पप्पू सिठेले @ पोहरी। मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले की पोहरी में भगवान राधा कृष्ण (जल मंदिर) का निर्माण श्रीमंत बाला बाई शीतोले साहब की जागीर के समय विक्रम संबंध सन् 1811 में राधा कृष्ण बंसल (खजानची ) ने कराया था। यह मंदिर 4 बीघा जमीन पर बना हुआ है। साल भर इस मंदिर के कुंड मे पानी भरा रहता है। इस मंदिर का निर्माण देश के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर करवाया गया था।
मंदिर के मुख्य द्वार के अंदर प्रवेश करते ही वहां के अद्भुत कलात्मक स्वरूप को देखते ही लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। मंदिर के चारों ओर बने दो मंजिले आकर्षक दालानों के बीच पानी का एक कुंड भी है। यह पोहरी कस्बे के अंदर है। यह मंदिर घनी बस्ती से घिरा है। मंदिर के परकोटे में फिल्म डाकू हसीना के कई दृश्य भी फिल्माए गए। बरसात में नीचे की दोनों मंजिल जलमग्न रहती हैं।
मंदिर की सबसे खास बात यह है कि कुंड के ऊपर दिखती मंदिर की तीन मंजिलों के नीचे भी एक मंदिर है, जो सदैव पानी में डूबा रहता है। कोई भी मौसम हो इस मंजिल का पानी कभी भी कम नहीं होता है। मंदिर में भगवान शंकर और गणेश की प्रतिमा स्थापित हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान राधा-कृष्ण भी विराजमान हैं। मंदिर राजपूत और मुगल निर्माण शैली पर आधारित है। यह मंदिर 1811 में बनवाया गया था।
राजपूत व मुगल भवन निर्माण शैली में करीबन चार सौ वर्ष पूर्व निर्मित राधा-कृष्ण के इस जल मंदिर के निर्माण की कथा भी कम रोचक नहीं है। श्रीमंत महादजी सिंधिया द्वारा अपनी बेटी बालाबाई शितोले को दी गई जागीर में पोहरी जागीर के मंत्री राधाकृष्ण बंसल हुआ करते थे। राधा कृष्ण जी जागीर की देखरेख लगान वसूली तथा अन्य कार्य बड़ी ईमानदारी से करते थे, जिसकी वजह से बालाबाई या परिवार का पोहरी आगमन वर्ष में एक-आध बार हुआ करता था।
राधा कृष्ण बसंल एक बार देश के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर गए तो वह स्वर्ण मंदिर की भव्यता और संरचना से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने पोहरी लौटकर स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर पोहरी में मंदिर के निर्माण का मन ही मन निश्चय कर लिया। पोहरी लौटते ही उन्होंने पोहरी जागीर की तत्कालीन आय से इस मंदिर का निर्माण एक वर्ष मे ही करा दिया।
बताया जाता है कि मंदिर निर्माण का जुनून राधाकृष्ण जी पर कुछ इस कदर हावी था कि उन्होंने वाली बाई शितोले से इस निर्माण की न तो स्वीकृति ली और न ही उन्हें सूचित किया। परिणामस्वरूप जब वे शितोले परिवार को जागीर की वार्षिक आय जमा नहीं करा पाए तो बालाबाई शितोले ने अपनी पौहरी यात्रा में उन्हें महल में तलब किया। बाई साहब द्वारा वार्षिक आय अदायगी नहीं किए जाने के बारे में जब पूछताछ हुई तो बाई साहब को वे नवनिर्मित जल मंदिर के दर्शन को ले गए निवेदन किया कि वार्षिक आय से उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया, इसलिए आय नहीं भिजवा पाए।
