पोहरी। पोहरी सब रेंज के इंदुरखी क्षेत्र के जंगलों में सागौन की अवैध कटाई का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। सैकड़ों सागौन के हरे-भरे वृक्ष अब तनों के रूप में ज़मीन पर बिखरे पड़े हैं, परंतु वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी अब तक मूकदर्शक बने हुए हैं।
रात के अंधेरे में सक्रिय माफिया
ग्रामीणों ने बताया कि राजस्थान के सीमा क्षेत्रों से आने वाले माफिया रात के अंधेरे का फायदा उठाकर जंगलों में घुसते हैं। ये हथियारबंद गिरोह बड़ी संख्या में आते हैं और मोटी-मोटी सागौन की लकड़ी को जड़ों समेत काटकर ट्रैक्टर व अन्य वाहनों में भरकर राजस्थान बॉर्डर पार कर जाते हैं। वहाँ यह कीमती लकड़ी ऊँचे दामों में बेची जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि अब तक सैकड़ों सागौन के पेड़ उजाड़े जा चुके हैं, जिससे जंगल का स्वरूप ही बदल गया है।
ग्रामीणों में डर, विभाग की उदासीनता से बढ़े माफियाओं के हौसले
ग्रामीणों ने कई बार इन माफियाओं को पेड़ काटते देखा, लेकिन उनकी संख्या और हथियार देखकर सामने आने से डर गए। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग केवल कागज़ी कार्रवाई और फोटो खिंचवाने तक सीमित है। कभी-कभार औपचारिक जब्ती दिखाई जाती है, लेकिन बड़े नेटवर्क को तोड़ने की न तो इच्छाशक्ति है और न ही कार्रवाई की गंभीरता।
इसी का नतीजा है कि माफियाओं के हौसले अब इतने बढ़ गए हैं कि वे खुलेआम जंगलों को नष्ट कर रहे हैं। बावड़ी और आसपास के इलाकों में आज भी कई ताजे कटे पेड़ जमीन पर पड़े हैं, जो विभाग की लापरवाही और तस्करो से मिली भगत को दर्शाते है।
रेंजर का दावा, कार्रवाई जारी - ग्रामीणों को भरोसा नहीं
डिप्टी रेंजर नबल सिंह ने बताया कि कुछ दिन पहले अज्ञात माफियाओं ने लगभग एक दर्जन सागौन के पेड़ काटे थे। सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम मौके पर पहुँची और कटे हुए पेड़ों को जब्त कर लिया गया। इस संबंध में रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेज दी गई है। उनका कहना है कि दोषियों की पहचान के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
वहीं, डीएफओ सुधांशु यादव ने बताया कि शिकायतें गंभीर हैं। उन्होंने कहा कि विशेष जांच टीम गठित कर मौके पर भेजी जाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे आश्वासन पहले भी कई बार दिए गए, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं बदला। उनका विश्वास अब विभागीय कार्यप्रणाली पर से उठ चुका है।
कटाई नहीं, भविष्य पर हमला
ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल पेड़ कटने की बात नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य पर सीधा हमला है। सागौन जैसी कीमती और दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों का यूँ उजड़ना पर्यावरण, जलवायु संतुलन और स्थानीय जीव-जंतुओं के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है। अगर यह अवैध कटाई नहीं रुकी तो आने वाले समय में यह पूरा इलाका सागौन विहीन हो जाएगा और वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी संकट मंडराएगा।
ग्रामीणों ने प्रशासन और वन विभाग से कई मांगें रखीं हैं
1. सीमावर्ती इलाकों में 24 घंटे की गश्त और निगरानी बढ़ाई जाए।
2. अवैध कटाई पर तुरंत दबिश डालने के लिए संयुक्त वन-पुलिस टास्क फोर्स बनाई जाए।
3. जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय कर निलंबन या दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
4. ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि वे माफियाओं की सूचना निडर होकर दे सकें।
5. कटे पेड़ों की वापसी रोपण योजना बनाई जाए और उजड़े क्षेत्र को पुनः हरा भरा किया जाए।
रक्षक बन गए भक्षक
