यह है राजानल की पूर्व जन्म की कहानी: भील थे राजा नल भगवान शिव के आर्शीवाद से बने राजा | Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। शिवपुरी जिले का एक छोटा सा कस्बा नरवर,नरवर कभी जिला हुआ करता था और शिवपुरी उसकी तहसील,समय बदला ओर शिवपुरी जिला हो गया। नरवर का किला जो अपने आप में एक रहस्य ओर रोंमाच से भरा हैं,उतनी रहस्य और रोमांच से भरी हुई है ,नरवर के राजा नल की कहानी। हमारे नरवर के पत्रकार देवेन्द्र शर्मा ने अपनी शोध में प्रकाशन के लिए शिवपुरी समाचार डॉट कॉम को भेजी हैंं।

श्री शिव महापुराण के अनुसार अर्बुदोचल पर्वत के समीप भील वंश में आहुक नामक एक भील निवास करता था उसकी पत्नी का नाम आहुका था। वह बड़ी ही पतिव्रता औरत थी। दोनों पति-पत्नी शिव उपासक थे। एक समय उनकी कुटिया पर भगवान शंकर यदि के रूप में पधारे। भील ने यतीश का विधिपूर्वक पूजन किया।

   

संध्याकाल के समय यदिनाथ ने आहुक से कहा कि मुझे रात्रि विश्राम के लिए थोड़ा स्थान दो।  मैं प्रातः काल यहां से चला जाऊंगा। भील ने कहा कि मेरे पास थोड़ा सा स्थान है इसमें आप कैसे रहोगे यह सुनकर यतिनाथ जाने लगे। इस पर भीलनी ने कहा कि यह हमारे अतिथि है इनको नाराज ना करें। आप सन्यासी सहित घर में रहिए तथा मैं घर के बाहर रह जाऊंगी।

भील ने कहा तुम नहीं। मैं घर के बाहर रहूंगा तुम अतिथि  सहित घर के अंदर रहना। निदान वह भील अपने अस्त्रों सहित घर के बाहर रुका तथा अतिथि और उसकी पत्नी घर के भीतर रहे। किंतु इधर अर्धरात्रि में हिंसक एवं क्रूर पशुओं ने भील की हत्या कर दी। प्रातः काल सन्यासी ने घर के बाहर अगर देखा कि भील को सिंह आदि जंगली जानवर भक्षण कर गए हैं इससे उन्हें बहुत दुख हुआ।

भीलनी ने दुखद रहते यदि नाथ को समझाया कि आप निराश ना होइए अतिथि सेवा में अगर प्राण भी त्यागना पड़े तो यह धर्म है। मेरा क्या है मैं तो इनके साथ सती हो जाऊंगी। यह सब कथन सुनकर शिव जी अपने असली स्वरूप में प्रकट हो गए और भीलनी को धन्य धन्य कहा। और आशीर्वाद दिया कि अगले जन्म में तुम विदर्भ देश की राजकुमारी दमयंती बनोगी तथा भील निषद देश के राजा नल के रूप में जाने जाएंगे और मैं स्वयं हंस के रूप में आकर तुम्हारा मिलन कराऊंगा। यह कथन कहकर शिव जी उसी स्थान नंदीश्वर लिंग के रूप में प्रकट हुए। जिन्हें हम 'अचलेश्वर महादेव' (ग्वालियर) के नाम से जानते हैं। यह उस समय निषद क्षेत्र था।

राजा नल का जन्म
निषद देश (नरवर) के राजा वीरसेन का विवाह मंझा नामक राजकुमारी से हुआ। कई वर्ष बीत जाने के पश्चात भी इन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। राजा ने सुनैना नाम की राजकुमारी से उनके सुंदरता के मोह जाल में फसकर दूसरा विवाह किया।

