राजनीतिक चाणक्य की चालो को मात देने के लिए ज्योतिरादित्य चाहते हैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद

Bhopal Samachar
शिवपुरी। प्रदेश सरकार के खाद्य मंत्री प्रधुम्न सिंह तोमर का कहना है कि सिंधिया उस कद के नेता है जो पद के पीछे नहीं भागते, लेकिन पद उनके पीछे  भागता है, लेकिन सवाल यह है कि जब ऐसी बात  है तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक क्यों उतावले हुए जा रहे हैं। 

इसका राज सिंधिया खेमे के एक वरिष्ठ नेता ने खोलते हुए बताया कि जिस तरह से मध्यप्रदेश के शासन और प्रशासन में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जिन्है प्रदेश की राजीनीति मेे कांग्रेस का चाणक्य कहा जाता है, प्रदेश सरकार में उनका दखल बढ़ रहा है उसे रोकने के लिए सिंधिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाहते हैं, क्योंकि जनता ने दिग्विजय सिंह के शासन को ध्यान में रखकर कांग्रेस को सत्ता में नहीं लाया था।

यदि मतदाता को इस बात का जरा भी भान होता कि सत्ता में आने के बाद दिग्विजय सिंह सत्ता सुख भोंगेंगे तो प्रदेश में कभी भी कांग्रेस सरकार नहीं आती। दिग्विजय सिंह ने अपने पुत्र जयवर्धन सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाने के लिए राज्य मंत्री और उपमंत्री पद ही समाप्त करा दिए तथा इस वक्त भी सत्ता में मुख्यमंत्री कमलनाथ से अधिक दिग्विजय सिंह की चल रही है तथा सिंधिया खेमे के मंत्रियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है।

उन्हें विभाग भी महत्वपूर्ण नहीं दिए गए हैं तथा प्रशासन में भी उनकी पूछ परख नहीं है। इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेशाध्यक्ष बनकर दिग्विजय सिंह के  शासन और प्रशासन में अनावश्यक दबदबे को समाप्त करना चाहते हैं।

नवम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मध्यप्रदेश के साथ साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी सफलता हासिल हुई। मध्यप्रदेश में जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की जोड़ी को जीत का श्रेय दिया गया वहीं राजस्थान में कांग्रेस की जीत के शिल्पकार अशोक गहलोत और सचिन पायलट रहे। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के  साथ टीएस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू  भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे।

तीनों प्रदेशों में मुख्यमंत्री पद के एक से अधिक दावेदार होने पर सभी संभावित दावेदारों को उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तलब किया। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य ङ्क्षसंधिया और कमलनाथ को, राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत को तथा छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंहदेव को दिल्ली बुलाकर उनसे चर्चा की। जिसका परिणाम यह हुआ कि भले ही राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने, लेकिन सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद के साथ साथ उनका प्रदेशाध्यक्ष का पद भी बहाल रखा गया।

जबकि छत्तीसगढ़ मे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बने, लेकिन अन्य दावेदार ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंहदेव को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया। जहां तक प्रदेश का सवाल है तो कमलनाथ के पास पूर्व से ही प्रदेशाध्यक्ष पद का कार्यभार था। दिग्विजय सिंह के सपोर्ट के कारण मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कमलनाथ का पलड़ा भारी हो गया था, लेकिन उस समय चाहते तो सिंधिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद साथ में उपमुख्यमंत्री पद भी हासिल कर सकते थे।

क्योंकि अन्य प्रदेशों में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को कुछ न कुछ तो अवश्य मिला था, लेकिन सिंधिया ने न तो उपमुख्यमंत्री पद और न ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की मांग की। हालांकि उस समय भी उनके समर्थकों का दबाव था कि सिंधिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाले। इसके बाद सिंधिया  केंद्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए  और प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को खाली स्थान मिल गया।

इसके बाद वह प्रदेश की राजनीति में पूरी ताकत से सक्रिय हो गए। उन्होंने एक ओर जहां अपने पुत्र को कैबिनेट मंत्री बनाने में मुख्य भूमिका अदा की वहीं 6-6 बार के कांग्रेस विधायक केपी सिंह मंत्री पद के लिए तरसते रहे और इसका ठीकरा सिंधिया के सिर फोड़ा गया कि उनके बीटो के कारण केपी सिंह को मंत्री नहीं बनाया गया। केपी सिंह कांग्रेस की गुटीय राजनीति में दिग्गी समर्थक माने जाते हैं, लेकिन केपी सिंह के रहते दिग्विजय सिंह के सुपुत्र जयवर्धन सिंह प्रदेश की राजनीति में अधिक उड़ान नहीं भर सकते थे, क्योंकि उनसे अधिक वरिष्ठ केपी सिंह थे। इसलिए केपी सिंह मंत्री बनने से पात्र होने के बावजूद भी वंचित हो गए।

