उपचुनाव में कोरोना काल के संकट का मुददा रह सकता हैं हावी: कोरोना और नेताओ के वादो का विश्लेषण / Pohri News

Bhopal Samachar
संतोष शर्मा,पोहरी। वर्तमान में करोना का संकट चल रहा हैं,देश लॉकडाउन मोड पर हैं। इस समय शिवपुरी कोरोना क्लीन हैं। लोग घरो में बंद रहकर कोरोना से लडाई लड रहे हैं,इस सकंट की घडी में जनता के साथ प्रशासन खडा हैं,कुछ समाजसेवी लोगो के बीच रहकर सेवा कर रहे हैं। पर इस कोरोना के संकट काल में बडा सवाल जनता के मन में हैं कि मंच पर चढकर हमारे लिए जान तक देने वाले राजनीतिक लोग कहा है।

बात पोहरी की करते हैं। लॉकडाउन में सभी परेशान है। पोहरी के विकास की बात करने वाले नेता सडको से गायब हैं जनता के बीच ऐसे लोग जा रहे हैं जिनका राजनीति से दूर दूर तक का वास्ता नही हैं। उनहोने कभी सार्वजनिक रूप से जनता की सेवा करने का वचन नही दिया ओर न ही ठेका लिया। लेकिन सच्चे सेवक वही लोग निकले जो इस समय जनता की सेवा में सडको पर उतरे अपने स्वयं के पैसे से लोगो का पेट भरा।

पोहरी में उपचुनाव कोरोना के निबटने के बाद कभी भी हो सकता हैं। चुनावो के नजदीक आते ही या चुनावो की घोषणा होने के बाद विधायक के दावेदार पोहरी क्षेत्र की सडको को छोडेंगें नही। इस शांत महौल में जहां राजनीतिक पार्टिया भी अपने-अपने हिसाब से सर्वे कर रही होंगी। क्यो की आने वाले समय मे सरकार गिरेगी या बचेगी इसके लिए एक-एक सीट महत्वूर्ण हैं।

अब बात करते हैं पोहरी विधानसभा की इस विधानसभा में कांग्रेस के किसानों की कर्ज माफी के मुद्दे को लेकर सिंधिया राजवंश के विशेष सेवक सुरेश रांठखेड़ा को जनता ने चुनकर विधानसभा में भेजा और अपने 19 महीने के कार्यकाल में शायद वह जनता की उम्मीदों एवं अपेक्षाओं को पूरा करने में नाकाम सिद्ध हुए।

पोहरी की जनता का मत हैं कि जनमत को अपने आका के स्वार्थ के लिए इस्तीफे को रूप में नही देना था। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को गिराने से लेकर बीजेपी की सरकार बनाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया का अहम किरदार उभर कर सामने आया बिना सिंधिया के भाजपा का सरकार बनाना लगभग नामुमकिन था।

वर्तमान में राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी उम्मीदवारों को लेकर अहम सर्वे एवं आकलन करने में जुटी हुई है। गुपचुप तरीके से उम्मीदवारों की राजनीतिक क्षमता एवं उनकी ताकत को आंका जा रहा है चुंकि आने वाले कुछ महीनों के दौरान ही उपचुनाव होना लगभग तय माना जा रहा है।

कांग्रेस से पोहरी विधानसभा के लिए जो नाम उभरकर सामने आ रहे हैं उनमे हरीबल्लभ शुक्ला,अशोक सिंह प्रमुख नाम है जबकि भारतीय जनता पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन का सम्मान करते हुए सुरेश रांठखेडा पर भरोसा कर सकती है, इसके अलावा बीजेपी के पास अनुभवी एवं संगठन के प्रति समर्पित लायक विधायक उममीदवारों की लंबी सूची हैं।

जिनमें कुछ नाम नरेंद्र बिरथरे प्रहलाद भारती, विवेक पालीवाल इन सब के अलावा इस चुनाव में बसपा से चुनाव लड़ने वाले तथा दूसरे स्थान पर रहने वाले कैलाश कुशवाह की दावेदारी को भी नकारा नहीं जा सकता। वह  दोनो ही पार्टियों का हिसाब किताब बिगाड़ सकती है। कैलाश कुशवाह किसी भी पार्टी से टिकिट जुगाडने का वोटो का जादूई आंकडा रखते हैं।

बीजेपी एवं कांग्रेस की सूची में ऐसे संभावित उम्मीदवार जो चुनाव जिताने की हैसियत रखते हैं की राजनैतिक पकड़ एवं जातिगत वोट बैंक को ध्यान रखते हुए आगामी निर्णय लिया जाएगा, चूंकि वर्तमान में सरकार को बचाने के लिए एक एक सीट अहम भूमिका रखती है, राजनैतिक पार्टियों के लिए जिताऊ उम्मीदवार ही मायने रखता है न कि ऐसा व्यक्ति जिसकी छवि जनता में बेहतर नहीं हैं।

जनता अब नेताओ के लच्छे दार भाषणो पर विश्वास नही कर सकती हैं। नेताजी जब वोट मांगने जांऐंगें तो पूछ सकती हैं जब कनेस्टर में आटा नही था तो कहां थे नेताजी। कुल मिलाकर पोहरी में आने वाला चुनाव में इस कोरोना के संकट काल का मुददा हावी रह सकता हैं। 
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