आदर्श इंसान कैसा होना चाहिए इसका सजीव रूप थे प्रोपेसर सिकरवार साहब:पांचवी पुण्यतिथि / Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। शिवपुरी महाविद्यालय में 41 साल तक अंग्रेजी प्राध्यापक के रूप में अपनी वेदाग सेवाएं देने वाले प्रो. चंद्रपाल सिंह सिकरवार को उनकी पांचवी पुण्यतिथि पर ऑनलाइन कॉन्फें्रस के माध्यम से उनके शिष्यों, गणमान्य नागरिकों और उनके आभा मंडल से अभिभूत व्यक्तियों ने अपनी भावांजलि दी।

उनके मानवीय गुणों को याद करने के लिए यह उदाहरण काफी है कि 15 साल पूर्व सेवा निवृत होने के बाद वह शिवपुरी को छोड़ चुके थे और उनको दिवंगत हुए भी पांच साल बीत चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी उनकी यादें शिवपुरी के लोगों के दिलों से नहीं मिटती है। बल्कि उनकी स्मृतियां हमेशा एक आदर्श जीवन जीने की लगातार प्रेरणा देती है।

भावांजलि ऑनलाइन कॉन्फें्रस में वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को उकेरा और कहा कि उन जैसा इंसान आज के भौतिकवादी युग में मिलना दुर्लभ है। वह मानवीय गुणों की पराकाष्ठा थे। समय के वेहद पाबंद, संवेदनशीलता की प्रतिमूर्ति, दूसरों के लिए जीने की ललक और ईश्वर के प्रति अटूट आस्था जैसे गुण उन्हें स्वयंमेव एक आदर्श इंसान के रूप मेंं प्रतिष्ठित करते हैं।

लालच और दुनियादारी उनके स्वभाव में नहीं थी और अपने वेतन के अलावा उन्होंने न तो कभी टीए, डीए और मेडीकल बिल लिया तथा न ही कभी वह 41 साल लंबी सेवा में एक दिन भी अवकाश पर रहे। दूसरों के लिए जीने का श्रेष्ठ उदाहरण थे प्रो. चंद्रपाल सिंह सिकरवार।

2 घंटे तक चली ऑनलाइन कॉन्फें्रस मेें सेवानिवृत डीआईजी डॉ. रमन सिंह सिकरवार ने कहा कि वर्ष 1991 से 1993 तक मैं शिवपुरी के एसडीओपी  के रूप में कार्यरत रहा। तब मुझे डॉ. सिकरवार के भव्य व्यक्तित्व को देखने का सौभाग्य मिला। उनकी सहजता और आकर्षक व्यक्तित्व मन को मोहता था और वह अपने बड़े होने का एहसास भी नहीं होने देते थे।

वह मुझे हमेशा प्रोत्साहित करते रहते थे और हमेशा मेरा उत्साहवर्धन किया करते थे। उन जैसा व्यक्तित्व आज के संसार में दुर्लभ है। आईएएस अधिकारी भास्कर लाक्षकार ने कहा कि उन्हें डॉ. सिकरवार का शिष्य होने का गौरव नहीं मिला। लेकिन जब मैं 14-15 वर्ष का था, तब मैं उनके छोटे से कमरे में उन्हें एक कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए गया था।

जहां छत को छूती हुई किताबों का अंबार लगा था। जिससे पता चलता है कि साहित्य और लिखने पढऩे में उनकी कितनी गहन रूचि थी। वह समय के बहुत पाबंद थे। श्री लाक्षकार ने समय की प्रतिवद्धता और अनुशासन के प्रति उनके समपर्ण को याद किया। शास. पी.जी. कॉलेज शिवपुरी के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ.एल.डी. गुप्ता ने प्रो. चंद्रपाल सिंह सिकरवार को स्मरण करते हुए बताया कि उनके गुणों के कारण लोकप्रियता का कोई मुकाबला नहीं है।

जब वह सेवानिवृत हुए तो विदाई समारोह मेें 100 से अधिक संस्थाओं ने उनका सम्मान किया। डॉ. गुप्ता ने कहा कि जब मैं शिवपुरी महाविद्यालय का प्राचार्य था तब डॉ. सिकरवार ने हर समय मुझे मार्गदर्शन दिया और कहा कि आपको सभी सहयोग देंगे। लेकिन यह आपके ऊपर है कि आप किससे कितने सहयोग लेते हैं।

उन्होंने बताया कि प्रो. चंद्रपाल सिंह सिकरवार की नियुक्ति पूर्वोत्तर विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में हुई थी, किंतु उन्होंने वहां जाना स्वीकार नहीं किया और शिवपुरी के विद्यार्थियों के भविष्य निर्माण के लिए अपने आपको प्रोफेसर के नाते अध्यापन कार्य में ही समर्पित बनाये रखा। वे हमेशा जरूरतमंद विद्यार्थियों की व्यक्तिगत रूप से आर्थिक मदद भी किया करते थे।

बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष अजय खैमरिया ने कहा कि डॉ. सिकरवार ने सफल जीवन भले ही न जिया हो लेकिन उन्होंने सार्थक जीवन अवश्य जिया है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक कोचेटा ने कहा कि डॉ. सिकरवार अपनी छवि के प्रति बेहद संवेदनशील रहते थे और कोशिश करते थे कि ऐसा कोई भी काम न किया जाए जिससे किसी को लेशमात्र भी पीड़ा उत्पन्न हो। उनका जीवन स्वयं के लिए नहीं बल्कि दूसरों और समाज के लिए समर्पित रहता था।

डॉ. डीके बंसल ने अपने संस्मरण में बताया कि एक बार जब मैं उनके कमरे पर गया तो वहां गुना से आने वाला एक युवक था, जो हजार-पंाच सो अंकसूचियों पर सील लगा रहा था और डॉ. सिकरवार उन अंकसूचियों को प्रमाणित करने में लगे थे। इससे पता चलता था कि वह लोगों के प्रति कितने समर्पित थे।

ऑनलाइन वर्चुअल सभा का सफल संचालन प्रोफेसर दिग्विजय सिंह सिकरवार ने किया। पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष एवं लॉ स्टूडेंट योगेश गुप्ता ने इस वर्चुअल स्मृत्यान्जलि सभा में महत्वपूर्ण तकनीकी सहयोग प्रदान किया। 
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