पोहरी में 7 दिन तक झाड़फूंक, अंधविश्वास में बिगड़ी युवती हालत-आक्सीजन सपोर्ट पर रखा

Bhopal Samachar

पोहरी। शिवपुरी जिले के पोहरी थाना क्षेत्र अन्तर्गत आने वाले ग्राम उमरई में एक 18 वर्षीय युवती की तबियत बिगड़ने के कारण, परिजनों ने उसको इलाज की जगह झाड़फूंक कराने में सात दिन निकाल दिये। जिसके कारण युवती की हालत और भी बिगड़ती गई,हालत बिगड़ने पर परिजन उसे जिला अस्पताल लेकर पहुंचे,जहां डॉक्टरों ने उसकी नाजुक स्थिति को देखते हुए उसे तुरंत आक्सीजन सपोर्ट पर रखा।

जानकारी के अनुसार ग्राम उरमई थाना पोहरी की रहने वाले मनीषा आदिवासी पुत्री मंशी आदिवासी उम्र 18 वर्षीय मनीषा सात दिन पहले मजदूरी करने खेत पर गई थी। वहीं से लौटने के बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। पहले तो उसे हल्का बुखार और कमजोरी हुई, लेकिन धीरे-धीरे उसका व्यवहार अजीब होने लगा। वह अचानक चिल्लाने लगती, इधर-उधर भागने लगती और परिजनों से अनजान बातें कहती। यह देखकर परिजनों को लगा कि उस पर किसी "भूत-प्रेत" का साया है।

परिजन मनीषा को डॉक्टर की जगह झाड़फूंक करने वाले के पास ले पहुंचे

वहीं बता दें कि मनीषा के परिजन उसे गांव और आसपास के कई "झाड़फूंक करने वालों" के पास ले गये। लगातार सात दिन तक झाड़फूंक होती रही, लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। उल्टा उसकी तबीयत और बिगड़ती चली गई। गांव वालों की समझाइश पर रविवार को परिजन उसे जिला अस्पताल शिवपुरी लेकर पहुंचे।

7 दिन में गंभीर स्थिति

अस्पताल में जांच करने पर डॉक्टरों ने बताया कि युवती को समय पर सही इलाज न मिलने से उसकी हालत बिगड़ी है। वर्तमान में उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है और हालत अभी नाजुक बनी हुई है।

पिता का बयान

मनीषा के पिता मुंशी आदिवासी ने बताया – "बेटी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी। हमको लगा कि इस पर किसी बुरी आत्मा का साया है। इसलिए गांव के झाड़फूंक करने वालों के पास ले जाते रहे। लेकिन अब समझ आया कि बीमारी की वजह से हालत गंभीर हो गई।"

यह बोली मनीषा की मां
मां कमला आदिवासी ने रोते हुए कहा – हमने सोचा था कि झाड़फूंक से बेटी ठीक हो जाएगी, लेकिन हालत और बिगड़ गई। अब भगवान करे कि अस्पताल में ठीक हो जाए।

ग्रामीणों का कहना
गांव के ही बुजुर्ग रामलाल आदिवासी ने कहा – "यह सब अंधविश्वास के कारण हुआ है। समय रहते अस्पताल ले जाते तो लड़की की जान खतरे में नहीं पड़ती। अब हमें समझना होगा कि बीमारी का इलाज अस्पताल में ही होता है, झाड़फूंक से नहीं।
इसी तरह महिला ग्रामीण सुमन बाई ने भी कहा – "गांव में आज भी लोग झाड़फूंक पर ज्यादा भरोसा करते हैं। जब तक शिक्षा और जागरूकता नहीं होगी तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे।"

इस घटना ने एक बार फिर ग्रामीण अंचल में फैले अंधविश्वास की भयावह तस्वीर सामने रख दी है। अब देखना होगा कि क्या इस दर्दनाक अनुभव के बाद लोग अंधविश्वास छोड़कर वैज्ञानिक सोच की ओर कदम बढ़ाते हैं।