चुनावी चर्चा: कांग्रेस प्रत्याशी को अपनी दम पर लडना होगा चुनाव, भारी पडेगा मुन्ना का कार्यकाल - Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। शिवपुरी नगर पालिका अध्यक्ष पद इस बार सामान्य महिला के लिए आरक्षित हुआ है। विगत चुनाव में अध्यक्ष पद अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हुआ था और उस चुनाव में कांग्र्रेस प्रत्याशी मुन्नालाल कुशवाह विजयी हुए थे। मुन्ना कुशवाह सिंधिया समर्थक हैं और राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ वह भाजपा में आ गए हैं।

लेकिन उनके कार्यकाल में नगर पालिका विकास के संदर्भ में बहुत पिछड़ गई और एक भी महत्वपूर्ण योजना पूरी नहीं हुई तथा नगर पालिका प्रशासन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और नपाध्यक्ष मुन्नालाल कुशवाह को जेल की हवा तक खानी पड़ी।

मुन्ना कुशवाह के कार्यकाल का खामियाजा कांग्रेस को आगामी चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। लेकिन कांग्रेस में भी भाजपा की तरह अध्यक्ष पद के अनेक दावेदार हैं और एक प्रमुख कांग्रेस नेता ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आगामी चुनाव में कांग्रेस बहुत सतर्कता से आगे बढेगी और भाजपा प्रत्याशी का चयन होने के बाद अपने प्रत्याशी का चुनाव करेगी। हालांकि कांग्रेस में अध्यक्ष और पार्षद पद के चुनाव हेतु कवायत शुरू हो चुकी है। कल भी पार्टी पर्यवेक्षक जायजा लेने के लिए शिवपुरी आए थे। जहां टिकट के दावेदारोंं ने उनके समक्ष शक्ति प्रदर्शन किया।

नपाध्यक्ष पद हेतु कांग्रेस टिकट के दावेदारों में अधिकतर नेताओं की पत्नी हैं। पार्टी की महिला कार्यकर्ता अध्यक्ष पद की दौड में गिनी चुनी हैं। महिला कांग्रेस अध्यक्ष इंदु जैन अवश्य टिकट की दौड में हैं। लेकिन उनके अलावा अन्य सभी दावेदार नेताओं की पत्नियां हैं।

प्रमुख दावेदारों में अधिकतर वैश्य नेताओं की पत्नियां हैं। नगर पालिका शिवपुरी में वैश्य वोटरों का महत्वपूर्ण प्रभाव है और वैश्य मतदाताओं के बलबूते ही पिछले नगर पालिका चुनाव में मुन्नालाल कुशवाह चुनाव जीतने में सफल रहे थे। उन्हें 1 से लेकर 12 वार्ड में भाजपा प्रत्याशी की तुलना में बहुत अधिक मत मिले थे और इस अंतर को भाजपा प्रत्याशी हरिओम राठौर पाट नहीं पाए और यशोधरा राजे की मेहनत के बावजूद वह पराजित हो गए।

कांग्रेस के वैश्य उम्मीदवारों में इंदू जैन के अलावा ठेकेदार तथा मंगलम के उपाध्यक्ष जिनेश जैन अपनी धर्मपत्नी के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं। श्री जैन खदान मजदूर आंदोलन से जुडे स्व. शीतल प्रकाश जैन के भांजे हैं।

नगर पालिका के पूर्व पार्षद नरेंद्र जैन भोला अपनी पत्नी श्रीमति वीणा जैन के लिए टिकट मांग रहे हैं। शहर कांग्रेस अध्यक्ष मोहित अग्रवाल भी अपनी पत्नी राखी अग्रवाल के लिए टिकट की दौड में हैं। कांगे्रस नेता राजेश बिहारी पाठक अपनी पत्नी श्रीमति शांति पाठक के लिए टिकट की जुगाड में हैं। शांति पाठक पूर्व में नपा की पार्षद रह चुकी हैं।

युवक कांगे्रस के पूर्व अध्यक्ष रहे शिवप्रताप सिंह कुशवाह भी अपनी पत्नी श्रीमति विद्या कुशवाह को टिकट दिलाने के लिए दौड में कूंद चुके हैं। कांग्रेस महिला पिछड़ा वर्ग की जिलाध्यक्ष शिवानी राठौर भी टिकट की कतार में हैं। इनके अलावा कांग्रेस प्रवक्ता विजय चौकसे अपनी धर्मपत्नी के लिए टिकट की जुगाड़ तुगाड में लगे हैं। श्री चौकसे अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं। जबकि उनकी पत्नी शिखा शर्मा ब्राह्मण हैं और इसी कारण वह अपनी पत्नी के लिए टिकट चाह रहे हैं।

अध्यक्ष पद की दौड में नगर पालिका के पूर्व उपाध्यक्ष अरूण प्रताप सिंह चौहान का दावा भी खासा मजबूत है। वह अपनी पत्नी पीताम्बरा सिंह चौहान के टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं। पीताम्बरा सिंह चौहान नगर पालिका की पूर्व पार्षद भी रह चुकी हैं। इन प्रमुख दावेदारों में से ही किसी को टिकट मिलने की संभावना हैं।

कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि यदि भाजपा ने किसी वैश्य उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया तो कांग्रेस वैश्य उम्मीदवार पर दाव लगाएगी। लेकिन भाजपा द्वारा वैश्य को नपाध्यक्ष पद का टिकट देने पर कांग्रेस अन्य जाति के उम्मीदवारों में से किसी को टिकट देगी।

कांग्रेस प्रत्याशी को अपने बलबूते लडऩा पडेगा चुनाव

अभी तक सिंधिया परिवार का एक धु्रव कांग्रेस के साथ तो दूसरा धु्रव भाजपा के साथ रहता था। लेकिन बदलते राजनैतिक घटनाक्रम में सिंधिया परिवार के दोनों धु्रव आज भाजपा मेें हैं। यशोधरा राजे सिंधिया लगभग 30-31 सालों से भाजपा में हैं। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया मार्च 2020 में भाजपा में शामिल हो चुके हैं।

सिंधिया परिवार के दोनों धु्रवों के अलग-अलग राजनैतिक दलों में होने से नगरीय निकाय चुनाव काफी रौचक रहते थे और जनता सिंधिया परिवार के दोनों धु्रवों में से किसी एक धु्रव का चुनाव करती थी। लेकिन अब यशोधरा राजे सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में होने के बाद कांग्रेस में कोई अन्य नेता नहीं है, जो पार्टी उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए। ऐसी स्थिति में कांग्रेस उम्मीदवारों को अपनी लड़ाई स्वयं लडऩी होगी।
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