शिवपुरी। शिवपुरी जिले के पोहरी मे पितृपक्ष के पावन अवसर पर पोहरी स्थित प्राचीन केदारेश्वर मंदिर के समीप बहने वाली नदी के तट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। हर रोज़ सुबह 6 बजे से ही लोग यहां पहुंचकर अपने पितरों को जल अर्पित कर रहे हैं। श्रद्धालु विधिविधान से तर्पण और श्राद्ध कर पितरों की आत्मा की शांति एवं अपने घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं।
आचार्य पंडित रामनिवास भार्गव के सानिध्य में यह तर्पण संस्कार संपन्न हो रहा है। वे प्रतिदिन श्रद्धालुओं को विधिपूर्वक तर्पण की प्रक्रिया करवा रहे हैं। श्रद्धालु पारंपरिक रीति से दोनों हाथों में पवित्री (पवित्र धागा) धारण कर, 16 डाव (कुशा) का उपयोग करते हुए तर्पण कर रहे हैं।
पितृपक्ष का महत्व
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है। यह 16 दिवसीय अवधि उन दिवंगत पितरों को समर्पित होती है, जिनकी स्मृति में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं। इस कालखंड में व्यक्ति अपने पूर्वजों को जल अर्पित करता है और ब्राह्मण भोजन, दान-पुण्य के माध्यम से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।
इस संबंध में आचार्य पंडित रामनिवास भार्गव ने बताया:
"धर्मशास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि पितृपक्ष में पितरों को जल एवं श्राद्ध अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं। जिन घरों में पितृ शांत होते हैं, वहां सदा सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। तर्पण केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह आत्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, जो हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को दर्शाता है।"
उन्होंने आगे बताया कि पितृपक्ष की शुरुआत पूर्णिमा के अगले दिन से होती है और यह अमावस्या तक चलता है। इस दौरान कुशा से जल अर्पण, ब्राह्मणों को भोजन, दान-दक्षिणा जैसे कार्य अत्यंत पुण्यदायक माने गए हैं। अमावस्या के दिन कुशा विसर्जन के साथ पितृपक्ष का समापन होता है।
श्रद्धालुओं में उत्साह
तर्पण करने आए श्रद्धालुओं ने बताया कि वे हर वर्ष पितृपक्ष में इस पवित्र नदी के तट पर तर्पण करने आते हैं। उनका विश्वास है कि पितरों का आशीर्वाद उनके परिवार को विपत्तियों से बचाता है और सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
आचार्य पंडित रामनिवास भार्गव ने श्रद्धालुओं को दिए सुझाव
श्राद्ध पक्ष में हर रोज शिवलिंग पर, काला तिल, काली उरद और सरसों का तेल चढ़ाए, पितृ शांति हेतु प्रार्थना करे, ऐसा करने से पितृ दोष से राहत मिलेगी-और शनि, राहु और केतु के दुष्प्रभाव भी खत्म होगा और भाग्य मजबूत होगा
हर रोज सूर्य देव को एक लोटा जल में गुड+ काले तिल डालकर चढ़ाए और ॐ घृणि सूर्याय नमः का जाप करें ऐसा करने से पितृदोष कम होगा, पितृ देव की. कृपा प्राप्त होगी और सौभाग्य और सुख में बढ़ोतरी होगी।
पितरो की करे नियमानुसार बिदाई
पितरों को दें विदाई
पितृपक्ष में हमारे पितर पृथ्वीलोक पर आते हैं और हमसे सेवा लेते हैं। 15 दिनों तक चलने वाला यह पितृपक्ष 16वें दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या पर समाप्त हो जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या की शाम को तिल या घी का दीपक काले तिल और बताशे डालकर पितरों का ध्यान करके जलाने से पितरों को मार्ग में प्रकाश होता है । इससे पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। विध्न-बाधा दूर होते हैं।
उस समय यह मंत्र बोलें या ध्यान करें
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ।।
आचार्य पंडित रामनिवास भार्गव के सानिध्य में यह तर्पण संस्कार संपन्न हो रहा है। वे प्रतिदिन श्रद्धालुओं को विधिपूर्वक तर्पण की प्रक्रिया करवा रहे हैं। श्रद्धालु पारंपरिक रीति से दोनों हाथों में पवित्री (पवित्र धागा) धारण कर, 16 डाव (कुशा) का उपयोग करते हुए तर्पण कर रहे हैं।
पितृपक्ष का महत्व
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है। यह 16 दिवसीय अवधि उन दिवंगत पितरों को समर्पित होती है, जिनकी स्मृति में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं। इस कालखंड में व्यक्ति अपने पूर्वजों को जल अर्पित करता है और ब्राह्मण भोजन, दान-पुण्य के माध्यम से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।
इस संबंध में आचार्य पंडित रामनिवास भार्गव ने बताया:
"धर्मशास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि पितृपक्ष में पितरों को जल एवं श्राद्ध अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं। जिन घरों में पितृ शांत होते हैं, वहां सदा सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। तर्पण केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह आत्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, जो हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को दर्शाता है।"
उन्होंने आगे बताया कि पितृपक्ष की शुरुआत पूर्णिमा के अगले दिन से होती है और यह अमावस्या तक चलता है। इस दौरान कुशा से जल अर्पण, ब्राह्मणों को भोजन, दान-दक्षिणा जैसे कार्य अत्यंत पुण्यदायक माने गए हैं। अमावस्या के दिन कुशा विसर्जन के साथ पितृपक्ष का समापन होता है।
श्रद्धालुओं में उत्साह
तर्पण करने आए श्रद्धालुओं ने बताया कि वे हर वर्ष पितृपक्ष में इस पवित्र नदी के तट पर तर्पण करने आते हैं। उनका विश्वास है कि पितरों का आशीर्वाद उनके परिवार को विपत्तियों से बचाता है और सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
आचार्य पंडित रामनिवास भार्गव ने श्रद्धालुओं को दिए सुझाव
श्राद्ध पक्ष में हर रोज शिवलिंग पर, काला तिल, काली उरद और सरसों का तेल चढ़ाए, पितृ शांति हेतु प्रार्थना करे, ऐसा करने से पितृ दोष से राहत मिलेगी-और शनि, राहु और केतु के दुष्प्रभाव भी खत्म होगा और भाग्य मजबूत होगा
हर रोज सूर्य देव को एक लोटा जल में गुड+ काले तिल डालकर चढ़ाए और ॐ घृणि सूर्याय नमः का जाप करें ऐसा करने से पितृदोष कम होगा, पितृ देव की. कृपा प्राप्त होगी और सौभाग्य और सुख में बढ़ोतरी होगी।
पितरो की करे नियमानुसार बिदाई
पितरों को दें विदाई
पितृपक्ष में हमारे पितर पृथ्वीलोक पर आते हैं और हमसे सेवा लेते हैं। 15 दिनों तक चलने वाला यह पितृपक्ष 16वें दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या पर समाप्त हो जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या की शाम को तिल या घी का दीपक काले तिल और बताशे डालकर पितरों का ध्यान करके जलाने से पितरों को मार्ग में प्रकाश होता है । इससे पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। विध्न-बाधा दूर होते हैं।
उस समय यह मंत्र बोलें या ध्यान करें
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ।।