( सुनैना रानी के लिए राजा वीरसेन ने सुनहरी महल बनवाया जो स्वर्ण बेल बूटाओ से अलंकृत था यह महल आज भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है) इसके पश्चात शिवजी के वरदान के फल स्वरुप मंझा देवी गर्भवती हो गई। जिससे राजा की आशक्ति प्रथम रानी की ओर बढ़ने लगी यह सब सुनैना से ना देखा गया। और उसने राजा को अपनी बातों में फंसाकर मंझा देवी को देश निकाला दिलवा दिया तथा अपने सेनापति को मंझा देवी की हत्या करने का आदेश दे दिया।

सेनापति रानी मंझा को  जंगल में ऋषि मुनियों के आश्रम में जाकर उनके सानिध्य में छोड़ा।( वर्तमान में रानी घाटी) सेनापति ने मंझा देवी से कहा की मां मैं आपका सेवक हूं मैंने आपका नमक खाया है और आपने मुझे अपने पुत्र के समान माना है। मैं आप की हत्या के बारे मे सोच भी नहीं कर सकता आप मुझे सिर्फ अपने वस्त्र  दे दीजिए।

मैं हिरणी की आंखें ले जाकर आपके वस्त्रों सहित उन्हें दिखा दूंगा जिससे उन्हें विश्वास हो जाएगा कि मैंने आप की हत्या कर दी। (क्योंकि मंझा देवी की आंख हिरणी जैसी थी) रानी ने सेनापति को अपने वस्त्र दे दिए। सेनापति ने हिरणी की आंख और रानी मंझा के वस्त्र ले जाकर सुनैना को दिखा दिये। जिससे उन्हें विश्वास हो गया कि पहली रानी की हत्या हो गई है। इधर कुछ माह पश्चात राजा नल का जन्म हुआ।

राजा नल का बाल्यकाल
ऐसी किंवदंती चली आ रही है की जब राजा नल की मां जंगल में लकड़ियां बटोरने के लिए जाती है तब राजा नल जंगल में शेर के शावकों के साथ खेलते थे तथा शेरनी का दूध पीते थे। जिस कारण से उन्हें सिंह तुल्य पराक्रम वाला बोला जाने लगा। जब राजा नल कुछ बरस के होने लगे जो ऋषि-मुनियों ने उनकी शिक्षा-दीक्षा आरंभ की।

राजा नल पर ऐसी दैवीय कृपा थी कि जब उनके गुरु उन्हें कुछ विद्या सिखाने के पश्चात जब वापस उनसे पूछते तो वह सिखाई हुई विद्या को कई गुना बढ़ा कर बता देते थे। देखते ही देखते राजा नल शस्त्र विद्या में भी निपुण हो गए। इतनी तीव्र गति से राजा नल को शस्त्र विद्या में निपुण होता देख ऋषि-मुनियों ने उनकी माता से कहा कि यह किशोरावस्था में निषध देश का राजा बनेगा। जिसकी यस गाथा युगों-युगों तक गाई जाएगी।

राजा नल की नरवर विजय:-
एक दिन राजा नल ने अपनी मां से अपने परिवार एवं पिता के बारे में जानने की इच्छा जाहिर की। ऋषि-मुनियों ने मंझा देवी से कहा कि अब वह समय आ गया है कि अब नल नरवर के राजा बने। माता ने उन्हें पूरी कथा सुनाई। जिससे नल बहुत दुखी हुये।

अपने गुरुओं की आज्ञा पाकर अपनी मां को साथ लेकर राजा नल नरवर आ गए तथा उन्होंने अकेले ही युद्ध का ऐलान कर दिया,और एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें राजा नल ने अकेले ही नरवर की पूरी सेना को परास्त कर दिया। इस प्रकार राजा नल की विजय हुई। वीरसेन में अपनी गलती की मंझा देवी से क्षमा मांगी तथा सुनैना व उनके पुत्र पुष्कर सहित वन में तपस्या के लिए चले गए।

इसके पश्चात राजा नल अपने राज्य का संचालन करने लगे तथा रानी घाटी में एक मंदिर  का निर्माण कराया तथा एक किले नुमा गढ़ी भी बनवाई एवं कई स्थानों पर शिव मंदिर बनवाए। राजा नल ओर उनकी रानी के विवाह का प्रकाशन अगले अंक में किया जाऐगा।
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