उपचुनाव:1977 के अब तक धाकड़ और ब्राह्मण उम्मीदवार 5-5 बार रहे विजयी - SHIVPURI NEWS

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शिवपुरी।
शिवपुरी जिले की पोहरी और पिछोर विधानसभा क्षेत्र में जातिगत राजनीति प्रभावी है। पोहरी में धाकड़ मतदाताओं और पिछोर में लोधी मतदाताओं का बाहुल्य है। लेकिन पिछोर के कांग्रेस विधायक केपी सिंह ने लोधी वर्सेस अन्य जातियों के समीकरण से इस जातिगत राजनीति की काट निकालकर 1993 से अब तक पिछोर में 6 बार जीत हांसिल की है।

जिस तरह से पिछोर में लगभग 50 हजार लोधी मतदाता हैं, उसी तरह से पोहरी विधानसभा क्षेत्र में धाकड़ मतदाताओं की संख्या लगभग 40 हजार है। जिनका प्रभाव चुनाव में भी साफ देखने को मिलता है। 1993 और 2018 में तो धाकड़ उम्मीदवार को तब भी विजय मिली थी, जब मुकाबले में कांग्रेस और भाजपा दोनों ने धाकड़ उम्मीदवारों को टिकट दिए थे।

हालांकि इसका एक अपवाद भी है 2003 के विधानसभा चुनाव मेें धाकड़ उम्मीदवार मैदान में एक ही था। लेकिन भाजपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार और समानता दल ने भी ब्राह्मण उम्मीदवार हरिवल्लभ शुक्ला को मैदान में उतारा था और धाकड़ उम्मीदवार को सफलता हांसिल नहीं हुई तथा हरिवल्लभ चुनाव जीतने में सफल रहे।

1977 से अब तक पोहरी में हुए 10 विधानसभा चुनाव में पांच बार ब्राह्मण और पांच बार धाकड़ उम्मीदवार विजयी होने में सफल रहे हैं। लेकिन खास बात यह है कि ब्राह्मण उम्मीदवारों ने लगातार तीन चुनावों में विजय 1977, 1980 और 1985 में प्राप्त की थी। इसके बाद 1998 और 2003 में ब्राह्मण उम्मीदवार विजयी रहे थे।

जबकि 1990, 1993, 2008, 2013 और 2018 में धाकड़ उम्मीदवारों ने पोहरी का किला फतेह किया था। इनमें विजयी तीन उम्मीदवार भाजपा (1990, 2008, 2013) और दो कांग्रेस (1993 और 2018) के थे। ब्राह्मण और धाकड़ उम्मीदवार के अलावा किसी भी अन्य जाति के उम्मीदवार को यहां से जीत का स्वाद चखने का मौका नहीं मिला।

पोहरी विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस, भाजपा और बसपा ने अलग-अलग जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इस विधानसभा क्षेत्र में जहां धाकड़ मतदाताओं की संख्या 40 हजार है। वहीं ब्राह्मण और कुशवाह मतदाताओं की संख्या 15-15 हजार है। यह कहा जाता है कि पोहरी में धाकड़ मतदाताओं की मानसिकता अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट देने की रहती है।

इस आधार पर यह कल्पना की जा रही है कि भाजपा के धाकड़ जाति के उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा की गिनती 30 हजार मतों से होगी। 10 हजार मत इसलिए छोड़े जा रहे हैं। क्योंकि यह माना जा रहा है कि मतदान 75 प्रतिशत ही होगा। यह गणित यदि व्यवहारिक रहा तो उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार को किंचित बढ़त दिख रही है।

इसी कारण कांगे्रस में एक लॉबी यह चाहती थी कि 1993 और 2018 की तरह कांग्रेस भाजपा के धाकड़ उम्मीदवार के मुकाबले धाकड़ उम्मीदवार को ही टिकट दे। उनका तर्क यह था कि श्री राठखेड़ा के डेढ़ साल के कार्यकाल में उनके सजातीय बंधुओं में उनके प्रति नाराजी पैदा हुई है और यदि कांग्रेस ने धाकड़ उम्मीदवार को टिकट दिया तो धाकड़ मतों का अधिसंख्यक धु्रवीकरण कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में होगा और कांग्रेस के लिए जीत की राह आसान होगी।

