जन्म से अंधा, पैरो से भी विकलांग, लेकिन मेमोरी 500-GB की हार्ड डिस्क से अधिक, पढिए सूरदास की कहानी

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संजीव जाट @ बदरवास। कहते है कि प्रकृति मानव को एक गुण ऐसा देती है जो दूसरे लोगों से डिफरेंट होता है,बस उसे पहचानने की आवश्यकता होती है। अपने आप में स्पेशल की तलाश कर उस गुण को विकसित कर लेना ही वह विशेष बात होकर दूसरे से अलग करती है। ऐसा ही कुछ है ट्रेन में भजन गाकर अपने जीवन का गुजारा करने वाले बदरवास की सूरदास की। ईश्वर ने जन्म से आंखो मे रोशनी नहीं दी,पैरो से भी विकलांग,लेकिन आवाज मे जादू और मेमोरी इतनी विशाल की 1900 से अधिक फिल्मी गाने और भजन रिदम के साथ याद,इसी की दम पर अब उसकी जीवन की नैया पार।

शिवपुरी की गुना के रेलवे ट्रैक पर लोकल ट्रेनो मे रूटीन सफर करने वाले यात्री इस सूरदास को पहचानते है और उसके अपने डिब्बे मे आने का इंतजार भी करत है क्योंकि वह उसकी आवाज में पुराने गानो को सुनना चाहते है। इसे वह सूरदास के नाम से जानते है और पुराकरते है।

रामजीवन उम्र 45 साल पुत्र बाबूलाल नामदेव की जो मां की कोख से ही नेत्रहीन और पोलियोग्रस्त पैदा हुआ। रामजीवन की माता पिता ने जैसे तैसे परवरिश की, लेकिन जब यह 12-13 साल का था तभी माता पिता का बीमारी से देहांत हो गया। इसके बाद रामजीवन अनाथ हुआ तो कुछ दिन तक अशोकनगर निवासी मामा ने सहारा दिया। मामा भी उसे कुछ महीने ही रख पाए और फिर रामजीवन को घर से निकाल दिया। रामजीवन फिर 22 साल पहले बदरवास रेलवे स्टेशन पर आ गया। यहां उसने कुछ दिन भीख मांगने का प्रयास किया, लेकिन लोगों ने भीख में भी इतनी मदद नहीं की कि वह अपना पेट भर सके।

रामजीवन नामदेव उर्फ सूरदास ने बताया कि उसने एक रेडियो खरीदा और अकेले ही गाना गाने का रियाज किया और फिर वह धीरे-धीरे गाना गाने लगा। कुछ दिन में लोग उसे उसका गाना सुनने के बदले पैसे देने लगे और नाम दे दिया सूरदास। यहीं से उसका नया जन्म हुआ और आज सूरदास की आवाज के हजारों दीवाने हैं।

जो यात्री रेगुलर ट्रेनों का सफर करते हैं उनकी की तो स्थिति यह है कि बदरवास और गुना आते ही उनकी आंखें ट्रेन में सूरदास को तलाशने लगती है। सूरदास कहता है कि आज उसे 1900 गाने पूरी रिदम के साथ याद है। सूरदास की मानें तो प्रत्येक युवा अगर ईश्वर द्वारा उसे दी गई ताकत को पहचान ले तो उसे कभी भीख नहीं मांगनी पड़ेगी और वह अपने हुनर के बूते ही अपने जीवन को निकाल सकता है।