने की सूचना मिली। टीम निकल गई पुराणों में वर्णित वृक्ष को कवर करने। कोलारस पहुंचकर इसकी बताई गई लोकेशन पर शिवपुरी समाचार डॉट कॉम की टीम पहुंची। आसपास कोई नही था। एक बकरी चराते हएु बुजुर्ग ग्रामीण मिला उससे इस विशाल वृक्ष के बारे में जानकारी ली।
यह ग्रामीण हमे इस वृक्ष के पास लेकर गया। इस वृक्ष को हमने दूर से देखा इसका अकार अकल्पनीय और रोमाचिंत करने वाला था। जीवन में पहली बार ऐसे वृक्ष को हमने देखा। इस वृक्ष के तने का व्यास लगभग 50 फुट था और इसकी उंचाई लगभग 70 फुट से अधिक थी। इस वृक्ष चतुरसीमा की बात करे तो इसकी विपरीत शाखाओ के एक छोर से दूसरी छोर की दूरी 150 फुट से भी अधिक हैं।
इस वृक्ष की मजबूत शाखाओ में मधुमक्खीयों ने अपनी छत्ते बना रखें हैं। हम जब इस वृक्ष का कवरेज कर रहे थे जब इस और स्थानीय नागरिक आ गए,उन्होने बताया की इस वृक्ष जो मधुमक्खी है वह इसकी पहरेदार हैं जो भी व्यक्ति इस पेड को नुकसान पहुचाने या गलत भावना से इसके पास जाता हैं तो यह मधुमक्खी उस पर हमला कर देती हैं।
ऐसे प्रकट हुआ था यह हुआ है देववृक्ष, यह है पुराणों में कथा
हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार जब देवो और असुरो ने मिलकर समुद्र मंथन किया था जब 14 रत्नो की उपत्ति हुई थी। अमृत,कामधैनु गाय सहित यह वृक्ष इन रत्नो में शामिल था। इस कल्पवृक्ष को इंद्रो के राजा स्वर्ग लोक ले गए थे। बाद में एक अनुसार भगवान श्री कृष्ण इसे भूलोक पर लाए थे। भारत के आलावा इस वृक्ष की प्रजातिया कई देशो में भी पाई जाती है।
कहां जाता हैं कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर जो भी ईच्छा की जाती हैं वह सफल होती हैं। इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा,पाठ,यज्ञ,हवन,जप और तप किया जाता हैं वह तत्काल फलित होता हैं कोलारस में कई लोग इसकी विशेष पूजा अर्चना करते हैं। दूर दराज के साधु संत भी इसके नीचे बैठकर भजन पूजन करने आते रहते हैं।
ऐसा दिखता हैं यह वृक्ष
वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है जिसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं तथा सभी पत्ते पांच या सात के गुच्छे/समूह में रहते हैं । इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी- सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है।
चमत्कारी औषधियो के गुण हैं इस देव वृक्ष में
यह एक परोपकारी मेडिस्नल-प्लांट है अर्थात दवा देने वाला वृक्ष है। इसमें संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन 'सी' होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं।
इसकी पत्ती को धो-धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है। सेहत के लिए इस वृक्ष की 3 से 5 पत्तियों का सेवन करने से हमारे दैनिक पोषण की जरूरत पूरी हो जाती है। शरीर को जितने भी तरह के सप्लीमेंट की जरूरत होती है इसकी 5 पत्तियों से उसकी पूर्ति हो जाती है।
इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक होती हैं, क्योंकि इसके पत्ते एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। यह कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर है। इसके पत्तों में एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है। गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसकी पत्तियों व फूलों का रस लाभदायक सिद्ध हुआ है।
इन नामो से जाना भी जाना जाता हैं यह वृक्ष
कल्पवृक्ष देवलोक का एक वृक्ष। इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु तथा कल्पलता इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। कल्पवृक्ष का संज्ञा में कहते है कलातंर तक रहने वाला अर्थान लंबी उम्र तक जीवित रहने वाला।
रामचरित मानस में भी है इसका उल्लेख
तुलसी कृत रामचरित मानस में भी इस ईच्छापूर्ति कल्पवृक्ष का वर्णन मिलता हैं। जब लक्ष्मण शक्ति लगने के बाद लक्ष्मण जी मेघनाथ से युद्ध करने गए थे। यह हम सभी को पता हैं जब रावण का सबसे शक्तिशाली पुत्र मेघनाथ का अंतिम युद्ध,युद्ध भुमि मे ना होकर श्रीलंका की दुर्गम पहाडियो में हुआ था। जहां इंद्रजीत अपनी कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कर रहा था।
लक्ष्मणजी को विभीषण इस मंदिर पर ले गए थे। वानर सेना ने इंद्रजीत का यज्ञ विध्वंस कर दिया था। इंद्रजीत के इस मंदिर से बहार निकलने से पूर्व ही विभीषण एक लक्ष्मण जी को एक विशाल वृक्ष के नीचे ले गए थे और कहा कि इंद्रजीत सीधे इसी विशाल पेड के नीचे आऐगा और वहां से युद्ध करेगा,जिससे वह अजेय हो जाऐगा,इससे पूूर्व हमे हमे इस वृक्ष के नीचे चलना चाहिए, यह सिद्ध वृक्ष हैं। इस वृक्ष को कल्पवृक्ष बताया गया है।