मनुष्य जन्म लिया लेकिन मनुष्यता नहीं आई तो जीवन व्यर्थ है: मुनिश्री वीरेश रत्नसागर जी | Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। ग्वालियर में चार्तुमास सम्पन्न करने के बाद शिवपुरी के आराधना भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैन संत वीरेश रत्नसागर जी ने कहा कि 84 लाख जीवयोनि में मनुष्य भव दुर्लभ है। लेकिन मनुष्य जन्म लेने के बाद भी मनुष्यता नहीं आई तो जीवन व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन को यदि इंसान ने अपने सदकर्मो से सफल बना लिया तो जीवन का चरमलक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

महाराज श्री ने अपने उदबोधन में कहा कि मनुष्य जीवन दुर्लभ है। लेकिन भरत क्षेत्र, अच्छे कुल और जैन धर्म में जन्म लेना उससे भी दुर्लभ है। लेकिन जिन लोगों को यह उपलब्धि हांसिल हो जाती है। वह भी अपने जीवन का सही उपयोग नहीं करते। उन्होंने कहा कि सिद्ध भगवान का हमपर उपकार है और सच्चे मन से शुद्ध हृदय से उनके लिए यदि हम एक भी नमस्कार करते हैं तो हम भव सागर को पार कर जाते हैं।

लेकिन हमने तो एक क्या हजारों बार नमस्कार किया है। लेकिन उसके बाद भी संसार सागर को हम सफलतापूर्वक पार कर लेेंगे यह निश्चितापूर्वक नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म प्राप्त करने के बाद हमें कुछ न कुछ व्रत संकल्प अवश्य करना चाहिए। इस सिलसिले में उन्होंने एक दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि एक चरवाहे ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक वह किसी अन्य प्राणी को भोजन नहीं कराएगा तब तक वह स्वयं खाना नहीं खाएगा।

एक बार वह जंगल में लकडिय़ां काटने गया और जब भोजन का समय आया तो उसने देखा कि दूर-दूर तक कोई नहीं है। इस पर वह ऊंचे पेड़ पर चढ़ा तो उसने देखा कि कुछ साधु रास्ता भटक गए हैं। वह पेड़ से उतरकर उस दिशा में गया और उसने साधुओं से विनती की कि वह उसका आहार स्वीकार करें। उनके भोजन करने के बाद ही उसने भोजन किया और बाद में साधुओं को मार्ग बताया।

संत वीरेश रत्नसागर जी ने बताया कि इस मामूली संकल्प से वह तीर्थंकर पद को प्राप्त करने में सफल रहा। उन्होंने कहा कि धर्म में मात्रा का उतना महत्व नहीं है, जितना भावना का है। शुद्ध भावना से किया गया धर्म हमें भवसागर से पार करने में समर्थ होता है।

अंत में जैन संत वीरेश सागरजी ने कहा कि संसार में आकर हम इतना तो कर लें कि भले ही हमें मोक्ष पद की प्राप्ति न हो लेकिन अगले भव में हम मनुष्य अवश्य बने। क्योंकि मनुष्य पद की प्राप्ति से ही जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। जैन संत वीरेश सागरजी के प्रवचन आराधना भवन में सुबह साढ़े 9 बजे से साढ़े 10 बजे तक चल रहे हंै।