SHIVPURI NEWS - जिले में 36 साल से नही है ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थेरेपिस्ट, हर माह 400 लोग परेशान

Bhopal Samachar

शिवपुरी। शिवपुरी जिला पिछले 36 साल से ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थेरेपिस्ट डॉक्टर के लिए तरस रहा है।इस कारण अस्पताल में कान से संबंधित दिव्यांगों की श्रवण जांच (ब्रेनस्टेम इवोक्ड रिस्पॉन्स आडियोमेट्री ऑडी टेस्ट) न होने से उन्हें दिव्यांगता का प्रमाण पत्र नहीं मिल पा रहा है। इस वजह से हर मंगलवार को जिला अस्पताल में पहुंचने वाले लगभग एक सैकड़ा एवं महीने भर में लगभग 400 दिव्यांगों को दिव्यांगता का परीक्षण कराने एवं प्रमाण पत्र लेने के लिए ग्वालियर के जयारोग्य अस्पताल में जाना पड़ता है।

जिला अस्पताल में 1989 से नियमित ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थेरेपिस्ट की नियुक्ति नहीं होने से भी यह समस्या बनी हुई है। वहीं, मेडिकल कॉलेज में भी ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थैरेपिस्ट की नियमित पोस्टिंग नहीं होने के कारण दिव्यांग अभ्यर्थियों को सर्टिफिकेट बनवाने के लिए दूसरे शहरों में भटकना पड़ रहा है। सालों से चली आ रही समस्या का खामियाजा सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने वाले श्रवण बाधित दिव्यांग अभ्यर्थियों को चुकाना पड़ रहा है। नियमित ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थेरेपिस्ट नहीं होने के कारण दिव्यांग अभ्यर्थी के सर्टिफिकेट वेरीफाई नहीं हो पाते हैं।


श्रवण टेस्ट से जांची जाती है सुनने की क्षमता: बैरा यानी ब्रेनस्टेम इवोक्ड रिस्पॉन्स आडियोमेट्री टेस्ट के माध्यम से इस बात की जांच की जाती है कि व्यक्ति की सुनने की क्षमता कितनी है। हालांकि इसके लिए ऑडियोमेट्री टेस्ट भी होता है, लेकिन बैरा टेस्ट की प्रमाणिकता बहुत ही सटीक है।

प्रबंधन कर चुका है पद स्वीकृति की मांग
गौरतलब है कि 1989 से भी पहले से यह पद खाली हैं। जिला अस्पताल प्रबंधन की ओर से कई बार पत्र लिखकर पद स्वीकृत करने की मांग की जा चुकी है। बैरा जांच के लिए मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की ओर से भी एक-एक ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थेरेपिस्ट को रखने की मांग की गई है। बावजूद इन पदों पर स्वीकृति नहीं हुई है। जबकि यहां हते में 10 से ज्यादा मरीजों को बैरा जांच कराने की जरूरत होती है। यही वजह है कि आधे से ज्यादा लोग बिना जांच के ही लौट जाते हैं।

नौकरी में आवेदन करने वालों को हो रही समस्या
जिला अस्पताल के ईएनटी डिपार्टमेंट में शहर से सरकारी न में आवेदन करने वाले अभ्यर्थी के साथ ही कई बार आसपासक अंचल क्षेत्र से भी अभ्यर्थी पहुंचते हैं। इनको लगता है कि यह जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है, ऐसे में यहां उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा। लेकिन जिला अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज से इनको जयारोग्य अस्पताल भेजा जाता है। ऐसे में कई लोग ग्वालियर जाने को मजबूर हैं।

नाक, कान और अस्थियों से संबंधित दिव्यांगों की जांच के लिए जिला अस्पताल में फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है। बैरा जांच मशीन न होने से दिव्यांगों को परीक्षण के लिए ग्वालियर भेज रहे हैं। हर मंगलवार को ऐसे लगभग एक सैकड़ा मरीज आते हैं, जिन्हें मजबूरन उन्हें ग्वालियर भेजना पड़ता है।
डॉ बीएल यादव, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल

मेडिकल कॉलेज में फिलहाल कान से संबंधित दिव्यांगों के लिए बैरा जांच की सुविधा नहीं है, इसलिए ऐसे दिव्यांगों को ग्वालियर ही रेफर कर रहे हैं। हते में 10 से ज्यादा मरीजों को बैरा जांच कराने की जरूरत होती है। इस मामले में वरिष्ठों को अवगत कराया है।
डॉ डी परमहंस, डीन, मेडिकल कॉलेज

पिछली साल शिक्षक की नौकरी के लिए आवेदन किया था। कान से दिव्यांग होने की वजह से परीक्षण के लिए ग्वालियर भेजा गया। क्योंकि जिले में बैरा जांच की सुविधा नहीं है। इस वजह से परेशानी तो हुई, साथ ही रुपया एवं समय दोनों की बर्बादी हुई। हमारे साथ अन्य दिव्यांगों को भी ग्वालियर भेजा गया था।
अनुज तिवारी, दिव्यांग