शिवपुरी। सेवा सहकारी संस्था धौलागढ़ के सदस्य किसान महावीर प्रसाद उपाध्याय के नाम पर तीस साल पहले संस्था के प्रबंधक अयूब खान ने फर्जी तरीके से खाद ले नया था। उक्त खाद की 3236 रुपये रकम शाखा प्रबंधक द्वारा ऋण खाते जमा नहीं की गई। जब ऋण वसूली लिए कार्रवाई शुरू हुई तो किसान ने तमाम शिकायतें कों और शिकायतों में की जांच में यह साबित हो गया कि किसान महावीर प्रसाद ने कोई खाद समिति से नहीं उठाया उस पर कोई ऋण बकाया नहीं ।
समिति द्वारा उसे नो ड्यूज का प्रमाण पत्र भी दिया गया है। इसके बावजूद बैंक के खातों में किसान तीस पल बाद भी 3236 रुपये का कर्जदार बना हुआ है। किसान खुद के ऊपर लगे डिफाल्टर के दाग को मिटाने के लिए पिछले 30 साल से लड़ाई लड़ रहा है। तत्कालीन बैंक प्रबंधक गवन की स्वीकारोक्ति कर चुके हैं, फिर भी कार्रवाई नहीं
कलेक्टर से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की जनसुनवाई में भी सभी तथ्यों के साथ शिकायत दर्ज करवा चुका है, लेकिन किसान के माथे पर लगा डिफाल्टर का दाग सरकारी सिस्टम की लापरवाही के कारण तीस साल बाद भी साफ नहीं हो पाया है। किसान उक्त दाग को साफ करवाने के लिए सरकारी कार्यालयों की चौखटों के चक्कर लगाते लगाते जवान से बुजुर्ग हो गया है।
ये है पूरा मामला
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक शिवपुरी में पदस्थ समिति प्रबंधक अयूब खां द्वारा सहकारी संस्था धौलागढ़ में प्रार्थी के नाम से 29 जनवरी 1995 को 3236 रुपये का फर्जी ऋण नामे किया गया है। जिसकी शिकायत प्रार्थी द्वारा सक्षम अधिकारियों के समक्ष की गयी परिणाम स्वरूप जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पत्र क्रमांक जांच 2001/1207 दिनांक 4 जून 2003 को पत्र जारी कर महावीर प्रसाद उपाध्याय से वसूली नहीं जाने के निर्देश दिए गए। 10 अगस्त 2010 को संस्था पर पदस्थ समिति प्रबंधक अजीत सिंह तोमर द्वारा बैंक के पत्र के तारतम्य में नो डयूज प्रदान किया गया है।
इसके बावजूद बैंक के खातों में महावीर प्रसाद आज भी कर्जदार बना हुआ है। किसान को खुद के डिफाल्टर होने का पता उस समय लगा जब उससे कुछ साल पहले शासन को व्याज माफी योजना अंतर्गत संस्था के पदस्थ कर्मचारी द्वारा ब्याज माफी का फार्म भरवाने के लिए संपर्क किया। महावीर के अनुसार कर्ज की राशि बहुत अधिक नहीं है, लेकिन उसके माथे पर लगा डिफाल्टर का दाग तो तभी खुलेगा जब बैंक उसके ऊपर कोई कर्ज न होना स्वीकार करेगा।
सहकारी बैंक का सिस्टम इतना लचर खास बात यह है कि सहकारी बैंक का सिस्टम इतना लचर है कि तत्कालीन समिति प्रबंधक अय्यूब खान लिखित रूप से यह स्वीकार किया है कि महावीर प्रसाद उपाध्याय के ऋण खाते से उसने डीएपी खाद स्वय को आवश्यकता होने के चलते उठाया था। उक्त ऋण की राशि का भुगतान वह खुद करेगा। इसके बावजूद सहकारी बैंक का भुगतान वह खुद करेगा।
इसके बावजूद सहकारी बैंक द्वारा अय्यूब खान पर किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की गई और न ही उससे ऋण की वसूली की गई, जबकि किसान को तीस साल बाद भी दस्तावेजों में कर्जदार बना रखा है। जिले में ऐसा यह एक मात्र प्रकरण नहीं है, ऐसे हजारों किसान हैं। जो फर्जी तरीके से बैंक के कर्जदार बनाए गए है।
मामला आपके द्वारा मेरे संज्ञान में
लाया गया है, किसान ने जनसुनवाई में आवेदन भी दिया है तो, मैं इस मामले को दिखवा लेता हूँ। मामले में उचित वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।
रवीन्द्र कुमार चौधरी, कलेक्टर शिवपुरी।