Shivpuri News- शिवपुरी के राकेश सरैया की वृद्धाश्रम में मौत.यातना,सावधान ओर जैकपॉट 2 करोड फिल्म का किया था निर्माण

Bhopal Samachar
शिवपुरी। यातना, सावधान और जैकपोट 2 करोड़ फिल्म के निर्माता निर्देशक राकेश सरैया ने कल मुफलिसी की हालत में शिवपुरी के वृद्धाश्रम में दम तोड़ दिया। श्री सरैया शिवपुरी के रहने वाले थे और एक जमाना था, जब उनकी प्रतिभा का लोहा सभी मानते थे। बेहद जिंदा दिल इंसान राकेश सरैया के दो विवाह हुए थे। लेकिन तलाक भी जल्द हो गया और वह निपट अकेले रह गए। कुछ साल पहले वह लकवे का शिकार हुए लेकिन उनकी जिंदा दिली में कोई कमी नहीं आई। जीवन के अंतिम वर्षों में वह शिवपुरी आ गए।

उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी। कुछ समय श्रम साधना समाचार पत्र के कार्यालय में उन्होंने बिताया। जहां वह रहते थे। लेकिन खाने-पीने की व्यवस्था इधर-उधर से होती थी। बाद में वह शिवपुरी के वृद्धाश्रम में आ गए। लगभग एक साल से वह यहां अपनी जिंदगी के दिन जैसे तैसे काट रहे थे। शिवपुरी में उनके मिलने वालों की संख्या भी कम नहीं थी। वह भी कभी-कभार उनसे मिलने आ जाते थे। दो तीन माह पहले उनके गले में कैंसर हुआ। मेडिकल कॉलेज में दो बार कीमोथेरेपी हुई। सिकाई के लिए ग्वालियर ले जाना था लेकिन इसी बीच उनकी सांसे जवाब दे गई।

1971 के आसपास जिन लोगों ने शिवपुरी महाविद्यालय में अध्ययन किया है। वह सभी राकेश से बखूबी परिचित थे। परिचित भी क्यों न हो। वह कॉलेज के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों में शुमार थे। डिबेट में अब्ब्ल, एक्टिंग में उनका कोई सानी नहीं, सांस्कृतिक गतिविधियों में वह हमेशा आगे रहते थे। उपेक्षा और आलोचनाओं से वह विचलित नहीं होते थे। स्वभाव बिल्कुल अलमस्त था। किसी की भी ङ्क्षहदी करने में वह लिहाज नहीं करते थे।

आत्मविश्वास प्रबल होने के कारण वह अपने आप को सबसे अलग और विशिष्ट समझते थे। दोस्त जहां जल्दी बना लेते थे। वहीं दुश्मन बनाने में उन्हें महारत हांसिल थी। उस जमाने में शिवपुरी महाविद्यालय मेें स्व. राजेंद्र खैमरिया, स्व.अशोक चौकसे, महेश चौकसे, अरूण उपेक्षित, दिनेश वशिष्ठ, राकेश ठंडन जैसे कलाकार थे। लेकिन श्री सरैया अपने आप को सबसे ऊपर मानते थे। अपने अहंकार के चलते उनके विरोधियों की भी लंबी फौज थी। जब वह भाषण देते तो विरोधी उन्हें हूट करने में कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन श्री सरैया लैशमात्र भी विचलित नहीं होते और हूटिंग की आवाज बढ़ती जाती तथा वह बिना किसी परवाह के भाषण देते रहते थे।

माता-पिता को उन्होंने बड़े-बड़े सपने दिखाए थे और वे अपने पुत्र से मुग्ध भी थे। माता-पिता के गाड़े पसीने की कमाई से उन्होंने अपने भविष्य की नींव रखी। श्री सरैया का लक्ष्य स्पष्ट था। वह फिल्म निर्माता निर्देशक बनना चाहते थे। अपनी प्रतिभा का इतना दंभ था कि किसी की शार्गिदी का ख्याल मन में नहीं आता था। 1985 के आसपास राकेश ने यातना फिल्म का निर्माण किया। जिसमें शेखर सुमन सुप्रिया पाठक और रवि बासवानी जैसे कलाकार थे।

योगेश के गीत और अशोक खन्ना का संगीत था। यह फिल्म अधिक अच्छी तो नहीं लेकिन ठीक ठाक चली। इसके बाद राकेश ने सावधान और जैकपोट 2 करोड़ फिल्म भी बनाई जिसमें पंकज कपूर ने मुख्य भूमिका अदा की। शिवपुरी के प्रतिष्ठित परिवार की डॉक्टर कन्या से उनका प्रेम संबंध हुआ और दोनों ने भागकर शादी कर ली। लेकिन अपने आप को विशिष्ट मानने वाले राकेश की डॉक्टर पत्नी से पटी नहीं और दोनों के बीच तलाक हो गया। इसके बाद राकेश ने एक ओर शादी की लेकिन उससे भी गठजोड़ अधिक समय तक नहीं रहा। फिर बताया जाता है कि राकेश ने कैफे भी खोला। अब राकेश के दुर्दिन शुरू हो गए और ताश के महल की तरह वह जमीन पर गिरते चले गए।
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