लेकिन एक ही धाकड़ उम्मीदवार होने से धाकड़ मतों के भाजपा के पक्ष में धु्रवीकरण को रोका नहीं जा सकता। हालांकि कांग्रेस के ब्राह्मण उम्मीदवार हरिवल्लभ शुक्ला इस बात से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि पोहरी में जातिगत राजनीति यदि प्रबल होती तो 1977 से अब तक पांच बार ब्राह्मण उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाते।

श्री शुक्ला अपना उदाहरण देते हुए कहते हैं कि 2003 के विधानसभा चुनाव में उनके मुकाबले सिर्फ एक धाकड़ उम्मीदवार थे और मेरे अलावा भाजपा ने पूर्व विधायक नरेंद्र बिरथरे को टिकट दिया था। परंतु जीत मुझे हांसिल हुई थी। श्री शुक्ला कहते हैं अन्य जातियों के समान धाकड़ मतदाता भी निश्चित रूप से मुझे वोट देंगे।

बसपा उम्मीदवार कैलाश कुशवाह कहते हैं कि भले ही पिछले 10 चुनावों में 5-5 बार ब्राह्मण और धाकड़ उम्मीदवार जीतने में सफल रहे लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में मुझे 52 हजार से अधिक मत मिले। यदि जातिगत धु्रवीकरण होता तो मुझे कभी इतने मत नहीं मिल पाते।

उन्होंने कहा कि पोहरी का मतदाता अब जागरूक हो गया है। वह जातिगत आधार पर नहीं बल्कि इस बार विकास के मुद्दे को ध्यान में रखकर मतदान करेगा। पोहरी में अभी तक कांग्रेस और भाजपा जीतती रही है। एक बार समानता दल के प्रत्याशी भी जीते। लेकिन पोहरी विकास से दूर है और इस बार पोहरी का मतदाता जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर पोहरी के विकास के लिए मतदान करेगा।

बढ़े मतदान प्रतिशत के कारण 2018 में कांग्रेस को मिली थी विजय

पोहरी विधानसभा क्षेत्र में 1972 से अब तक हुए चुनाव में सबसे ज्यादा वोटिंग 2018 में हुई। 2018 में पोहरी में 74.13 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जिसके कारण 25 साल से जीत की वाट जोह रही कांगे्रस ने फतेह हांसिल की। कांग्रेस ने 1993 में भी जीत हांसिल की थी। तब भी बढ़ा मतदान प्रतिशत उसकी जीत का कारण बना था।

1993 में लगभग 51 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया। जबकि इसके पूर्व हुए चुनाव में मतदान प्रतिशत 33 प्रतिशत से लेकर 44 प्रतिशत तक अधिकतम रहा था। देखना यह है कि उपचुनाव में पोहरी में मतदान प्रतिशत बढ़ता है अथवा कम होता है। पोहरी विधानसभा क्षेत्र में लगभग 2 लाख 18 हजार मतदाता हैं, जिनमें से पुरूष मतदाताओं की संख्या लगभग 1 लाख 18 हजार और महिला मतदाताओं की संख्या लगभग 1 लाख है।

धाकड़, आदिवासी और दलित मतों का बाहुल्य

पोहरी विधानसभा क्षेत्र में धाकड़ मतदाताओं की संख्या 40 से 45 हजार है और इस विधानसभा क्षेत्र में आदिवासी और दलित मतदाताओं की संख्या भी 40-40 हजार है। ब्राह्मण और कुशवाह 10-10 हजार, यादव 20 हजार, रावत 10 हजार, 15 हजार पाल मतदाता हैं।
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