हालांकि स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर बने इस अद्भुत जल मंदिर को देख बालाबाई मन ही मन प्रसन्न हुई, किन्तु बिना स्वीकृति के इस व्यय के जवाब-तलब हेतु उन्होंने शाम को राधा कृष्ण जी को पोहरी महल में मिलने का आदेश दिया। राधा कृष्ण बंसल अपने मंत्रित्व कार्यकाल में अपनी कर्मठता, निष्ठा व धार्मिक वृत्ति के लिए रियासत में सभी के आदरणीय थे। इस भव्य मंदिर को देखकर उनकी बहुत तारीफ की।
मंदिर के मुख्य द्वार के अंदर प्रवेश करते ही वहां के अद्भुत कलात्मक स्वरूप को देखते ही लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। मंदिर के चारों ओर बने दो मंजिले आकर्षक दालानों के बीच पानी का एक कुंड भी है। यह पोहरी कस्बे के अंदर है। यह मंदिर घनी बस्ती से घिरा है। मंदिर के परकोटे में फिल्म डाकू हसीना के कई दृश्य भी फिल्माए गए। बरसात में नीचे की दोनों मंजिल जलमग्न रहती हैं।
मंदिर की सबसे खास बात यह है कि कुंड के ऊपर दिखती मंदिर की तीन मंजिलों के नीचे भी एक मंदिर है, जो सदैव पानी में डूबा रहता है। कोई भी मौसम हो इस मंजिल का पानी कभी भी कम नहीं होता है। मंदिर में भगवान शंकर और गणेश की प्रतिमा स्थापित हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान राधा-कृष्ण भी विराजमान हैं। मंदिर राजपूत और मुगल निर्माण शैली पर आधारित है। यह मंदिर 1811 में बनवाया गया था।
राजपूत व मुगल भवन निर्माण शैली में करीबन चार सौ वर्ष पूर्व निर्मित राधा-कृष्ण के इस जल मंदिर के निर्माण की कथा भी कम रोचक नहीं है। श्रीमंत महादजी सिंधिया द्वारा अपनी बेटी बालाबाई शितोले को दी गई जागीर में पोहरी जागीर के मंत्री राधाकृष्ण बंसल हुआ करते थे। राधा कृष्ण जी जागीर की देखरेख लगान वसूली तथा अन्य कार्य बड़ी ईमानदारी से करते थे, जिसकी वजह से बालाबाई या परिवार का पोहरी आगमन वर्ष में एक-आध बार हुआ करता था।
राधा कृष्ण बसंल एक बार देश के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर गए तो वह स्वर्ण मंदिर की भव्यता और संरचना से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने पोहरी लौटकर स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर पोहरी में मंदिर के निर्माण का मन ही मन निश्चय कर लिया। पोहरी लौटते ही उन्होंने पोहरी जागीर की तत्कालीन आय से इस मंदिर का निर्माण एक वर्ष मे ही करा दिया।
बताया जाता है कि मंदिर निर्माण का जुनून राधाकृष्ण जी पर कुछ इस कदर हावी था कि उन्होंने वाली बाई शितोले से इस निर्माण की न तो स्वीकृति ली और न ही उन्हें सूचित किया। परिणामस्वरूप जब वे शितोले परिवार को जागीर की वार्षिक आय जमा नहीं करा पाए तो बालाबाई शितोले ने अपनी पौहरी यात्रा में उन्हें महल में तलब किया। बाई साहब द्वारा वार्षिक आय अदायगी नहीं किए जाने के बारे में जब पूछताछ हुई तो बाई साहब को वे नवनिर्मित जल मंदिर के दर्शन को ले गए निवेदन किया कि वार्षिक आय से उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया, इसलिए आय नहीं भिजवा पाए।
हालांकि स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर बने इस अद्भुत जल मंदिर को देख बालाबाई मन ही मन प्रसन्न हुई, किन्तु बिना स्वीकृति के इस व्यय के जवाब-तलब हेतु उन्होंने शाम को राधा कृष्ण जी को पोहरी महल में मिलने का आदेश दिया। राधा कृष्ण बंसल अपने मंत्रित्व कार्यकाल में अपनी कर्मठता, निष्ठा व धार्मिक वृत्ति के लिए रियासत में सभी के आदरणीय थे। इस भव्य मंदिर को देखकर उनकी बहुत तारीफ की।