उधर लोकसभा चुनाव में सिंधिया पराजित हो गए और साथ में कांग्रेस को भी देश की राजनीति में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। सिंधिया के लिए केंद्रीय राजनीति में आगे बढऩे का अवसर समाप्त हो गया। हालांकि लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह भोपाल से तीन लाख  से अधिक मतों से पराजित  हो गए थे, परंतु इसकी परवाह किए बिना वह पूरी ताकत  से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे। मंत्रियों पर उनका दबाव लगातार बना रहा।

वह मंत्रियों को पत्र लिखकर उनसे उनके काम का हिसाब किताब मांगते रहे। पिछले कुछ महीनों से इस तरह का संदेश जा रहा था कि सरकार मुख्यमंत्री कमलनाथ नहीं बल्कि दिग्विजय सिंह चला रहे हैं। सिंधिया समर्थक कुछ मंत्रियों की आस्था भी दिग्विजय सिंह के प्रति बढऩे लगी थी। ऐसे मंत्रियों में महेंद्र यादव और गोविंद सिंह राजपूत का नाम लिया जा रहा है।

कैबिनेट बैठक में सिंधिया समर्थक मंत्री प्रधुम्न सिंह तोमर और मुख्यमंत्री कमलनाथ के बीच जो  तीखी  झड़प हुई उसमे कहीं न कहीं निशाने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी आ गए, क्योंकि बताया जाता है कि कमलनाथ ने श्री तोमर की ओर मुखातिब होते हुए कहा था कि मुझे पता है किसके इशारे पर यह किया जा रहा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद छोडऩे की पेशकश के बाद दिग्विजय सिंह खेमे की रणनीति रही कि इस पद को भी हथिया लिया जाए। इसके लिए अजय सिंह के निवास स्थान पर दो  दर्जन से अधिक विधायकों की बैठक हुई।

जिसकी भूमिका बताया जाता है कि दिग्विजय सिंह ने बनाई थी। इस बैठक में अजय सिंह के नाम को आगे बढ़ाया गया। हालांकि अजय सिंह ने बाद में इसका खण्डन किया और सूत्रों के अनुसार दिग्विजय सिंह के नाम पर एक तरह से सहमति बन गई थी। मुख्यमंत्री कमलनाथ भी सोनिया गांधी से मिलने के लिए जा पहुंचे थे। इसे भांपकर सिंधिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में कूंद पड़े।

सूत्रों के अनुसार उन्होंने पार्टी आलाकमान को अल्टीमेटम दे दिया यदि उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो वह  पार्टी छोड़ देंगे। हालांकि इस खबर की अधिकृत रूप से पुष्टि नहीं हुई, लेकिन यह बात तय थी कि प्रदेश में जो कुछ भी चल रहा था उससे सिंधिया कहीं न कहीं नाखुश और नाराज थे। सिंधिया का कहना है कि अवैध उत्खनन को मुद्दा बनाकर हमने विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन सरकार में आने के बाद हम अवैध उत्खनन पर अंकुश तो नहीं लगा पाए बल्कि यह और अधिक बढ़ गया।

इसी बीच प्रदेश सरकार के वन मंत्री उमंग सिंघार जो कि स्व. जमुनादेवी के भतीजे हैं ने खुलकर दिग्विजय सिंह पर हमला बोल दिया और उन्हें ब्लैकमेलर, लुटेरा तथा न जाने क्या क्या कहा। उन्होंने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कहा कि सरकार पर्दे के पीछे से दिग्विजय सिंह चला रहे हैं इसके बाद उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए दिग्विजय  सिंह पर बहुत गंभीर आरोप लगाए और यहां तक कहा कि हर विभाग से उन्हें पैसा चाहिए। वह 72 साल की उम्र में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाहते हैं।

इससे प्रदेश में हडक़ंप व्याप्त हो गया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उमंग सिंघार को तलब कर उनसे एक घंटे तक चर्चा की। इसके बाद भले ही  उमंग सिंघार ने चुप्पी साध ली, लेकिन इससे यह तो  स्पष्ट हो गया कि प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समानांतर सत्ता केंद्र बने हुए हैं। शायद इसे ही खत्म करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में कूंदे हैं।

उनकी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से जो चर्चा हुई है उससे वह काफी आश्वस्त नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरे रिश्ते सोनिया गांधी और राहुल गांधी से हैं और मुझे उन पर पूरा भरोसा है। अध्यक्ष पद के लिए वह जो भी निर्णय लेेंगी मुझे मान्य होगा। इससे लगता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सिंधिया पूरी तरह आश्वस्त है। लेकिन सवाल यह है कि अध्यक्ष बनने के बाद भी क्या उनके पास दिग्विजय सिंह के राजनीति के अचूक मोहरों की कोई काट होगी अथवा नहीं।