विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय तक पहुंच चुके है हमारी ऐकेडमी में पढे स्टूडेंट: शिक्षाविद संजय वर्मा

Bhopal Samachar
शिवपुरी। स्टूडेंटो को शिक्षा के साथ-साथ सकारात्मकता की सोच को भरना जिससे वह अपने जॉब की तैयारी करते समय हताश न हो। हमारी ऐकेडमी की सफलता का मूल मंत्र यही हैं इस मूलमंत्र के सहारे ही शिवुपरी के स्टूडेंट विदेश मंत्रालय,रक्षा मंत्रालय ओर इंकमटेक्स जैसे विभागो में उच्च पदो पर पहुंच गए हैं। यह कहना हैं शिवपुरी की प्रसिद्ध् इवाक ऐकेडमी के डारेक्टर संजय वर्मा का।

शिवपुरी समाचार डॉट कॉम की संवाददाता खुश्बू शिवहरे ने शिक्षाविद संजय वर्मा ने शिवुपरी की ऐजूकेशन और उनकी ऐकेडमी के ऐजूकेशन सिस्टम पर बातचीत की,इससे पूर्व शिक्षाविद वर्मा का पूरा परिचय करते हैं नाम संजय वर्मा पिता का नाम श्री उमेश वर्मा शिक्षा एमए इक्कोनिमिक्स,संस्था का नाम ईवॉक ऐकेडमी राजेश्वरी रोड शिवपुरी।

अपने शिक्षा के क्षेत्र में आने पर शिक्षाविद वर्मा ने कहा कि बचपन में छोटा था तब मुझे पढने ज्यादा रूचि नही थी,मै अपने टीचर को पढते हुए देखता था तो सोचता था कि कैसी लाईफ है हमारे टीचर सिर्फ कॉफी किताबो में ही उलझे रहते हैं। सरकारी नौकरी करूंगा तो टीचर नही बनूंगा।

लेकिन पढने का मतलब ज्ञात हुआ और हमने नौकरी की तैयारी शुरू की तो,हमारे मनमोहन शर्मा सर को देखा वे स्टूडेंटो को बडे ही ध्यान और रूचि से पढाते थे,पढने के लिए आर्कषण पैदा करते थे,तो उन्है देखकर मेरा मन बदला और सोचा कि अब शिक्षा के क्षेत्र में ही जाऐगें। आगे बात करते हुए कहा कि मेरी सरकारी नौकरी भी लगी लेकिन मनमुताबिक नही लगी। इसके बाद सन 2006 से शिक्षा के क्षेत्र में आ गया।

मैने 2006 से बच्चो को पढाना शुरू कर दिया। सन 2009 में ईबॉक ऐकेडमी की शुरूवात की। मैने अपनी ऐकेडमी में सबसे पहले अपने ही दोस्तो को मैथरिजनिंग पढाया ओर उनकी नौकरी की तैयारी करवाई। उसके बाद 2 साल के अंदर मेरे सभी दोस्तो की नौकरी लग गई। उसके बाद मेरे पास स्टूडेंटो की संख्या बढती चली गई। अब हमारी ऐकेडमी में मैथरिजनिंग,समान्य अध्ययन,अंग्रजी अलग—अलग शिक्षको के दवारा पढाई जात है।आज 200 प्लस स्टूडेंट हैं।

अपने लक्ष्य तक पहुंचने में परेशानी की पर संजय वर्मा ने कहा कि परेशानी तो बहुत आई,लेकिन सोच सकारात्मक थी। हर प्रत्येक स्टूडेंट का सोचने का नजरिया अलग होता हैं सब स्टूडेंटो की सोच को एक जगह रखना बडा ही कठिन था,लेकिन स्टूडेंटो को पढाने के साथ—साथ मानसिक रूप से कॉमपिटशन के लिए तैयार किया।

अब अपनी सफलता को कैसे देखते हैं। इस प्रश्न पर शिक्षाविद वर्मा ने कहा कि सफल में जब हुआ जब मेरे स्टूडेंट सफल हुए। आज मेरे द्धारा पढाए गए स्टूडेंट रक्षा,विदेश,इन्कमटैक्स और न्यायालय में विभिन्न पदो पर नौकरी कर रहें है। हमने तो सिर्फ उन्है शिक्षा प्रदान की और उन्होने मेहनत की वे सफल हुए तो आज हम भी सफल हैं।

वर्तमान समय में नौकरी के लिए काम्पिटशन की तैयारी कर रहे स्टूडेंटो का संदेश देते हुए संजय सर ने कहा कि अपने टीचर का मार्गदर्शन उनका एक—एक वाक्य का अनुशरण करना,स्वयं अपना टारगेट लक्ष्य प्राप्ति तक डटे रहने से ही सफलता प्राप्त होती हैं।

सफलता का मूलमंत्र पर कहा कि सकारात्मक सोच और लगातार मेहनत ही सफलता का मूलमंत्र हैं। भाग्य या कर्म पर विश्वास के प्रश्न पर शिक्षाविद संजय वर्मा ने कहा कि कर्म ही महान होता हैं,लेकिन किए गए कर्मो को सकारात्मक सोच से प्रतिदिन रगडना होता है,वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के पूरे 18 अध्याय कर्म पर ही बोले हैं। अपने कर्मो से ही भाग्य का निर्माण होता हैं। मंजिल आपको पाना है तो उसके लिए मेहनत सिर्फ और सिर्फ आपको ही करनी पडेंगी।

अपनी सफलता के श्रेय पर बात करते हुए कहा कि मां-बाप ने ही पढाया लिखाया है। जो कुछ हासिल हुआ है वह उनकी दी गई शिक्षा से हैं। मेहनत का मूलमंत्र का बीज घर से ही पनपा हैं। अपने आईडल के बारे में कहा कि मैं पूर्व से ही बताया कि मेरे महमोहन शर्मा सर ही हैं जिन्है देखकर ही मैं शिक्षा के प्रति उत्सुक हुआ था आज वे आबकारी विभाग में अधिकारी हैं और वर्तमान में इंदौर में पदस्थ हैं।

समाज कैसा होना चाहिए इस पर शिक्षाविद संजय वर्मा ने कहा कि समाज में जात पात का भेदभाव नही होना चाहिए। यह जात—पात मनुष्य की देन हैं ईश्वर की नही। सूर्य सबको एक ही प्रकार का प्रकाश देता,हवा भी घर बदल कर नही चलती और जल भी जाति के हिसाब से अपना स्वरूप बदलता। समाज शिक्षित होना चाहिए अगर सभी शिक्षित होंगें तो समाज का स्वरूप बदल सकता हैं।

शिक्षाविद संजय वर्मा से कहा गया कि आप किताबी ज्ञान को स्टूडेटो को देते हों,लेकिन इस किताबी शिक्षा और नैतिक शिक्षा में क्या अतंर है,इस पर संजय सर ने कहा कि शिक्षा मनुष्य विभिन्न स्त्रोतो से ग्रहण करता हैं किसी भी शिक्षा की तुलना एक दूसरे से नही कर सकते,लेकिन आपने जो भी शिक्षा ग्रहण की है वह जीवन में चरित्रार्थ कर ली,अपने व्यवहार में उसको ले आए तो वह नैतिक शिक्षा कहलाती है। और हमारी शिक्षा और हमारा धर्म दूसरो के प्रति जीना सीखाता हैं।
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