शिवपुरी। शासकीय निर्देशानुसार नवीन शिक्षण सत्र 24 जून से प्रारंभ हो गया हैं। जिसके लिए प्रशासन द्वारा कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किए गए कि विद्यालय सुबह की पारी में लगाया जाए अथवा दोपहर की पारी में लगाया जाए। विभिन्न विद्यालयों में शिक्षकों की मनमानी व सुविधा के अनुसार विद्यालय लगाए जा रहे हैं।
ऐसी भीषण गर्मी में सामान्य मनुष्य का घर से निकलना तक दुश्वार हो रहा हैं। वहीं दूसरी ओर मासूम बच्चों के लिए विद्यालय पहुंच पाना एवं वहां पर रूक कर शिक्षा ग्रहण करना मुश्किल हो रहा हैं। जबकि यह तथ्य सर्व विदित है कि कुछ शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में पंखे होना तो दूर पेयजल तक की व्यवस्था नहीं है।
भीषण गर्मी के मौसम को देखते हुए ग्वालियर के जिलाधीश द्वारा 30 जून तक छात्र एवं छात्राओं का अवकाश घोषित कर दिया गया हैं, लेकिन शिवपुरी जिले में ऐसे कोई निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। शिक्षक अपनी सुविधा के अनुसार विद्यालय लगा रहे हैं जागरूक नागरिकों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि विद्यालयों को सुबह की पारी में लगाने के निर्देश जारी किए जायें, अथवा ग्वालियर जिलाधीश की तरह 30 जून तक अवकाश घोषित किया जाए।
ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं खुल रहे विद्यालयों के ताले
नवीन शिक्षण सत्र यूं तो प्रारंभ हो गया हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश विद्यालयों में अभी भी ताले झूलते नजर आ रहे हैं। जबकि नवीन शिक्षण सत्र 24 जून से प्रारंभ कर दिया गया हैं। जो शिक्षकों की लापरवाही का स्पष्ट नमूना कहा जा सकता हैं।
शिक्षक अपने कर्तव्य से कितने बिमुख हैं इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता हैं विगत दिनों में शासन द्वारा 10 वीं तथा 12 वीं कक्षा के परिणाम को देखते हुए एक शिक्षकों की परीक्षा का आयोजन किया गया था। जिसका शिक्षकों द्वारा वहिष्कार कर दिया गया था।
शिक्षा कर्मियों से अध्यापक बने शिक्षकों का कहना है कि वरिष्ठ शिक्षकों की अपेक्षा वे अधिक योग्य हैं हम प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आज अध्यापक बने हैं। जब ये शिक्षक सर्वगुण संपन्न हैं तो फिर शासन द्वारा आयोजित परीक्षा का वहिष्कार क्यों?
विद्यालयों की नहीं हुई सफाई व पुताई
ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं शहरी क्षेत्र में भी ऐसे कई विद्यालय हैं जिनकी वर्षों से सफाई व पुताई नहीं कराई गई। जबकि शासन द्वारा हजारों रूपए की धनराशि उक्त मद में भेजी जाती हैं। लेकिन इसके बावजूद भी प्रधानाध्यापक द्वारा सफाई व पुताई कराने की जहमत नहीं उठाई जाती। तब सवाल यह उठता है कि शासन द्वारा भेजी जाने वाली धन राशि का कहां उपयोग किया जाता हैं अथवा फर्जी बिल लगाकर धनराशि हड़प ली जाती हैं। कुछ विद्यालय तो जिले में ऐसे हैं मानो इस्ट इंडिया जमाने के हों।