जंगलों की यह दुर्दशा इस सवाल को जन्म देती है कि जिनके कंधों पर संरक्षण की जिम्मेदारी है, वे ही लापरवाही या मिलीभगत से जंगल के भक्षक क्यों बन गए हैं? जब वन विभाग ही निष्क्रिय रहेगा, तो माफियाओं के हौसले कैसे नहीं बढ़ेंगे? यह केवल जंगल की नहीं, बल्कि कानून और शासन की साख का भी सवाल है।
रात के अंधेरे में सक्रिय माफिया
ग्रामीणों ने बताया कि राजस्थान के सीमा क्षेत्रों से आने वाले माफिया रात के अंधेरे का फायदा उठाकर जंगलों में घुसते हैं। ये हथियारबंद गिरोह बड़ी संख्या में आते हैं और मोटी-मोटी सागौन की लकड़ी को जड़ों समेत काटकर ट्रैक्टर व अन्य वाहनों में भरकर राजस्थान बॉर्डर पार कर जाते हैं। वहाँ यह कीमती लकड़ी ऊँचे दामों में बेची जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि अब तक सैकड़ों सागौन के पेड़ उजाड़े जा चुके हैं, जिससे जंगल का स्वरूप ही बदल गया है।
ग्रामीणों में डर, विभाग की उदासीनता से बढ़े माफियाओं के हौसले
ग्रामीणों ने कई बार इन माफियाओं को पेड़ काटते देखा, लेकिन उनकी संख्या और हथियार देखकर सामने आने से डर गए। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग केवल कागज़ी कार्रवाई और फोटो खिंचवाने तक सीमित है। कभी-कभार औपचारिक जब्ती दिखाई जाती है, लेकिन बड़े नेटवर्क को तोड़ने की न तो इच्छाशक्ति है और न ही कार्रवाई की गंभीरता।
इसी का नतीजा है कि माफियाओं के हौसले अब इतने बढ़ गए हैं कि वे खुलेआम जंगलों को नष्ट कर रहे हैं। बावड़ी और आसपास के इलाकों में आज भी कई ताजे कटे पेड़ जमीन पर पड़े हैं, जो विभाग की लापरवाही और तस्करो से मिली भगत को दर्शाते है।
रेंजर का दावा, कार्रवाई जारी - ग्रामीणों को भरोसा नहीं
डिप्टी रेंजर नबल सिंह ने बताया कि कुछ दिन पहले अज्ञात माफियाओं ने लगभग एक दर्जन सागौन के पेड़ काटे थे। सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम मौके पर पहुँची और कटे हुए पेड़ों को जब्त कर लिया गया। इस संबंध में रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेज दी गई है। उनका कहना है कि दोषियों की पहचान के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
वहीं, डीएफओ सुधांशु यादव ने बताया कि शिकायतें गंभीर हैं। उन्होंने कहा कि विशेष जांच टीम गठित कर मौके पर भेजी जाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे आश्वासन पहले भी कई बार दिए गए, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं बदला। उनका विश्वास अब विभागीय कार्यप्रणाली पर से उठ चुका है।
कटाई नहीं, भविष्य पर हमला
ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल पेड़ कटने की बात नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य पर सीधा हमला है। सागौन जैसी कीमती और दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों का यूँ उजड़ना पर्यावरण, जलवायु संतुलन और स्थानीय जीव-जंतुओं के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है। अगर यह अवैध कटाई नहीं रुकी तो आने वाले समय में यह पूरा इलाका सागौन विहीन हो जाएगा और वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी संकट मंडराएगा।
ग्रामीणों ने प्रशासन और वन विभाग से कई मांगें रखीं हैं
1. सीमावर्ती इलाकों में 24 घंटे की गश्त और निगरानी बढ़ाई जाए।
2. अवैध कटाई पर तुरंत दबिश डालने के लिए संयुक्त वन-पुलिस टास्क फोर्स बनाई जाए।
3. जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय कर निलंबन या दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
4. ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि वे माफियाओं की सूचना निडर होकर दे सकें।
5. कटे पेड़ों की वापसी रोपण योजना बनाई जाए और उजड़े क्षेत्र को पुनः हरा भरा किया जाए।
रक्षक बन गए भक्षक
जंगलों की यह दुर्दशा इस सवाल को जन्म देती है कि जिनके कंधों पर संरक्षण की जिम्मेदारी है, वे ही लापरवाही या मिलीभगत से जंगल के भक्षक क्यों बन गए हैं? जब वन विभाग ही निष्क्रिय रहेगा, तो माफियाओं के हौसले कैसे नहीं बढ़ेंगे? यह केवल जंगल की नहीं, बल्कि कानून और शासन की साख का भी सवाल है।